बुंदेलखंड की प्यासी धरती को तालाब बनाकर पानीदार बना रही हैं ये 'जलसहेलियां'
बुंदेलखंड देश का वह इलाका है जिसका जिक्र आते ही सूखा, गरीबी और भुखमरी की तस्वीर, आंखों के सामने कौंध जाती है, मगर इसी इलाके में कई गांव ऐसे हैं, जहां की महिलाओं की कोशिश ने सूखे बुन्देलखण्ड के तालाबों को न केवल पानी से भर दिया है बल्कि यहां की उजली तस्वीर भी पेश की है। इसी कोशिश का नतीजा है कि यहां इन्सान एवं जानवर को पीने का पानी जहां मिल रहा है वही गांव वाले अपने को पानीदार मान रहे हैं।
स्थानीय गैर सरकारी संस्थान एवं यूरोपियन यूनियन के सहयोग से रेखा एवं 30 अन्य ग्रामीण महिलाओं द्वारा ग्राम बम्हौरीसर में पानी पंचायत नाम के संगठन का निर्माण वर्ष 2011 में किया गया।
गांव में पानी पंचायत का गठन हुआ, गांव वालों की मदद से मई, 2015 में पाठाघाट में जल संरचना बनाई गई। बारिश के बह जाने वाले पानी की एक-एक बूंद को सहेजा गया। इसका नतीजा यह हुआ कि इस वर्ष इस क्षेत्र की लगभग 150 एकड़ भूमि की सिंचाई आसानी से हुई और यहां के किसानों ने सूखे के बावजूद 500 कुन्तल से ज्यादा का उत्पादन किया है।
बुंदेलखंड देश का वह इलाका है जिसका जिक्र आते ही सूखा, गरीबी और भुखमरी की तस्वीर, आंखों के सामने कौंध जाती है, मगर इसी इलाके में कई गांव ऐसे हैं, जहां की महिलाओं की कोशिश ने सूखे बुन्देलखण्ड के तालाबों को न केवल पानी से भर दिया है बल्कि यहां की उजली तस्वीर भी पेश की है। इसी कोशिश का नतीजा है कि यहां इन्सान एवं जानवर को पीने का पानी जहां मिल रहा है वही गांव वाले अपने को पानीदार मान रहे हैं। बुन्देलखण्ड के हमीरपुर ,जालौन, ललितपुर के 100 गांव में जल सहेलियां और परमार्थ संस्था गांव को पानीदार बनाने में जुटी हैं। उत्तर प्रदेश के ललितपुर जनपद के तालबेहट विकास खण्ड के कुछ गांव ने पानी पर महिलाओं की प्रथम हकदारी कार्यक्रम में नयी इबारत लिखने की शुरुआत की है।
ललितपुर जिले के तालबेहट विकास खण्ड का गांव बम्हौरीसर एक ऐसा गांव है जहां पानी पंचायत नाम के संगठन के सामूहिक पहल से वर्ष पर्यन्त पेयजल उपलब्धता है। इस संगठन ने पानी से सम्बन्धित गम्भीर समस्याओं से लडऩे का बीड़ा उठा रखा है। वर्तमान में जल संरक्षण के प्रयास ललितपुर जिले के तालबेहट विकास खण्ड के 40 से अधिक गांवों में इन पानी पंचायत संगठनों के माध्यम से किए जा रहे हैं। इनमें से कई पानी पंचायत संगठनों को ब्लॉक, जिला एवं राज्य स्तरीय विभिन्न मंचों के माध्यम से नई पहचान मिल चुकी है। इन संगठनों द्वारा शासन प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कर पानी से सम्बन्धित कई समस्याओं के समाधान अपने क्षेत्र में कराए हैं।
स्थानीय गैर सरकारी संस्थान एवं यूरोपियन यूनियन के सहयोग से रेखा एवं 30 अन्य ग्रामीण महिलाओं द्वारा ग्राम बम्हौरीसर में पानी पंचायत नाम के संगठन का निर्माण वर्ष 2011 में किया गया। बुन्देलखण्ड क्षेत्र, जो महिलाएं विरलय ही घर और पर्दे से बाहर निकलती थीं, आज अपने गांव से बाहर कदम बढ़ा कर मजबूत अभियान की नींव रखी। साथ ही जिला अधिकारी एवं अन्य अधिकारियों के समक्ष गांव की समस्याओं के समाधान के लिए कई आवेदन दिए। अंतत: पानी पंचायत के अथक प्रयासों से ग्राम बम्हौरीसर में जल निकासी हेतु परियोजना को शासन द्वारा प्रस्तावित कर दिया गया है।
जल सहेली रेखा का कहना है कि हमनें कई बार जिलाधिकारी महोदय को बताया कि गांव की महिलाओं को कई कोसों दूर जाकर दैनिक उपयोग के लिए पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है। कई बार हमारी बातों को अनसुना करने के बाद हमने जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर बैठकर उनसे कुर्सी छोड़कर बाहर निकलने को विनम्रतापूर्वक विवश किया। ठीक इसी तरह जल सहेली रेनू और पार्वती ने ककरारी गांव में जल सहेली संगठन का निर्माण वर्ष 2013 में किया। लगातार 3 वर्षों की कठिनाई के पश्चात उनके प्रयासों के माध्यम से जिला प्रशासन को स्थानीय तालाब को पुनरुद्धार हेतु विवश होना पड़ा और अब इस तालाब के लिए धनराशि भी निर्गत की जा चुकी है।
रेनू का कहना है कि संगठन में शक्ति होती है, यदि आप संगठित होकर कोई प्रयास करते हैं तो कोई भी अधिकारी या महकमा आपकी बात अवश्य सुनेगा। ककरारी की जल सहेली पार्वती बीते दिनों को अब याद भी नहीं करना चाहती। वह बताती हैं कि घरेलू काम-काज से अन्य जरूरत के काम के लिए गांव के लोगों को पानी आसानी से नसीब नहीं होता था। कारण गांव का यह तालाब कचरा घर में बदल चुका था मगर गांव के लोगों की मिल-जुल कर की गई कोशिश ने तालाब की तस्वीर ही बदल दी। अब स्थिति यह है कि गांव के 150 परिवारों के लिए यह तालाब वरदान बन गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ जहां सूखे के संकट में पानी की घरेलू जरूरत पूरी हो रही है वहीं नहाने और जानवरों को पीने को पर्याप्त पानी मिल रहा है।
पार्वती बताती हैं कि इस वर्ष बहुत कम बारिश हुई थी जिसके कारण तालाब पानी से भरा नहीं था मगर ग्रामीणों और महिलाओं की कोशिश ने नहर के पानी से तालाब का पुनर्भरण कराया। यही कारण है कि जून माह में भी तालाब में पानी रहा और लोगों को पानी की जरूरतें पूरी होती रहीं। इसी इलाके का दूसरा गांव चन्दापुर जहां सूखे के इस दौर में भी किसान और ग्रामीण खुश हैं। इसकी वजह यहां पानी की पर्याप्त उपलब्धता है। यहां के तालाबों का हाल भी अन्य स्थानों के तालाबों के जैसा ही था गांव की जल सहेली पुष्पा देवी बताती है कि यहां के लोगों ने श्रमदान और परमार्थ संस्था से मिले छोटे से सहयोग के बल पर जीर्ण-शीर्ण हो चुके तालाब की हालत सुधार दी, अब इस तालाब में पानी है और लोगों को इस तालाब में पानी रहने के कारण पेयजल संकट से नहीं जूझना पड़ रहा है। गांव के बृजेश बताते हैं कि सूखे के बावजूद पानी की उपलब्धता के कारण 50 किसानों ने 150 एकड़ पर फसल की पैदावार की है चन्द्र्रापुर सहित आस-पास के 05 गांव के जानवर इसमें पानी पी रहे हैं।
ग्राम मोटो की जल सहेली फूलवती का कहना है कि शुरुआती दिनों में मुझे और मेरी सहयोगी जल सहली इमरती को उपहास का सामना करना पड़ा, यहां तक कि जब कुआं खोदना शुरु किया तो कई तरह की धमकियां भी मिलीं। पुरुषों का कहना था कि यदि महिलाएं कुएं की खुदाई करने लगेंगी तो हम पुरुष क्या करेंगे। फूलवती आगे कहती हैं कि हमने उन्हें जवाब दिया कि अब हम अपने इरादों से पीछे नहीं हटेंगे और कुएं की खुदाई करके ही रुकेंगे। 3 किमी दूरी तय करके कठिनाईयों का सामना करके पानी ोने वाली इन 2 जल सहेलियों के प्रयासों में गांव के हर जाति, समुदाय और पुरुषों का साथ मिला। इनके प्रयासों का असर यह है कि सरकार द्वारा गांव के कुएं का जीर्णोद्धार कराने हेतु धनराशि को आवंटित कर दिया गया है। अब गांव की आबादी को पेयजल संकट से निजात मिल गयी है। परमार्थ समाज सेवी संस्था के प्रमुख एवं जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह कहते है कि जल सहेलियों एवं पानी पंचायत संगठन द्वारा किये जा रहे प्रयास अभी शुरुवात मात्र है, उनकी मंशा है कि बुंदेलखंड में प्रत्येक गांव में महिलाये संगठित होकर पेयजल संकट को दूर करने एवं सूखे के प्रभाव को कम करने हेतु आगे आएं।
दरअसल तालबेहट विकास खण्ड के भुचेरा गांव की कहानी भी इन्ही गांव जैसी है। यहां तालाब तो नहीं था, मगर एक स्थान पर बारिश का पानी कुछ दिन के लिए रुकने के बाद बह जाता था। कुछ किसान अपने बल पर कच्ची मिट्टी के सहारे कुछ पानी को रोक लेते थे, बाकी पानी का बह जाना आम था। गांव में जिस स्थान पर पानी रुकता था उसे लोग पठाघाट कहते हैं। इस स्थान के आस-पास की तीन सौ एकड़ से ज्यादा की जमीन असिंचित थी, क्योंकि बारिश का पानी बह जाता था और जरूरत के समय वहां सिंचाई के लिए पानी होता नहीं था। यहां का पानी सीधे सौन्नी नाले में पहुंच जाता था। इस गांव में पानी पंचायत का गठन हुआ, गांव वालों की मदद से मई, 2015 में पाठाघाट में जल संरचना बनाई गई। बारिश के बह जाने वाले पानी की एक-एक बूंद को सहेजा गया। इसका नतीजा यह हुआ कि इस वर्ष इस क्षेत्र की लगभग 150 एकड़ भूमि की सिंचाई आसानी से हुई और यहां के किसानों ने सूखे के बावजूद 500 कुन्तल से ज्यादा का उत्पादन किया है।
इसी विकास खण्ड के उदगुवां, विजयपुरा, मौंटों, तिंदरा, बम्हौरीसर, दौल्ता आदि ऐसे गांव हैं। जहां जल संरचनाओं की मरम्मत और निर्माण के कारण पानी की उपलब्धता बनी हुई है। गांव के लोगों को नहाने, जानवरों को पीने के लिए आसानी से पानी सुलभ हो रहा है। यह एक छोटा सा प्रयास है लेकिन बुन्देलखण्ड में एक आशा की राह दिखाता है जहां समाज ने खड़े होकर तालाबों को पुनर्जीवित किया है और अपने गांव को पानीदार बनाया है। बुन्देलखण्ड में जल संकट के समाधान में जिस प्रकार जल सहेलियों और पानी पंचायत ने कार्य किया है वह यह बताता है कि इस इलाके को अगर सूखे से मुक्ति दिलानी है तो गांव-गांव में पानी संगठन तैयार करना होगा। न केवल जल संरक्षण कार्य करना पड़ेगा बल्कि पानी का विवेकपूर्ण उपयोग करना पड़ेगा। अधिक पानी में पैदा होने वाली फसलों से दूर रहना पड़ेगा। बुन्देलखण्ड में जिस तरह से भू-भर्गभीय जल नीचे जा रहा है उसे रोकने में तालाब और पोखर ही अहम् भूमिका निभा सकते हैं।
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