क्या वीआरएस लेने वाले कर्मचारी सामान्य कर्मचारियों के बराबर होते हैं? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
शीर्ष न्यायालय की यह टिप्पणी बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान आई. याचिका वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों ने दायर की थी, जिन्हें वेतनमान में संशोधन के लाभ से वंचित रखा गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि सेवानिवृत्ति की तारीख से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले कर्मचारी, सेवानिवृत्ति की उम्र पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त होने वालों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं.
शीर्ष न्यायालय की यह टिप्पणी बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान आई. याचिका वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों ने दायर की थी, जिन्हें वेतनमान में संशोधन के लाभ से वंचित रखा गया था.
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस एस. रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र राज्य वित्तीय निगम (एमएसएफसी) के वे कर्मचारी अलग स्थिति में हैं, जिन्होंने वीआरएस का लाभ लिया और सेवा को स्वेच्छा से छोड़ दिया.
पीठ ने कहा, ‘‘यह माना जाता है कि वीआरएस लेने वाले कर्मचारी ऐसे लोगों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं जो कार्यकाल पूरा करने के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं. वे उन लोगों के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते हैं, जिन्होंने लगातार काम किया, अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया और उसके बाद सेवानिवृत्त हुए.’’
न्यायालय ने कहा कि निश्चित रूप से वेतन संशोधन की सीमा क्या होनी चाहिए, यह कार्यकारी नीति-निर्माण के क्षेत्र में आने वाला मामला है.
पीठ ने कहा, ‘‘साथ ही इसमें एक बड़ा सार्वजनिक हित भी शामिल है. यह सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन में संशोधन से संबंधित है. अच्छी सार्वजनिक नीति वह है जो संघ और राज्य सरकारों और अन्य सार्वजनिक नियोक्ताओं को समझे, जिन्हें समय-समय पर वेतन में संशोधन करना होता है (आमतौर पर एक दशक में एक बार).’’
पीठ ने कहा, ‘‘नियमित अंतराल पर इस तरह के वेतन संशोधन के तहत यह सुनिश्चित करना तार्किक है कि सार्वजनिक कर्मचारियों को जो वेतन और भत्ते मिलते हैं, वे आजीविका की बढ़ी हुई लागत और सामान्य मुद्रास्फीति के रुझान के साथ गति बनाए रखें, और यह सुनिश्चित करें कि इससे कर्मचारियों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े.’’
न्यायालय ने कहा कि वेतन संशोधन से सार्वजनिक रोजगार के प्रति प्रतिबद्धता और वफादारी की भावना को प्रोत्साहित करने जैसे अन्य उद्देश्य भी पूरे होते हैं.
इसी महीने, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना यानी वीआरएस लेने वाला कर्मचारी किसी सरकारी विभाग में संविदा कर्मी के तौर पर नियुक्त किया जाता सकता है. अदालत ने साफ किया है कि वीआरएस के नियम किसी कर्मचारी को अनुबंध या सलाहकार कर्मचारी के रूप में नियुक्त करने से नहीं रोकते हैं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि समय से पहले रिटायरमेंट लेने वाले कर्मचारियों को भी उन लोगों के बराबर देखा जाना चाहिए जो नौकरी की अवधि पूरी होने पर रिटायर होते हैं.
अदालत ने केंद्रीय संचार मंत्रालय की तरफ से जारी उस अधिसूचना को भी रद्द कर दिया है, जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकार के विभागों से VRS लेने वाले कर्मचारियों या अधिकारियों को पुनः रोजगार योजना के तहत अनुबंध पर दोबारा नौकरी पाने से वंचित कर दिया गया था. हाईकोर्ट के इस फैसले से वीआरएस लेने वाले भारत संचार निगम लिमिटेड यानी बीएसएनएल के कर्मचारियों को राहत मिली है.
बता दें कि, वीआरएस एक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के है, जिसके तहत एक कर्मचारी को सेवानिवृत्ति की तारीख से पहले सेवाओं से स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होने की पेशकश की जाती है। यह योजना कंपनियों को कर्मचारियों की संख्या कम करने की अनुमति देती है। इसे सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा लागू किया जा सकता है। वीआरएस को 'गोल्डन हैंडशेक' भी कहा जाता है.
Edited by Vishal Jaiswal