बच्चों ने पेश की संवेदनशीलता की मिसाल, अपने दम पर कराया आवारा कुत्तों का टीकाकरण
पुणे के एक गांव के स्कूली बच्चों ने ऐसी ही एक मिसाल पेश की है। एक छोटे से गांव के इन छोटे बच्चों ने कुछ ऐसा करके दिखाया, जिसे देखकर बड़ी उम्र के लोग एक अच्छा सबक ले सकते हैं।
पुणे के शिरूर ज़िले के मुखई गांव में एक स्कूल है, आरजी पलांडे आश्रम स्कूल। इस स्कूल के बच्चों को एहसास हुआ कि गांव के आवारा कुत्तों का टीकाकरण बेहद ज़रूरी है और इसलिए इस काम को किसी भी सूरत में पूरा किया जाए।
शिक्षा और जागरूकता का रिश्ता बेहद अटूट होता है या यूं भी कहा जा सकता है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं। शिक्षा के माध्यम से समाज, उसमें व्याप्त समस्याओं और समाज की ज़रूरतों के प्रति आपका एक नया नज़रिया विकसित होता है, जिसके बाद आप अपने आस-पास के लोगों की समस्या को अपनी समस्या के रूप में देख पाते हैं। शिक्षा एक माध्यम है, जिसके ज़रिए कोई भी शख़्स अपनी उम्र की सीमाओं से ऊपर उठकर समाज के सामने उदाहरण पेश कर सकता है। पुणे के एक गांव के स्कूली बच्चों ने ऐसी ही एक मिसाल पेश की है। एक छोटे से गांव के इन छोटे बच्चों ने कुछ ऐसा करके दिखाया, जिसे देखकर बड़ी उम्र के लोग एक अच्छा सबक ले सकते हैं।
पुणे के शिरूर ज़िले के मुखई गांव में एक स्कूल है, आरजी पलांडे आश्रम स्कूल। इस स्कूल के बच्चों को एहसास हुआ कि गांव के आवारा कुत्तों का टीकाकरण बेहद ज़रूरी है और इसलिए इस काम को किसी भी सूरत में पूरा किया जाए। बच्चों ने तय किया कि वे अपनी इस मुहिम को ख़ुद के ही बल पर अंजाम देंगे। इस सामूहिक फ़ैसले के बाद उन्होंने जानवरों के प्रति हिंसा की रोकथाम अधिनियम (1960) के बारे में जानकारी इकट्ठा की। साथ ही, बच्चों ने यह भी पता लगाया कि इस काम के आधिकारिक इकाई कौन सी है। सभी महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाने के बाद स्कूल के बच्चों ने सरकारी पशु चिकित्सालय में लिखित अर्ज़ी दाखिल की। यह पशु चिकित्सालय ज़िला परिषद द्वारा संचालित किया जाता है।
बच्चों का असाधारण प्रयास देखकर सरकारी पशु चिकित्सालय के अधिकारी और कर्मचारी आश्चर्यचकित हो गए। पशु चिकित्सालय के स्वास्थ्य अधिकारी ने बच्चों के प्रयास की जमकर सराहना की और उनकी याचिका को संज्ञान में भी लिया। उन्होंने बच्चों से बातचीत कर पूरा मामले की जानकारी ली और इसके बाद बच्चों को सरकारी औपचारिकताओं की पूरी जानकारी भी दी। फलस्वरूप गांव के आठ आवारा कुत्तों का टीकाकरण किया गया।
आमतौर पर हम देखते हैं कि हमारे मोहल्लों में जब आवारा कुत्तों की संख्या अधिक हो जाती है, तो रहवासियों में उनका ख़ौफ़ बैठ जाता है। यह ख़ौफ़ जायज़ भी है क्योंकि ये कुत्ते अगर किसी शख़्स को काट लें या फिर इनका दांत आपके शरीर में लग जाए तो रेबीज़ का ख़तरा अधिक होता है। इन आवारा कुत्तों या जानवरों की मेडिकल हिस्ट्री की भी कोई जानकारी नहीं होती। यहां तक कि ऐसे हालात बनने पर लोग इन्हें मारने तक का फ़ैसला ले लेते हैं। लेकिन कच्ची उम्र के इन बच्चों ने अपनी मुहिम से समाज को संदेश दिया है कि उपेक्षा किसी समस्या का हल नहीं।
इन जानवरों को जान से मार देना हमारी असंवेदनशीलता को दर्शाता है। इन बच्चों ने समस्या से भागने के बजाय, इसका हल निकालने का फ़ैसला लिया और उसे अंजाम तक पहुंचाया। स्कूली बच्चों द्वारा इतनी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाहन, यह साबित करता है कि आने वाली पीढ़ियों के सकारात्मक निर्माण शिक्षा की बेहद अहम भूमिका होती है। जागरूकता गांव और शहर या फिर उम्र की मोहताज नहीं होती। समय आने पर छोटी उम्र वाले बच्चे भी वयस्कों के सामने ऐसी मिसाल पेश कर सकते हैं, जो उन्हें आश्चर्यचकित कर दे।
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