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जब देर रात महिला डीएसपी निकलीं सड़क पर तो ये हुआ

जब देर रात महिला डीएसपी निकलीं सड़क पर तो ये हुआ

Tuesday December 12, 2017 , 4 min Read

लड़की को घर से निकलते हजार हिदायतें दी जाती हैं लेकिन शायद ही कोई भी मां बाप अपने लड़के को ये समझाकर भेजते होंगे कि जैसे तुम्हें आजादी है कभी भी कहीं भी निकलने की, वैसे ही लड़कियों की भी। 

पुलिस ऑफिसर मेरिन जोसेफ

पुलिस ऑफिसर मेरिन जोसेफ


लोगों को इसी बारे में जागरूक करने के लिए केरल के कोझिकोड इलाके की डीएसपी मेरिन जोसेफ वे एक बहुत ही शानदार मुहिम शुरू की है। मेरिन ने दो लेडी कॉन्सटेबल वीके सौम्या और एम सबिता के साथ रात में केरल की सड़कों पर निकलने का फैसला किया।

अपने इस रात वाले प्रयोग में डीएसपी मेरिन और उनकी दोनों महिला साथियों को देखकर सीटियां बजाई गईं, उन पर फब्तियां कसी गईं। इन तीनों महिलाओं के अलावा सड़क पर कोई भी और महिलाएं नजर नहीं आ रही थीं। 

हमारे यहां लड़कियों पर तमाम तरह की पाबंदियों में सबसे टॉप पर जो चीज रहती है वो है, घर टाइम से आ जाना। ये लक्ष्मण रेखा वाला टाइम शहरी लड़कियों के लिए अमूमन नौ दस बजे होता है और ग्रामीण इलाके में इसकी जद और कम होकर छः सात बजे तक में ही सिमट जाती है। लड़कियां देर रात घर के बाहर नहीं निकल सकतीं, इसके पीछे की वजहों की एक लंबी फेहरिश्त है, मसलन छेड़छाड़ होगी, लोग क्या सोचेंगे, अच्छे घरों की लड़कियां ऐसे नहीं निकला करतीं इत्यादि इत्यादि। लड़की को घर से निकलते हजार हिदायतें दी जाती हैं लेकिन शायद ही कोई भी मां बाप अपने लड़के को ये समझाकर भेजते होंगे कि जैसे तुम्हें आजादी है कभी भी कहीं भी निकलने की, वैसे ही लड़कियों की भी। इसलिए भूलकर भी उन्हें छेड़ना नहीं, कमेंट पास मत करना, घूरना मत।

लोगों को इसी बारे में जागरूक करने के लिए केरल के कोझिकोड इलाके की डीएसपी मेरिन जोसेफ वे एक बहुत ही शानदार मुहिम शुरू की है। उनका कहना है कि एक महिला पुलिस और एक आम महिला के रात में बाहर निकलने पर लोगों के अलग-अलग व्यवहार होते हैं। मेरिन ने दो लेडी कॉन्सटेबल वीके सौम्या और एम सबिता के साथ रात में केरल की सड़कों पर निकलने का फैसला किया। केरल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। इसीलिए उन्होंने ये फैसला किया।

ये तीनों महिला पुलिस सादे कपड़ों में सड़क पर निकलीं। सौम्या और सबिता दोनों नौ बजे ही निकल गईं, डीएसपी मेरिन ने उन्हें दो घंटे बाद ज्वॉइन किया। अपने इस अनुभव के बारे में मेरिन ने न्यूजमिनट से बताया कि मैंने ये सुनिश्चित कर लिया था कि कोई भी मुझे पहचान न पाए। एक आम महिला की तरह मैं रात में घूमी। जब मैं वर्दी में ऑन ड्यूटी होती हूं तो लोगों का बिल्कुल अलग होता है लेकिन एक साधारण औरत के लिए रात में बाहर निकलने पर लोग अपने असली रूप में आ जाते हैं। अपने इस रात वाले प्रयोग में डीएसपी मेरिन और उनकी दोनों महिला साथियों को देखकर सीटियां बजाई गईं, उन पर फब्तियां कसी गईं। इन तीनों महिलाओं के अलावा सड़क पर कोई भी और महिलाएं नजर नहीं आ रही थीं। लोग उन तीनों को घूर घूर कर देख रहे थे। मानो औरत होकर उन्हें रात में बाहर निकलने का कोई हक ही न हो।

मेरिन का मानना है कि लगातार हो रही पेट्रोलिंग के बाद महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार में कुछ कमी तो आई है। लेकिन इतनी सख्ती के बावजूद ये हाल है। पुरुषवादी मानसिकता ने लोगों को इतना घेर रखा है कि वो हर एक चीज एकमात्र अपना हक समझते हैं। औरतों को कमजोर समझते हैं और उनको दबाकर रखना चाहते हैं। उनको औरतों की आजादी से डर लगता है। उनको डर लगता है कि कहीं उनके जोरजबरदस्ती से बनाए गए सामंती किले में दरार न पड़ जाए।

डीएसपी मेरिन और उनके ही जैसी तमाम महिलाएं इस किले पर अपनी काबिलियत से लगातार चोट कर रही हैं। जल्द ही ये किला भी ढह जाने वाला है। लड़कियों! जब मन कहे तब निकलो घर से बाहर। शाम में निकलो, दिन में निकलो, आधी रात को निकलो। जो रोके उसकी न सुनो, जो टोके उसको चुप करा दो, जो डराए उसको जीतकर दिखा दो। जितनी लड़कियां रात में निकलेंगी माबौल उतना ही सही होगा। फिर सारे समयसीमा खत्म हो जाएंगी। ये दुनिया सबकी बराबर की है। किसी को भी दबाकर रखने का हक किसी के पास नहीं।

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