National Letter Writing Day – नेहरू ने ये चिट्ठी इंदिरा को जेल से लिखकर भेजी थी, जब वो 11 साल की थीं
आज नेशनल लेटर राइटिंग डे है. इस मौके पर पढि़ए जवाहरलाल नेहरू का ये खत बेटी इंदिरा के नाम.
आजादी की लड़ाई के दौरान जवाहरलाल नेहरू ने कई साल जेल में गुजारे. अपनी किताब ‘डिसकवरी ऑफ इंडिया’ नेहरू ने अपने जेल प्रवास के दौरान ही लिखी थी. ये वो वक्त था, जब इंदिरा बहुत छोटी थीं और उनकी मां कमला नेहरू तपेदिक की बीमारी से ग्रस्त होने के कारण इलाहाबाद वाले घर से दूर नैनीताल के पास भुवौली के एक सेनोटोरियम में एडमिट थीं.
नेहरू इस दौरान जेल से इंदिरा को लंबे-लंबे खत लिखा करते थे. इन खतों में हालचाल के अलावा देश-दुनिया के बारे में, मानव इतिहास के बारे में बहुत सारी बातें होतीं. वो बातें जब हम प्राचीन इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं, नेहरू बहुत सरल और आसान शब्दों में अपनी बेटी को लंबे खतों में लिखा करते थे.
पुपुल जयकर ने इंदिरा गांधी की जीवनी लिखी है. उस जीवनी में उस दौर का बहुत विस्तृत और मार्मिक वर्णन है, जब नन्ही इंदिरा के माता-पिता दोनों ही उसके पास नहीं है और वो अपने पिता की चिट्ठियों का इंतजार करती है.
आज नेशनल लेटर राइटिंग डे है. इस दिन के बहाने आइए आपको पढ़ाते हैं नेहरू का लिखा एक खत. इंदिरा के नाम लिखे नेहरू के पत्रों की किताब उनके जीवन काल में ही प्रकाशित हो गई थी. नाम था- ‘Letters from a father to his daughter.’ इस किताब का हिंदी अनुवाद स्वयं लेखक प्रेमचंद ने किया था.
ये है उस किताब का पहला खत, जिसका नाम है- “संसार पुस्तक है”
प्यारी बेटी इंदु,
जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अकसर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश करता हूँ. लेकिन अब जब तुम मसूरी में हो और मैं इलाहाबाद में, हम दोनों उस तरह बातचीत नहीं कर सकते. इसलिए मैंने इरादा किया है कि कभी-कभी तुम्हें इस दुनिया की और उन छोटे-बड़े देशों की जो इन दुनिया में हैं, छोटी-छोटी कथाएँ लिखा करूँ.
तुमने हिंदुस्तान और इंग्लैंड का कुछ हाल इतिहास में पढ़ा है. लेकिन इंग्लैंड केवल एक छोटा-सा टापू है और हिंदुस्तान, जो एक बहुत बड़ा देश है, फिर भी दुनिया का एक छोटा-सा हिस्सा है. अगर तुम्हें इस दुनिया का कुछ हाल जानने का शौक है, तो तुम्हें सब देशों का, और उन सब जातियों का जो इसमें बसी हुई हैं, ध्यान रखना पड़ेगा, केवल उस एक छोटे-से देश का नहीं जिसमें तुम पैदा हुई हो.
मुझे मालूम है कि इन छोटे-छोटे खतों में बहुत थोड़ी-सी बातें ही बतला सकता हूँ. लेकिन मुझे आशा है कि इन थोड़ी- सी बातों को भी तुम शौक से पढ़ोगी और समझोगी कि दुनिया एक है और दूसरे लोग जो इसमें आबाद हैं हमारे भाई-बहन हैं. जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया और उसके आदमियों का हाल मोटी-मोटी किताबों में पढ़ोगी. उसमें तुम्हें जितना आनंद मिलेगा उतना किसी कहानी या उपन्यास में भी न मिला होगा.
यह तो तुम जानती ही हो कि यह धरती लाखों करोड़ों, वर्ष पुरानी है, और बहुत दिनों तक इसमें कोई आदमी न था. आदमियों के पहले सिर्फ जानवर थे, और जानवरों से पहले एक ऐसा समय था जब इस धरती पर कोई जानदार चीज न थी. आज जब यह दुनिया हर तरह के जानवरों और आदमियों से भरी हुई है, उस जमाने का खयाल करना भी मुश्किल है जब यहाँ कुछ न था.
लेकिन विज्ञान जानने वालों और विद्वानों ने, जिन्होंने इस विषय को खूब सोचा और पढ़ा है, लिखा है कि एक समय ऐसा था जब यह धरती बेहद गर्म थी और इस पर कोई जानदार चीज नहीं रह सकती थी. और अगर हम उनकी किताबें पढ़ें, पहाड़ों और जानवरों की पुरानी हड्डियों को गौर से देखें तो हमें खुद मालूम होगा कि ऐसा समय जरूर रहा होगा.
तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो. लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था; किताबें लिखता? तब हमें उस जमाने की बातें कैसे मालूम हों? यह तो नहीं हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात सोच निकालें. यह बड़े मजे की बात होती, क्योंकि हम जो चीज चाहते सोच लेते, और सुंदर परियों की कहानियाँ गढ़ लेते. लेकिन जो कहानी किसी बात को देखे बिना ही गढ़ ली जाए वह ठीक कैसे हो सकती है?
लेकिन खुशी की बात है कि उस पुराने जमाने की लिखी हुई किताबें न होने पर भी कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनसे हमें उतनी ही बातें मालूम होती हैं जितनी किसी जमाने की लिखी हुई किसी किताब से होतीं. ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियाँ, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियाँ और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है.
मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार रूपी पुस्तक को पढ़ें. मुझे आशा है कि पत्थरों और पहाड़ों को पढ़ कर तुम थोड़े ही दिनों में उनका हाल जानना सीख जाओगी.
सोचो, कितनी मजे की बात है. एक छोटा-सा रोड़ा जिसे तुम सड़क पर या पहाड़ के नीचे पड़ा हुआ देखती हो, शायद संसार की पुस्तक का छोटा-सा पृष्ठ हो, शायद उससे तुम्हें कोई नई बात मालूम हो जाय. शर्त यही है कि तुम्हें उसे पढ़ना आता हो.
कोई जबान, उर्दू, हिंदी या अंग्रेजी, सीखने के लिए तुम्हें उसके अक्षर सीखने होते हैं. इसी तरह पहले तुम्हें प्रकृति के अक्षर पढ़ने पड़ेंगे, तभी तुम उसकी कहानी उसकी पत्थरों और चट्टानों की किताब से पढ़ सकोगी. शायद अब भी तुम उसे थोड़ा-थोड़ा पढ़ना जानती हो.
जब तुम कोई छोटा- सा गोल चमकीला रोड़ा देखती हो, तो क्या वह तुम्हें कुछ नहीं बतलाता? यह कैसे गोल, चिकना और चमकीला हो गया और उसके खुरदरे किनारे या कोने क्या हुए? अगर तुम किसी बड़ी चट्टान को तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर डालो तो हर एक टुकड़ा खुरदरा और नुकीला होगा. यह गोल चिकने रोड़े की तरह बिल्कुल नहीं होता. फिर यह रोड़ा कैसे इतना चमकीला, चिकना और गोल हो गया?
अगर तुम्हारी आँखें देखें और कान सुनें तो तुम उसी के मुँह से उसकी कहानी सुन सकती हो. वह तुमसे कहेगा कि एक समय, जिसे शायद बहुत दिन गुजरे हों, वह भी एक चट्टान का टुकड़ा था. ठीक उसी टुकड़े की तरह, उसमें किनारे और कोने थे, जिसे तुम बड़ी चट्टान से तोड़ती हो.
शायद वह किसी पहाड़ के दामन में पड़ा रहा. तब पानी आया और उसे बहा कर छोटी घाटी तक ले गया. वहाँ से एक पहाड़ी नाले ने ढकेल कर उसे एक छोटे-से दरिया में पहुँचा दिया. इस छोटे से दरिया से वह बड़े दरिया में पहुँचा.
इस बीच वह दरिया के पेंदे में लुढ़कता रहा, उसके किनारे घिस गए और वह चिकना और चमकदार हो गया. इस तरह वह कंकड़ बना जो तुम्हारे सामने है. किसी वजह से दरिया उसे छोड़ गया और तुम उसे पा गईं.
अगर दरिया उसे और आगे ले जाता तो वह छोटा होते-होते अंत में बालू का एक कण हो जाता और समुद्र के किनारे अपने भाइयों से जा मिलता, जहाँ एक सुंदर बालू का किनारा बन जाता, जिस पर छोटे-छोटे बच्चे खेलते और बालू के घरौंदे बनाते.
अगर एक छोटा-सा रोड़ा तुम्हें इतनी बातें बता सकता है, तो पहाड़ों और दूसरी चीजों से, जो हमारे चारों तरफ हैं, हमें और कितनी बातें मालूम हो सकती हैं.
तुम्हारा पिता.