Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

The Road Less Travelled: मुश्किलों का नाम है जिंदगी, ये स्वीकार करने में ही भलाई

1978 में छपी स्कॉट पेक की ये किताब 5 साल बाद ही बेस्टसेलर बन गई थी और अब तो न जाने कितनी ऑल टाइम बेस्ट किताबों की सूची में इसका नाम शामिल रहता है. किताब कहती है, जिंदगी में मुश्किलें आनी तय हैं. जितनी जल्दी हम इन परेशानियों का जिम्मा खुद लेना शुरू कर देंगे उतनी जल्दी इनसे निपट सकेंगे.

The Road Less Travelled: मुश्किलों का नाम है जिंदगी, ये स्वीकार करने में ही भलाई

Saturday October 22, 2022 , 4 min Read

कई ऐसी किताबें हैं जिन्हें कई पाठक अपनी जिंदगी बदलने का श्रेय देते रहे हैं. ऐसी ही एक किताब है दी रोड लेस ट्रैवल्ड, जिसके ऑथर हैं स्कॉट पेक. पेक अपनी किताब में व्यक्तिगत स्पिरिचुअल ग्रोथ, प्यार, पारंपरिक वैल्यू जैसी चीजों को देखने समझने का अलग नजरिया देते हैं. यह किताब पहली बार 1978 में छपी थी और 5 साल बाद यानी 1983 में बेस्टसेलर बन गई.

इस किताब की 70 लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और 23 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. अगर आप भी पर्सनल डिवेलपमेंट यानी खुद पर काम करने के लिए तैयार हैं तो आपको ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए.

किताब का पहला चैप्टर ही एक कड़वे सत्य के साथ होता है. कई लोग इस गलतफहमी में जीना पसंद करते हैं कि जिंदगी आसान होनी चाहिए और एक इंसान के लिए ये सोच उसे निराशा के अलावा कुछ नहीं देगी. जैसा कि गौतम बुद्ध कहते हैं जिंदगी सिर्फ दर्द और पीड़ा है, उसी तरह इस किताब के लेखक स्कॉट पेक दो तथ्यों पर जोर देते हुए कहते हैं कि इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता है और वो हैंः

  • जिंदगी मुश्किल है, इसे स्वीकार करके ही हम इससे डील करने और आगे बढ़ने के तरीके सीख पाएंगे.
  • जिंदगी में परेशानियों का आना तय है.

अक्सर हम अपने दर्द भागते हैं या उसे अनदेखा कर देते हैं. ऐसा करने से परेशानियां खत्म नहीं होतीं बस कुछ समय के लिए टल जाती हैं. वो कहीं न कहीं वो बने रहती हैं और हमारी जिंदगी पर अपना असर डाल रही होती हैं. किसी भी परेशानी को हल करने में सबसे पहला स्टेप होता है इस बात की स्वीकारना कि हां तकलीफ है. कुल मिलाकर किसी भी मुश्किल परिस्थिति में हमारे पास दो ही विकल्प होते हैंः

  • परेशानियों को अनदेखा करें, जो कि बाद में साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर का कारण बनता है. 
  • परेशानियों का सामना करें, जिससे शॉर्ट टर्म में तो तकलीफ होती है मगर लंबे समय में व्यक्तिगत तौर पर इसका फायदा होता है. 

स्कॉट पेक ने अपनी किताब में तकलीफ और परेशानी का सामना करने के कुछ तरीके बताए हैं, ये चार टूल हैं:

1) डीलेड ग्रेटिफिकेशन

2) एक्सेप्टेंस ऑफ रेस्पॉन्सिबिलिटी

3) डेडिकेशन टू रियल्टी

4) बैलेंसिंग

1. चंद समय का गम जिंदगी भर के गम से बड़ा

हममें से कई लोग अपने इंपल्स यानी तुरंत फैसला लेने की भावना से नियंत्रित होते हैं. जैसे कि किसी एक दम से मीठा खाने का मन करता है और हम कुछ ऑर्डर कर लेते हैं. उस समय के लिए मन तो खुश हो जाता है मगर बाद में उसका असर हमारी सेहत पर दिखता है.

इसलिए डीलेड ग्रेटिफिकेशन एक ऐसी लाइफ स्किल है जो आपको थोड़े समय के लिए मुश्किल झेलकर आगे एक उज्जवल भविष्य की राह सुनिश्चित करेगा. शॉर्ट टर्म तकलीफ को स्वीकार करने का हुनर सीखकर आप जिंदगी में तरक्की करेंगे और धीरे-धीरे परेशानियों का सामना करने में एक्सपर्ट हो जाएंगे. 

2. परेशानियों के लिए खुद को जिम्मेदार मानें

एक साइकिएट्रिस्ट के तौर पर पेक कहते हैं कि उनका सामना कई ऐसे मरीजों से हुआ जो ये मानने को राजी नहीं थे कि उनकी जिंदगी में जो भी परेशानी है उसमें उनका भी हाथ है या फिर कुछ ऐसे मरीज थे जो हर परेशानी के लिए खुद को ही जिम्मेदार मान रहे थे. असल हुनर खुद को बहुत ज्यादा जिम्मेदार या कम जिम्मेदार ठहराने के बीच संतुलन बनाने में होता है. संतुलन नहीं बनाने पर कुछ साइकोलॉजिकल दिक्कतें हो सकती हैं.

3. सच्चाई को स्वीकार करने की ताकत

थोड़े देर के आराम के लिए अपनी परेशानी को अनदेखा या अस्वीकार करने की बजाय सच को स्वीकार करके थोड़े समय के लिए असहज होना ज्यादा बेहतर होता है. अपने आप के सामने ईमानदार होने के लिए सेल्फ-डिसिप्लिन स्किल बहुत जरूरी होती है. लगातार आत्म अवलोकन करने और अपनी सोच में बदलाव कर हम इस स्थिति से निपट सकते हैं.  

 4. संतुलन है जरूरी

पेक के मुताबिक जिस चीज के लिए हम जिम्मेदार हैं उसे स्वीकार करने के अलावा हमें ये स्वीकार करना भी सीखना होगा कि किस चीज के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं. हम अपनी परेशानी को सुलझाने के लिए जिम्मेदार हैं मगर हमें ये भी समझना होगा की दूसरों की परेशानी से निपटना हमारी जिम्मेदारी नहीं है. बैलेंसिंग सीखने के लिए आपको अनहेल्दी चीजों को छोड़ना होगा.

आज भी ज्यादातर लोग या यूं कहें की 90 फीसदी लोग इस रास्ते पर जाने से बचते हैं क्योंकि ये रास्ता आपसे आपका समय मांगता है आपकी कोशिश मांगता है और बोरिंग भी है. लगातार अपने आपको सवालों के घेरे में रखना, सवाल खड़े करना और उसे बदलना काफी मुश्किल काम होता है. साइकोथरेपी की यह यात्रा अक्सर कम ही लोग कर पाते हैं मगर जिसने इस रास्ते को अपना लिया उसकी जिंदगी बदलना तय है.


Edited by Upasana