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ओलंपिक में पदक जीतकर भारत का सिर ऊंचा करने वाली महिलाएं

ओलंपिक में पदक जीतकर भारत का सिर ऊंचा करने वाली महिलाएं

Wednesday September 06, 2017 , 6 min Read

हम यहां पांच ऐसी भारतीय महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने ओलंपिक में राष्ट्र का नाम रोशन किया और देश को गौरवान्वित होने का मौका दिया। इन महिलाओं के चलते भारत की खेल क्षमता का पूरी दुनिया को अहसास हुआ है और यह संदेश गया है कि भारतीय ऐथलीट्स को कम करके नहीं आंका जा सकता।

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ओलंपिक के इतिहास में पहली भारतीय महिला विजेता होने का श्रेय कर्णम मल्लेश्वरी को जाता है। 2000 के सिडनी ओलिंपिक खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में पहली बार भारतीय महिला के तौर पर पदक जीता था। 

दो बच्चों की मां मैरीकॉम भी उन 5 महिलाओ में शुमार की जाती हैं जिन्होने देश के नाम ओलंपिक मेडल जीता है। मैरी कॉम ने 2012 बीजिंग ओलंपिक में 51 किलो के वर्ग के मुक्केबाजी में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बॉक्सर बनीं।

ये 1952 की बात है जब ओलंपिक हेलसिंकी में था। तब भारत को अपनी पहली महिला ओलंपियन मेरी डिसूजा मिली। डिसूजा ने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में हिस्सा लिया जिसमें वो पांचवे और सांतवे स्थान पर रही। ये 48 साल बाद था कि जब 2000 में सिडनी ओलंपिक में एक और भारतीय महिला ने मंच पर अपना स्थान पाया। ओलिंपिक खेलों के इतिहास में भारत को अब तक कुल 28 पदक हासिल हुए हैं, इनमें से महिलाओं की बात करें तो 5 पदक उनके हाथ लगे हैं। हम यहां पांच ऐसी भारतीय महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने ओलंपिक में राष्ट्र का नाम रोशन किया और देश को गौरवान्वित होने का मौका दिया। इन महिलाओं के चलते भारत की खेल क्षमता का पूरी दुनिया को अहसास हुआ है और यह संदेश गया है कि भारतीय ऐथलीट्स को कम करके नहीं आंका जा सकता

फोटो साभार: सोशल मीडिया

फोटो साभार: सोशल मीडिया


कर्णम मल्लेश्वरी

ओलंपिक के इतिहास में पहली भारतीय महिला विजेता होने का श्रेय कर्णम मल्लेश्वरी को जाता है। 2000 के सिडनी ओलिंपिक खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में पहली बार भारतीय महिला के तौर पर पदक जीता था। कर्णम मल्लेश्वरी को 'लोहे की महिला' के नाम से तबसे ही जाना जाने लगा। कुल 240 किलो भार उठाकर कांस्य पदक अपने नाम करने वाली मल्लेश्वरी ने उस वक्त कहा था कि वह नाखुश हैं क्योंकि उनका इरादा गोल्ड मेडल जीतने का था। मल्लेश्वरी का कहना था कि आखिरी राउंड में मिसकैलकुलेशन के चलते उनके हाथ से गोल्ड फिसल गया था। 2004 एथेंस ओलंपिक में हिस्सा लेने के बाद उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया। आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में पैदा हुईं कर्णम मल्लेश्वरी ने 12 साल की उम्र से ही भारोत्तोलन का अभ्यास शुरू कर दिया था। भारतीय खेल प्राधिकरण की एक योजना के तहत मल्लेश्वरी को प्रशिक्षण मिला था। मल्लेश्वरी को अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न पुरस्कार और पद्म श्री सम्मान भी मिल चुका है।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

फोटो साभार: सोशल मीडिया


साइना नेहवाल

साइना नेहवाल का नंबर एक खिलाड़ी बनने का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। साइना नेहवाल ने 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता और देश को गर्व महसूस कराया। वो बैडमिंटन में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला थी। 2015 में साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में नंबर एक खिलाड़ी का खिताब अपने नाम किया । इससे पहले 2008 के बीजिंग ओलिंपिक्स में साइना नेहवाल ने पहली ऐसी भारतीय खिलाड़ी बनी थीं, जिसने ओलिंपिक गेम्स के क्वॉर्टरफाइनल में प्रवेश किया। इसके चार साल बाद अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए साइना नेहवाल ने पदक जीतकर यह अहसास कराया कि बैडमिंटन की दुनिया में भारत का दौर शुरू हो गया है। इसके अलावा सायना एकमात्र ऐसी खिलाडी है जिसने एक महीने के अंदर ही तीन बार शीर्ष वरीयता को प्राप्त किया है। वह भारत की शीर्ष बैडमिंटन खिलाडी है और भारतीय बैडमिंटन लीग यानि बीएआई की तरफ से खेलती हैं। सायना न केवल भारतीय लड़कियों के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत है अपितु उन माता पिता के लिए भी उदाहरण हैं जो अपनी बेटियों को आगे बढ़ने से रोकते हैं।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

फोटो साभार: सोशल मीडिया


मैरी कॉम

तीन बच्चों की मां मैरीकॉम भी उन 5 महिलाओ में शुमार की जाती हैं जिन्होने देश के नाम ओलंपिक मेडल जीता है। मैरी कॉम ने 2012 बीजिंग ओलंपिक में 51 किलो के वर्ग के मुक्केबाजी में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बॉक्सर बनीं। इसके साथ-साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी उन्होंने ने 13 स्वर्ण पदक अपने नाम किया है। गोल्ड मेडलों की चमक हासिल करने के लिए मैरीकॉम जीतोड़ कड़ी मेहनत करती हैं। मैरीकॉम को 'सुपरमॉम' के नाम से भी जाना जाता है। 2008 में इस महिला मुक्केबाज को 'मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम' की उपाधि दी गई। मैरी ने 2000 में अपना बॉक्सिंग करियर शुरू किया था और तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद खुद को न केवल स्थापित किया बल्कि कई मौकों पर देश को भी गौरवान्वित किया। उन्होंने अपनी लगन और कठिन परिश्रम से यह साबित कर दिया कि प्रतिभा का अमीरी और गरीबी से कोई संबंध नहीं होता और अगर आप के अन्दर कुछ करने का जज्बा है तो सफलता हर हाल में आपके कदम चूमती है। पांच बार ‍विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी मैरी कॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने अपनी सभी 6 विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीता है।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

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साक्षी मलिक

साक्षी उत्तर भारत के हरियाणा से आती हैं। साक्षी रोहतक के जिस गांव से आती है वहां कभी उनके कुश्ती खेलने और इसके लिए उनके माता पिता के मंजूरी देने पर सवाल उठे थे। जब साक्षी ने रियो ओलंपिक में कुश्ती के लिए कांस्य पदक जीता तब उसी गांव में जश्न का माहौल था। साक्षी ने 58 किलो फ्री स्टाइल श्रेणी में कांस्य पदक अपने नाम किया था। कुश्ती में वो ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बनी जिन्होंने रियो ओलंपिक में पदक जीता। साक्षी को 12 साल की उम्र से ही कुश्ती में दिलचस्पी थी। 2004 में उन्होंने ईश्वर दहिया का अखाड़ा जॉइन किया। दहिया के लिए लड़कियों को ट्रेनिंग देना आसान नहीं था। स्थानीय लोग अक्सर उनका विरोध करते रहते थे। लेकिन धीरे-धीरे समय बदला और फिर उनका अखाड़ा लड़कियों के लिए बेस्ट प्लेस बन गया। साक्षी ने 2010 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। साल 2014 में उन्होंने सीनियर लेवल पर डेव शुल्ज अंतर्राष्ट्रीय रेसलिंग टूर्नमेंट में अमेरिका की जेनिफर पेज को हराकर 60 किग्रा में स्वर्ण पदक जीता।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

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पी.वी. सिंधु

रियो ओलंपिक 2016 के खेलो में एक नया सितारा उभर कर आया जिसने पूरी दुनिया को अपने परफॉ्र्मेंस से चौंका दिया। पी वी सिंधु ने बैडमिंटन में रजत पदक जीता। वह ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी थीं। सिंधू के घर और बैडमिंटन अकादमी में 56 किलोमीटर की दूरी है लेकिन वह हर रोज अपने निर्धारित समय पर अकादमी पहुंच जाती हैं। उनके भीतर अपने खेल को लेकर एक अजीब दीवानगी है। सिंधू को पद्म श्री और बेहतरीन बैडमिंटन के लिए अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। 2015 में सिंधु को भारत के चौथे उच्चतम नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। पी सिंधु के पिता रामना स्वयं अर्जुन अवार्ड विजेता हैं। रामना भारतीय वॉलीबॉल का हिस्सा रह चुके हैं। सिंधु ने अपने पिता के खेल वॉलीबॉल के बजाय बैडमिंटन इसलिए चुना क्योंकि वे पुलेला गोपीचंद को अपना आदर्श मानती हैं। सौभाग्य से वही उनके कोच भी हैं। पुलेला गोपीचंद ने पी सिंधु की तारीफ करते हुए कहा कि उनके खेल की खास बात उनका एटीट्यूड और कभी न खत्म होने वाला जज्बा है।  

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