पति के हार्ट अटैक के बाद उधार की सिलाई मशीन से शुरू किया काम, 2 महीने में मिला बड़ा ऑर्डर
कहते हैं ज़िंदगी में आप ने जो कुछ सोचा है, अकसर वो उस रूप में होता हुआ नहीं दिखता है। जीवन में कुछ भी बुरा होने की आशंकाएं सबको होती हैं पर हर कोई इसे नज़रअंदाज़ करता है। लेकिन अचानक कुछ ऐसा हो जाए, जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी न हो तो? क्या करेंगे आप? कैसे करेंगे आप? ज़िंदगी कौन सा रूख लेगी? श्वेता सोनी की कहानी बिलकुल ऐसी ही है।
श्वेता सोनी अपनी जिंदगी में संतुष्ट एक बेफिक्र घरेलू महिला थीं। अचानक एक दिन उनकी ज़िंदगी में सबकुछ बदल गया। उनके पति को हार्ट अटैक आया। घर के काम में मशगूल रहने वाली श्वेता के सामने यक्ष प्रश्न था। अब क्या? यही वो मोड़ था, जिसने श्वेता सोनी को उद्यमिता की तरफ पहला कदम रखने को मजबूर किया।
श्वेता ने 2013 में अंबर जयपुर की शुरू किया। बच्चों के कपड़ों के सेगमेंट में काफी खाली जगह उन्हें लगती थी, जहां वो खुद को जमाना चाहती थीं। वो भारतीय हैंड ब्लॉक्स के साथ वेस्टर्न ऑउटफिट तैयार करती हैं। उनके इंडियन लाइन में लड़कियों के लिए लहंगा चोली और लड़कों के लिए कुर्ता-पाजामा, शर्ट्स और नेहरू जैकेट शामिल है। श्वेता ने एक दर्जी और जयपुर में एक दोस्त से उधार ली गई सिलाई मशीन के साथ अपना काम शुरू किया।
“आज डेढ़ सालों में मेरे पास 8 कर्मचारी और 8 मशीनें हैं। अगले 2 सालों में इन्हें 50 तक ले जाने की मेरी योजना है। मैंने शुरू में फेसबुक पर अपने पेज के साथ शुरुआत की और देखकर हैरान रह गई कि मेरे फेसबुक पेज पर मौजूद लोगों से मुझे ऑर्डर मिलने लगे। 2 महीने के भीतर बड़ा उत्साह बढ़ाने वाला मौका आया जब एक ऑस्ट्रेलियन कंपनी ने मेरा कलेक्शन देखा और मुझे पहला ऑर्डर देने के लिए बुलाया।”
श्वेता को आत्मनिर्भर बनने से रोकने के पीछे महत्वाकांक्षा की कमी नहीं थी। वो यूपी के एक छोटे से कस्बे शाहजहांपुर में पली बढ़ी थीं। पढ़ाई में अच्छी होने के साथ वो रचनात्मक भी थीं। लेकिन, 90 के दशक में रचनात्मकता को शौक के तौर पर देखा जाता था। सारा जोर पढ़ाई और डॉक्टर, इंजीनियर या फिर आईएएस बनने पर था। श्वेता ने 12वीं विज्ञान के साथ खत्म की और पूरी तरह हार चुकी थीं। उनका ग्रेड नीचे चला गया। पूरी प्रक्रिया में उनकी रचनात्मकता को किनारे रखकर पूरी तरह नकार दिया गया, वो खराब प्रदर्शन करने लगीं, पढ़ाई में रुचि खत्म हो गई और उनका विश्वास जाता रहा। उसने अपनी स्ट्रीम बदलने का फैसला किया और जयपुर में अपनी नानी के घर में जहां वो रहती थीं, वहीं से फाइन आर्ट्स में ग्रैजुएशन किया।
“मैंने जिंदगी में कुछ भी बन पाने की इच्छा त्याग दी थी और तभी दूसरी कई भारतीय लड़कियों की तरह शादी कर ली और प्रतिभा, रचनात्मकता जैसे शब्द भूल गई।”
“एक छोटे कस्बे में, जहां कोई एक्सपोज़र नहीं था, कम उम्र में शादी होने, ऐसे वक्त में जब इंटरनेट नहीं था और उद्यमिता के बारे में लोगों को पता नहीं था, कुछ करने का स्कोप सीमित था। ज्यादा से ज्यादा हमने जो सुना या देखा था, वो किसी ऑन्टी या औरत का खुद का बुटीक रखना और यही एक बहुत बड़ी बात थी। माता-पिता को भी आपकी इच्छाओं से ज्यादा मतलब शादी से होता था। ऐसे माहौल मे बड़े होने से मैं मानने लगी थी कि औरत का काम शादी करना और परिवार को आगे बढ़ाना है। मैं कहूंगी कि ये मेरी सबसे बड़ी अज्ञानता थी।”
श्वेता को जब एक रात एहसास हुआ कि उसका पति हार्ट अटैक झेल रहा है, तब वो जिस गुब्बारे में सवार थी, वो फूट चुका था और भविष्य का लेखा जोखा लगाना शुरू हो गया। वो उसे अस्पताल ले गई और डॉक्टरों ने उसकी जिंदगी बचा ली। उसके ससुर को गाड़ी चलाना नहीं आता था और वो खुद एक अच्छी ड्राइवर नहीं थी, लिहाजा उसे एक खतरनाक स्थिति से गुजरना पड़ा। उस रात को याद करके आज भी उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं।
“उन 5-6 दिनों में अस्पताल के अंदर-बाहर और घर में मुझे अचानक बहुत सारे फैसले लेने पड़े। मुझे हर चीज़ की जिम्मेदारी लेनी पड़ी। मैं ज्यों की त्यों रही, हालांकि मैं भावनात्मक और शारीरिक रूप से टूट चुकी थी, लेकिन कभी अपने बच्चों और ससुरालवालों के सामने नहीं रोई।” उसके पति की बीमारी ने उसके पास जिम्मेदारी उठाने के सिवा कोई विकल्प नहीं छोड़ा था। हालांकि, बाद में वो घर आ गया और स्वास्थ्य सुधरना शुरू हो गया। श्वेता ने उसका, उसके काम और सभी घरेलू चीजों का ध्यान रखा।
“मैंने महसूस किया कि करने के लिए इतना कुछ है कि कठिन परिस्थितियों में भी मैं एक मजबूत इंसान बन सकती हूं। मुझे सिर्फ विश्वास रखने की ज़रूरत है। जिंदगी में पहली बार श्वेता ने महसूस किया था कि उसे आत्मनिर्भर होना है। मुझे लगता है कि मेरी सबसे बड़ी चुनौती अपना उद्यम शुरू करने के लिए मुझे खुद को मनाना था। इसके बाद सब छोटी चुनौतियां थीं।”
उसने जिंदगी में कभी बाहर का काम नहीं किया था। पैसा एक मुद्दा था, लेकिन सबसे बड़ी समस्या उसका विश्वास का स्तर था। उसे खुद पर विश्वास नहीं था। इसके बाद भी उसने शुरआत की और धीरे-धीरे जब उसके डिज़ाइऩ की सराहना होने लगी तो उसका खुद पर आत्मविश्वास बढ़ा और उद्यम का भी विकास होने लगा।
“हर महिला को मेरी पहली सलाह है कम से कम एक बार कोशिश ज़रूर करें। आप कभी नहीं जान सकते आपके अंदर क्या है, जब तक आप कोशिश न करें। अगर मेरी जिंदगी में बुरे हालात नहीं आए होते, मैं अपनी प्रतिभा, जुनून और इन सबसे बढ़कर मेरी पहचान बेकार कर देती। लोगों को आपको पिता या पति की बजाय, आपके अपने नाम से जानना चाहिए।”
इस सीख को अगले स्तर तक ले जाते हुए श्वेता कहती हैं कि जब हम एक औरत के रूप में समानता के बारे में बात करते हैं, तो रास्ता दोतरफा होना चाहिए। औरत के तौर पर हमें अपने आदमियों को सपोर्ट करने में भी बराबरी करनी चाहिए, चाहे वो पिता, पति या फिर बेटे को आर्थिक, मानसिक या भावनात्मकर रूप से साथ देना हो।
उसे अपने पति से ताकत मिलती है जो उसे उसके उद्यम और दोनों बच्चों में मदद कर रहे हैं। वो जब उन्हें अपने डिजाइन किए हुए कपड़े पहने देखती हैं तो उन्हें गर्व का अनुभव होता है। वो कहती हैं, “आप हमेशा उत्साहित रहेंगे अगर आप वो काम करें, जिसे आप प्यार करते हैं और हां ये सिर्फ एक मुहावरा नहीं है।” उन्हें ये बात अच्छी लगती है कि उन्हें ऑफिस नहीं जाना होता और न ही अपने डिज़ाइन के साथ समझौता करना पड़ता...वो जो पसंद करती हैं, वो सब कर सकती हैं। उपभोक्ताओं की सराहना उन्हें अच्छा काम करने के लिए प्रोत्साहित करती है, लेकिन श्वेता तब भी महसूस करती हैं उन्होंने इसे बड़े डिजाइनर्स के लिए नहीं बनाया है। “मुझे पता है मैं वहां पहुच जाउंगी, मैं नहीं जानती कब...लेकिन, एक चीज़ जरूर जानती हूं कि अगर मैंने वहां पहुंचने के बारे में सोचा होता तो मैं पहली जगह से शुरुआत नहीं करती।” हालांकि श्वेता अपने पंखों को फैलाना चाहती हैं और ऊंचाई तक उड़ना चाहती हैं, लेकिन उनका सपना साधारण है। ये उद्यमी कहती है.... “मैं एक प्रसिद्ध डिजाइऩर नहीं बनना चाहती। मैं नहीं चाहती कि लोग मेरी ड्रेस ऊल-जलूल कीमतों पर खरीदें। मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरे कपड़े भारत और विदेश के ज्यादातर स्टोर्स में उचित दामों पर मिलें। मैं चाहूंगी कि विदेश में रहने वाले सभी बच्चे भारतीय डिजाइन वाले कपड़े पहनें। मैं चाहती हूं मेरा ब्रांड ग्लोबल ब्रांड हो जाए।”