दस लाख से अधिक कश्मीरियों के जीवन में खुशहाली ला रहे हैं कशिफ़ खान और उनके'माय राहत सेंटर'
काशिफ़ मानते हैं कि माय राहत सूक्ष्म उद्यमियों का निर्माण करता है। जहाँ एक ठेठ सूक्ष्म उद्यमी हाई स्कूल पास है और कंप्यूटर को समझता है और जो 75,000 रुपए तक का निवेश कर सकता है और ये आय उसे 1 साल से भी कम समय में प्राप्त हो जाती हैं। राज्य में अब तक कम्पनी इस तरह के 1,500 सूक्ष्म उद्यमियों को तैयार कर चुकी है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति हर माह 20,000 से 60,000 के बीच कमाई कर लेता है।
किसी भी अर्थव्यवस्था को सफल बनाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि उसे दूर दराज़ तक फैलाया जाये। ऐसा इसलिए क्योंकि यही वो क्षेत्र है, जहाँ भारत की अधिकांश आबादी रहती है। ऐसे में स्वास्थ्य, शिक्षा, और वित्तीय समावेशन के रूप में ये बेहद ज़रूरी हो जाता है कि समाज का सबसे निचला तबका इनका उपभोग कर सके। जम्मू कश्मीर जैसे राज्य में जहाँ भौतिक कनेक्शन एक बड़ी बाधा है, वहाँ बाज़ार के लिए स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र कैसे बनाया जाय, एक ऐसा तंत्र जो ग्रामीण जनता को जीवन में व्यापक परिवर्तन के लिए प्रेरित कर सके ये अपने आप में एक बेहद जटिल प्रश्न है। ये तभी संभव है जब कोई ई कॉमर्स के दिग्गजों जैसे फ्लिपकार्ट, अमेज़न पाकर और इंटरनेट और टेक्नोलॉजी से प्रेरणा लेकर कुछ ऐसा कर सके जिससे समाज को फायदा हो।
इस तरह जब काशिफ़ खान ने लोकल कश्मीरी लोगों के हित में सोचा, तब उस समय उन्हें पता था कि उन्हें क्या करना है। काशिफ़ कहते हैं, "ग्रामीण आबादी का सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण तभी होगा, जब उनके पास ज्ञान होगा। अतः ज्ञान और सेवाओं के उपयोग पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान केन्द्रित करते हुए उन्होंने अपने मिशन की शुरुआत की”
2012 में काशिफ़ और उनके दो दोस्तों आबिद रशीद और ज़हीर हसन ने एक ऑनलाइन पोर्टल मायराहत डॉट कॉम की शुरुआत की। ये एक ऐसा प्लेट फॉर्म है, जहाँ एक यूज़र को एक ही जगह पर कई सारी चीज़ें उपलब्ध कराई जाती हैं।
खुशहाली के लिए वैली तक काशिफ़ का सफ़र
काशिफ उद्यमता के खेल में नए नहीं हैं। कश्मीर में पले बड़े काशिफ़ ने जम्मू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक डिग्री रखते है और इसी दौरान इन्होंने उद्यमशीलता में कदम रखा। उद्यमता में इनके सफ़र की शुरुआत 2008 में हुई जहाँ इन्होने अपनी इंजीनियरिंग की पढाई के बाद एक चिप डेवलपमेंट कम्पनी की स्थापना करी जो विश्वविद्यालयों और कंपनियों में चिप डिज़ाइनरों को प्रशिक्षित करने का काम करती थी। इनका ये कारोबार दो वर्षों तक बहुत अच्छा चला, मगर बाद में कुछ राजनीतिक कारणों से इनको उसे बंद करना पड़ा। इसके बाद काशिफ़ ने एक अन्य संस्था मर्सी कॉर्प्स को ज्वाइन किया और वहाँ अपनी सेवाएँ दीं। यहाँ इनका काम कश्मीर की उद्यमशीलता को बढ़ावा देना था। जिस समय काशिफ़ यहाँ काम कर रहे थे, तब उनके मन में आया कि कुछ ऐसा किया जाय, जो उनका अपना हो। कुछ ऐसा जिससे लोकल कश्मीरी लोगों को फायदा मिले। इस विचार के बाद काशिफ़ ने 8 ही महीनों में मर्सी कॉर्प्स को छोड़ दिया और अपने एक मित्र मुहीत मेराज के साथ मिलकर ई कॉमर्स पोर्टल कश्मीर बॉक्स की शुरुआत की। इसके साथ ही इन्होंने माय राहत डॉट कॉम की भी नींव रखी। कश्मीर बॉक्स को बढ़ाने में इन्हें और इनके दोस्त को दो साल लगे और 2004 में कश्मीर बॉक्स का त्याग करके इन्होंने माय राहत को एक नए सिरे से शुरू किया।
अपने पूर्व के अनुभवों पर काम करते हुए शुरुआत में इन्होंने कश्मीर के ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया और वहाँ की चीज़ों को समझा। काशिफ़ कहते हैं कि “शुरुआत में हमने एक सर्वे किया और पाया कि गैस कनेक्शन, पशु चिकित्सा, शिक्षा समेत कई ऐसी ज़रूरतें हैं जो कश्मीरियों को नहीं मिली हैं। इसके बाद इन्होंने ऐसी 15 ज़रूरतों को चुना जो स्थानीय लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी।
माय राहत डॉट कॉम – कैसे पहुंचा लोगों के घर – घर
माय राहत डॉट कॉम एक ऐसा मॉडल है, जो लोगों को वो सुविधाएँ देता है, जिनकी उन्हें तलाश है। माय राहत ने जम्मू और कश्मीर मंत्रालय के साथ एक करार किया और उनकी सीएससी या सेवा सर्विस सेंटर का काम भारत सरकार की देखरेख में होता है। उसे आम लोगों तक पहुँचाया। इस सर्विस का मुख्य उद्देश लोगों के दरवाज़े तक इलेक्ट्रॉनिक सर्विस को पहुँचाना है। माय राहत ने एक फ्रेंचाइजी मॉडल के तहत इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज की।
आज माय राहत 8 प्रमुख क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, समाचार और मीडिया, उपयोगिताओं, उत्पादों, ई-गवर्नेंस, और यात्रा जैसे क्षेत्रों में अपनी सर्विस देता है। इसके अलावा आज इस पोर्टल ने कई सामाजिक उद्यमों के साथ संबंधों की स्थापना की है और इससे भी लोगों को काफ़ी मदद मिल रही है।
काशिफ़ के अनुसार इस पोर्टल के तीन उद्देश्य हैं। लोगों के दरवाज़े पर लाकर कंपनियों और व्यवसायों को खड़ा करना, सरकार के लिए एक मंच तैयार करना, जिससे वो जम्मू कश्मीर के हर नुक्कड़ और कोने तक आयें और तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कश्मीरी युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराना।
काशिफ़ मानते हैं कि माय राहत सूक्ष्म उद्यमियों का निर्माण करता है। जहाँ एक ठेठ सूक्ष्म उद्यमी हाई स्कूल पास है और कंप्यूटर को समझता है और जो 75,000 रुपए तक का निवेश कर सकता है और ये आय उसे 1 साल से भी कम समय में प्राप्त हो जाती हैं। राज्य में अब तक कम्पनी इस तरह के 1,500 सूक्ष्म उद्यमियों को तैयार कर चुकी है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति हर माह 20,000 से 60,000 के बीच कमाई कर लेता है।
काशिफ़ बताते हैं कि बाज़ार में मौजूद अन्य सेवाओं के अलावा एक ग्राहक को माय राहत अपनी तरह की कई अनूठी सर्विस भी देता है।अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए काशिफ़ कहते हैं कि कक्षा 12 तक पढ़ने के बाद ज्यादातर छात्र स्वाभाविक रूप से इंजीनियरिंग या चिकित्सा के क्षेत्र का चुनाव करते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग बुनियादी सुविधाओं के आभाव में ये लाभ नहीं ले पाते अतः हमने अपने पोर्टल में ऐसे लोगों को जोड़ने का प्रयास किया जो इस पोर्टल में ऐसा कंटेंट दें, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मदद मिल सके। आपको बताते चलें कि इस सेवा के लिए एक ग्राहक को 300 से 500 रुपए के बीच खर्च करने होते हैं और आज इस पोर्टल के पास ऐसे 1,500 ग्राहक हैं।
अपनी सर्विस के बारे में जानकारी देते हुए काशिफ़ कहते हैं कि आज कई सामाजिक उद्यमों अद्भुत, गुणवत्ता के उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं; लेकिन पहुँच जो कि एक महत्वपूर्ण बिंदु है आज भी एक बड़ी समस्या है। वर्तमान में इन्होंने 30 संस्थाओं के साथ साझा क़रार किया है जिसमें कई नामी गिरामी कम्पनियाँ शामिल हैं, और ये बेहद कम और मुनासिब कीमतों पर राज्य के ग्रामीण लोगों को वो सारी सुविधाएँ दे रही हैं, जिनकी उन्हें तलाश है।
इसके अलावा ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में है काम करते हुए माय राहत डॉट कॉम ने 2000 के आस पास दस्तावेज़ों को डिजिटल किया है, जिनमें आरटीई आवेदन पत्र, मोबाइल, गैस और बिजली के कनेक्शन शामिल हैं जहाँ इनका प्रिंट निकाल के सीधे ग्राहक को दिया जाता है।
इसके लाभ पर काशिफ़ का तर्क है कि किसी भी सेवा का लाभ उठाने के लिए एक आदमी को यात्रा में काफ़ी पैसा और समय बर्बाद करना पड़ता है और हमारी सुविधा में व्यक्ति को इन सभी खर्चों से छुटकारा मिलता है।
क्या हैं भविष्य की योजनाएँ ?
वर्तमान में माय राहत के 70 प्रतिशत सेंटर कश्मीर के ग्रामीण क्षेत्रों में ही हैं जहाँ इन सुविधओं का फायदा प्रतिदिन 1000 लोग उठाते हैं और 4 साल की कड़ी मेहनत के बाद अभी हाल ही में इन्होंने 1 मिलियन का आंकड़ा छुआ है। यदि बात कम्पनी के राजस्व के मामले पर हो तो ये 100 मिलियन का आंकड़ा पार कर चुके हैं।
आज केवल कश्मीर में ही माय राहत के 1,500 काउंटर हैं मगर काशिफ़ का लक्ष्य बड़ा है। काशिफ़ के अनुसार उनका टारगेट 6,000 सेंटर खोलने का है इसके अलावा वो इसे अन्य पड़ोसी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी ले जाना चाहते हैं। काशिफ़ ये भी मानते हैं कि हमने ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को सुधारा है और गाँव के लोगों को रोज़गार दिलाने में मदद करी है जो आज वक़्त की ज़रुरत है।
काशिफ़ का ये प्रयास कश्मीर की वादियों से एक बेहतरीन खबर है। माय राहत डॉट कॉम ने वहां के स्थानीय लोगों के जीवन में बेहद महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर उन्हें सूक्ष्म उद्यमियों में जगह दी है। कहा जा सकता है कि ये माय राहत डॉट कॉम का कमाल ही है जिसके चलते आज स्थानीय लोग स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला चुके हैं। अंत में हम यही कहेंगे कि काशिफ़ ने अपने काम से ये दर्शा दिया कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में मिला अनुभव उसे एक दिन सफल अवश्य बनाता है।
मूल : श्वेता विट्टा
अनुवादक : बिलाल एम जाफ़री