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'Bridgedots', तकनीक के बल पर सबकुछ संभव

आईआईटी बीएचयू के दो पूर्व छात्रों ने प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों को साथ जोड़कर वर्ष 2011 में की स्थापनाफिलहाल नोएडा और आईआईटी बीएचयू में कार्यालय और एक प्रोगशाला से 6 लोगों की यह टीम हो रही है संचालित चावल की भूसी से सिलिका निकालकर उसे टायर बनाने में उपयोग करने की तकनीक विकसित करके हुए हैं वैश्विक स्तर पर लोकप्रियवर्ष 2015 के लिये डीएसटी-लाॅकहीड मार्टिन इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं

'Bridgedots', तकनीक के बल पर सबकुछ संभव

Thursday August 20, 2015 , 6 min Read

अमूमन कंपनियां नई तकनीकों पर अनुसंधान और विकास के काम के लिये प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों की सेवाएं लेती हैं और उन्हें वांछित परिणाम नहीं मिल पाते हैं। इसी परेशानी का हल देने की दिशा में उद्योग और शौक्षिक जगत के बीच बेहद जरूरी लिंक स्थापित करने के उद्देश्य से आईआईटी बीएचयू के दो पूर्व छात्रों तन्मय पंडया और निखार जैन ने वर्ष 2011 में एक प्रौद्योगिकी अनुसंधान को समर्पित स्टार्टअप Bridgedots (ब्रिजडाॅट्स) की स्थापना की।

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इन्होंने प्रोफेसरों और विभिन्न अनुसंधान वैज्ञानिकों की मदद से उद्योग जगत के सामने आने वाली तकनीकी समस्याओं का समाधान खोजने की दिशा में नवीन प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में सफलता पाई है।

तन्मय कहते हैं, ‘‘ब्रिजडाॅट्स मुख्यतः रसायन, पाॅलीमर, उन्नत सामग्री और अपशिष्ट के क्षेत्रों पर केंद्रित रहती है। हम इन क्षेत्रों में सामने आने वाली तकनीकी समस्याओं की पहचान करते हुए प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों के साथ काम करते हुए तकनीक का विकास करते हैं। प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों को सलाहकार के रूप में अपने साथ जोड़ा जाता है और उन्हें उनके द्वारा प्रदान किये गए परामर्श के आधार पर भुगतान किया जाता है।’’

तन्मय वाराणसी के विश्वप्रसिद्ध आईआईटी बीएचयू से कैमिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक कर चुके हैं और इससे पहले वे एक ग्लोबल प्रोक्योरमेंट कंसलटेंसी के साथ काम करने का अनुभव रखते हैं जहां उन्होंने 500 विभिन्न फाच्र्यून कंपनियों को सहायता प्रदान की।

ब्रिजडाॅट्स आईआईटी बीएचयू के प्रौद्योगिकी विकास इन्क्यूबेटर में विकसित हुई है और इसके साथ ही इसे इस संस्थान से 14 लाख रुपये की आर्थिक मदद की प्रदान की गई है। वर्तमान में इनके दो कार्यालय और एक प्रयोगशाला क्रियशील हैं जिनमें से एक नोएडा में हैं और एक आईआईटी बीएचयू में जो भारत के अलावा अमरीका, यूरोप, मध्य पूर्व और आॅस्ट्रेलिया के उपभोक्ताओं को सेवा प्रदान कर रहे हैं।

बीते चार वर्षों के दौरान यह स्टार्टअप कचरे और अपशिष्ट के अलावा रसायन, उन्नत कोटिंग्स, निर्माण के काम में आने वाले रसायनों और सौंदर्य प्रसाधनों से निबटने में सक्षम विभिन्न उत्पादों को विकसित कर चुका है।

तन्मय कहते हैं, ‘‘हमार वेबसाइट पर उपलब्ध सभी उत्पाद पूर्ण रूप से हमारे द्वारा ही विकसित किये गए हैं। हम कुल मिलाकर 6 लोगों की एक टीम हैं और अधिकतर आईआईटी से संबंधित हैं। बीते 4 वर्षों में हमने 10 से भी अधिक उत्पादों, प्रौद्योगिकी और समाधानों का सफलतापूर्वक विकास किया है। वर्तमान में हम आड उपभोक्ताओं को अनुसांधान एवं विकास से संबंधित सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।’’

तन्मय पंडया

तन्मय पंडया


यह स्टार्टअप पहले पूर्व-व्यवसायिक स्तर पर तकनीक को विकसित करती है और उसके बाद व्यवसायीकरण के लिये उस तकनीक को उपभोक्ता के हवाले कर देती है। एक परियोजना की अनुमानित अवधि करीब 300 से 1000 घंटों के बीच होती है जिसकी कीमत 3 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच होती है।

तन्मय बताते हैं कि अनुंधान और विकास की सेवाएं प्रदान करना उनका व्यापार का मुख्य केंद्र नहीं है। एक तरफ जहां उनका यह स्टार्टअप उपभोक्ताओं के लिये तकनीक विकसित करता है वहीं दूसरी तरफ वे ऐसी तकनीकों को विकसित करने के काम में भी लगे रहते हैं जिन्हें अगर विकसित करते हुए व्यवसायीकरण किया जाए तो वे बहुत कारगर साबित हो सकती हैं।

वे कहते हैं, ‘‘हमने ऐसी दो तकनीकों को विकसित करने के साथ काम शुरू किया था। इनमें से पहला एक नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट) के समाधान से संबंधित थी और दूसरी चावल की भूसी की राख में मौजूद अतिरिक्त सिलिका निकालने की थी।’’

ब्रिज्डाॅट्स ने एक ऐसी उन्नत प्रौद्योगिकी विकसित की है जो चावल की भूसी से सिलिका की एक उन्नत श्रेंणी को अलग कर देती है। यह राख बायोमाॅस आधारित बिजली संयंत्रों और औद्योबिक बाॅयलरों में ईंधन के रूप में चावल की भूसी को जलाने के बाद बचा अपशिष्ट होता है। दुनिया भर में प्रतिवर्ष 500 मिलियन टन चावन का उत्पादन होता है जिसके परिणामस्वरूप 100 मिलियन टन से अधिक चावल की भूसी निकलती है।

अपने उच्च कैलोरी प्रतिमान और कम कीमत के चलते यह चावल की भूसी विभिन्न उद्योगों में लगे बाॅयलरों और बाॅयोमास आधारित बिजली संयंत्रों में ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में इस्तेमाल की जाती है। एक अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 10 मिलियन टन से भी अधिक राख उत्पन्न होती है और इसका वाणिज्यिक मूल्य कम होने के चलते या तो इसका उपयोग गड्ढों को भरने में किया जाता हैा फिर इसे ऐसे ही खुले मैदानों में फेंक दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है।

इससे तकनीक से उत्पादिक सिलिका को टायरों के निर्माण में प्रयोग किया जा सकता है और इसके परिणामस्वरूप वाहनों की ईंधनों की खपत को 5 से 7 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। तन्मय बताते हैं कि इस प्रक्रिया के फलस्वरूप ऊर्जा की खपत में कमी आती है जिसके चलते यह पर्यावरण्ण के अधिक अनुकूल है। ‘‘इसके अलावा मौजूदा उत्पादन प्रक्रियाओं की तुलना में बाई-प्रोडक्ट्स का उत्पादन हमारी प्रक्रिया को 15 से 20 प्रतिशत तक अधिक लाभदायक बना देता है।’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘हम दुनिया कि उन कुछ गिनी चुनी कंपनियों में से एक हैं जो अपशिष्ट में से टायरों के निर्माण के लिये ग्रीन सिलिका का उत्पादन करने वाली इस तकनीक को विकसित करने में सफल रहे हैं। यह सिलिका एक अग्रणी वैश्विक टायर कंपनी द्वारा परीक्षण करने के बाद अनुमोदित की जा चुकी है। इसके अलावा इस पूरी प्रक्रिया के पीसीटी पेटेंट के लिये भी आवेदन कर दिया गया है।’’

ब्रिजडाॅट्स को वर्ष 2015 का डीएसटी-लाॅकहीड मार्टिन इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम अवार्ड से नवाजा जा चुका है और यह उन 8 चुनिंदा भारतीय कंपनियों में से एक है जिन्हें टेक्सास विश्वविद्यालय के ग्लोबल काॅमर्शियलाईज़ेशन ग्रुप द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विकास कार्यक्रम के लिये चयनित किया गया है। इसके अलावा यह स्टार्टअप वर्ष 2015 के ग्लोबल क्लीनटेक इनोवेशन प्रोग्राम की सेमीफाइनलिस्ट भी रह चुकी है।

तन्मय बताते हें कि उनकी कंपनी धन जुटाने के लिये कई निवेशकों के साथ वार्ताओं के दौर मे हैं। इनकी योजना आने वाले तीन वर्षों में भारत भर में विभिन्न संयंत्रों की स्थापना करने के अलावा चावल का उत्पादन करने वाले अन्य क्षेत्रों में बाहरी कंपनियों के साथ साझेदारी करते हुए इस तकनीक के व्यवसायीकरण को गति देने की है।

इनका साल-दर-साल का विकास का अंकड़ा 100 प्रतिशत से भी अधिक रहा है और अगर राजस्व के मामले में देखें तो इस वित्त वर्ष में इसके 60 लाख रुपये को पार करने का अनुमान है। तन्मय कहते हैं, ‘‘हमारा लक्ष्य आने वाले 3 वर्षों में 7000 हजार टन के की उत्पादन की क्षमता को पाना है जिसके परिणामस्वरूप हम 50 करोड़ रुपये के राजस्व के आंकड़े तक पहुंचने में कामयाब रहेंगे।’’


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