बजट 2020: सूक्ष्म, लघु उद्योगों और छोटे व्यवसायों के लिए जीएसटी सबसे बड़ी चिंता क्यों बनी हुई है
जीएसटी को जुलाई 2017 में व्यवसायों के लिए रिटर्न फाइलिंग प्रक्रिया को आसान बनाने और पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के प्रयास में लागू किया गया था। जल्द ही, अकाउंटेबिलिटी और कंप्लायंस स्मॉल बिजनेसेस और एमएसएमई के लिए जटिल और महंगा हो गया।
1 फरवरी, 2020 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की दूसरी यूनियन बजट स्पीच को देखते हुए, भारतीय सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग (MSME) अपनी उम्मीदों को जताने में पीछे नहीं हट रहे हैं। गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) का युक्तिकरण (rationalisation) MSME क्षेत्र के लिए शीर्ष मुद्दा है। MSME सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 29 प्रतिशत योगदान देता है।
जीएसटी को जुलाई 2017 में व्यवसायों के लिए रिटर्न फाइलिंग प्रक्रिया को आसान बनाने और पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के प्रयास में लागू किया गया था। जल्द ही, अकाउंटेबिलिटी और कंप्लायंस स्मॉल बिजनेसेस और एमएसएमई के लिए जटिल और महंगा हो गया। और, इसी के चलते आज, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस एमएसएमई चिंतित हैं।
रेशनलाइजिंग जीएसटी स्लैब
डिजिटल मार्केटिंग और प्रोडक्शन फर्म थिंक ट्री मीडिया के सह-संस्थापक मयूर टेकवानी का कहना है,
“शुरुआती चरणों के दौरान, MSME और छोटे व्यवसायों को हमेशा स्मूथ कैश फ्लो मैनेजमेंट और वर्किंग कैपिटल मैनेजमेंट में एक बड़ी चुनौती होती है। अगर यूनियन बजट जीएसटी दरों को ढीला कर देता है या जीएसटी टैक्स रोक देता है, तो यह निश्चित रूप से उभरते हुए व्यवसायों को मदद करेगा।"
जब जीएसटी लागू किया गया था, तो इसे अलग-अलग आइटम पर अलग-अलग रेट के साथ पेश किया गया था। फिर सरकार ने जीएसटी स्लैब के साथ बदलाव किया, और 37वीं जीएसटी परिषद की बैठक में, जीएसटी दरों को कई वस्तुओं पर संशोधित किया गया। बायोडिग्रेडेबल प्लेट्स और कप, आउटडोर कैटरिंग, डायमंड जॉब वर्क, होटल, सेमी-प्रीसियस स्टोन्स आदि जैसी वस्तुओं पर जीएसटी कम कर दिया गया। पिछली जीएसटी परिषद की बैठकों में अन्य रेंज के आइटम पर दरों को कम कर दिया था।
अंतरिम बजट 2019 पेश करते हुए, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि दैनिक उपयोग की वस्तुएं शून्य से पांच प्रतिशत जीएसटी श्रेणी में होंगी। इसका मतलब हुआ कि केवल दैनिक उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी और उन्हें बनाने वाले व्यवसायों की सेल्स में भी वृद्धि होगी। हालांकि, अन्य मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेस सेगमेंट्स को 18 प्रतिशत तक के हाई जीएसटी रेट्स के साथ जूझना पड़ा, और वे अभी भी इससे जूझ रहे हैं। परिणामस्वरूप, जीएसटी दरों को तर्कसंगत (rationalising) बनाना एमएसएमई और छोटे व्यवसायों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया।
दिल्ली स्थित बाथ फिटिंग और सैनिटरीवेयर निर्माता, ग्राफ के संस्थापक और सीईओ विनय जैन कहते हैं,
"सैनिटरी उद्योग में होने के नाते, हम केंद्रीय बजट में सैनिटरीवेयर प्रोडक्ट्स को 18 से 12 प्रतिशत के टैक्सेशन में करने की उम्मीद कर रहे हैं। इससे न केवल समाज के विकास में मदद मिलेगी, बल्कि रियल एस्टेट बाजार को भी मदद मिलेगी जो अभी मंदी का शिकार हो रखा है।”
हाई जीएसटी रेट्स न केवल मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को बल्कि सर्विस सेगमेंट को भी प्रभावित करते हैं जोकि इसी तरह का चिंता का विषय है। स्थानीय सेवा व्यवसायों के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म सुलेखा.कॉम के सीईओ और संस्थापक सत्य प्रभाकर कहते हैं,
"कुछ आइडियाज जो इस बार केंद्रीय बजट 2020 में पेश किए जा सकते हैं, उनमें मार्केटिंग इन्वेस्टमेंट, सब्सिडी वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम और खतरे वाली जॉब करने वाले कामगारों के लिए बीमा।"
रेस्टोरेंट स्पेस में भी चिंताएं हैं। होटलों के लिए ऑटोमैटेड रिवेन्यू सिस्टम एओसेल (Aiosell) टेक्नोलॉजीज के संस्थापक सिद्धार्थ गोयनका कहते हैं,
"केंद्रीय बजट में, रेस्तरां उद्योग को पांच प्रतिशत जीएसटी (बिना इनपुट क्रेडिट) या 12 प्रतिशत (इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ) चार्ज करने का विकल्प दिया जाना चाहिए, क्योंकि जीएसटी पर इनपुट क्रेडिट लेने की कमी ने व्यवसाय और लागत में वृद्धि की है कई प्रतिष्ठानों को अविभाज्य बना दिया।"
ऑनलाइन शिक्षा क्षेत्र में 18 प्रतिशत का हाई जीएसटी स्लैब समस्याग्रस्त साबित हो रहा है। जैसा कि उद्यमों ने शैक्षिक सामग्री को ऑनलाइन लाने में तेजी से निवेश किया है, लेकिन जीएसटी रेट्स ऑनलाइन प्रोडक्ट्स की लागत को बढ़ाती है जिससे खरीदार अपने कदम पीछे खींच लेते हैं।
इंडियन आफ्टर स्कूल ऐप नोटबुक के संस्थापक और सीईओ अचिन भट्टाचार्य कहते हैं,
"मैं चाहता हूं कि केंद्रीय बजट जनता को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के सामाजिक-आर्थिक लाभों को ध्यान में रखते हुए इस जीएसटी स्लैब पर गंभीरता से पुनर्विचार करे। मैं ऑनलाइन पाठ्यक्रमों पर जीएसटी में कमी देखना चाहता हूं।"
भले ही सरकार ने अगस्त 2019 में कहा था कि घोषणा की तारीख से एक महीने के अंदर सभी पेंडिंग जीएसटी रिफंड का भगतान किया जाएगा लेकिन सच्चाई ये है कि जीएसटी रिफंड ने एमएसएमई सेक्टर को नुकसान पहुंचाया है। निर्मला सीतारमण ने यह भी वादा किया था कि सभी जीएसटी रिफंड का भुगतान आवेदन की तारीख से 60 दिनों के भीतर किया जाएगा।
डिजाइनर हैंडबैग ब्रांड एवरपीट के संस्थापक यशस अलूर कहते हैं,
“इसके बावजूद, जीएसटी रिफंड सिस्टम को लागू नहीं किया गया है, जो एमएसएमई के लिए कैश फ्लो को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। यह एक बहुत बड़ा पेन प्वाइंट है क्योंकि यह व्यवसाय को संचालित करने के लिए उपलब्ध वर्किंग कैपिटल को भी प्रभावित करता है।”
फैशन ईकॉमर्स कंपनी द फैशन फैक्ट्री चलाने वाले जुबैर रहमान भी इस बात से सहमत हैं। वे कहते हैं,
"मैं जीएसटी रिफंड की तेजी से प्रोसेसिंग को देखना चाहता हूं क्योंकि ई-कॉमर्स विक्रेता सोर्स (टीसीएस) पर कलेक्टेड टैक्स के कारण प्रभावित होते हैं। सभी ऑनलाइन विक्रेता केंद्रीय बजट में उम्मीद करते हैं कि रिफंड को जीएसटी पोर्टल से टीसीएस पर तेजी से प्रोसेसिंग प्रदान करे।"
निर्यात समस्याओं का समाधान
पिछले दो वर्षों में, जीएसटी कार्यान्वयन ने एमएसएमई निर्यात को भी प्रभावित किया, क्योंकि अग्रिम जीएसटी और इनपुट टैक्स क्रेडिट के रिफंड में देरी हुई। इससे कैश-ड्रिवन वर्किंग कैपिटल रिक्वायरमेंट्स प्रभावित होती हैं। उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि बेहतर मार्केटिंग असिस्टेंस से स्थिति को कुछ हद तक सुधारा जा सकता है और MSME निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
कॉमर्शियल डेटा और एनालिटिक्स फर्म डन एंड ब्रैडस्ट्रीट इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री अरुण सिंह कहते हैं,
“मुझे उम्मीद है कि केंद्रीय बजट मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव जैसी योजनाओं के लिए अधिक फंड जारी करेगा। इसका कारण यह है कि फंड्स का मौजूदा लेवल एक्टिव एक्सपोर्टर्स (सक्रिय निर्यातकों) की संख्या के अनुरूप नहीं है। हम विदेशी लाइसेंस, इंटरनेशनल सर्टिफिकेशन आदि प्राप्त करने के लिए योजनाओं के पुनर्मूल्यांकन के माध्यम से एमएसएमई निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा में सुधार के लिए कुछ उपायों की भी अपेक्षा करते हैं।"
भारतीय आईटी सेक्टर्स के प्लेयर्स लोकल प्रोडक्शन और डेवलपमेंट के लिए और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए समग्र वातावरण का आह्वान कर रहे हैं। एंटरप्राइज सॉफ्टवेयर सलूशन कंपनी न्यूजेन सॉफ्टवेयर के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर दिवाकर निगम कहते हैं,
“आईटी एक्सपोर्ट पर टैक्स छूट के माध्यम से सॉफ्टवेयर इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी बनाने वाले संगठनों को प्रोत्साहित करना कुछ ऐसा है जिसे मैं केंद्रीय बजट में देखने चाहता हूं। मुझे उम्मीद है कि सरकार रेगुलेटरी कंप्लायंस को कम करने और व्यापार करने में आसानी के लिए एक समग्र वातावरण बनाने के लिए कदम उठाएगी।”
इसी तरह के मुद्दों को संबोधित करने के लिए, नवंबर 2019 में केंद्रीय एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार एमएसएमई निर्यात बढ़ाने और स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करके आयात में कमी लाने के लिए दो नीतियों पर काम कर रही है।
एमएसएमई और लघु व्यवसाय क्षेत्र, सांसे रोककर देखेंगे यदि केंद्रीय बजट निर्यात को बढ़ावा देने और जीएसटी संकट को दूर करने के लिए नीतियों को पेश करेगा। केंद्रीय बजट में 10,000 करोड़ रुपये के बड़े फंड के माध्यम से क्षेत्र में ऋण की पहुंच की कमी को भी दूर किया जा सकता है। यह MSMEs की नई परिभाषा का भी खुलासा कर सकता है, जो उन्हें टर्नओवर के आधार पर वर्गीकृत करती है।