वो औरतें जिन्होंने खुद को बदल कर, बदल दी दूसरों की ज़िंदगी
यहां हम आपको बताने जा रहे हैं उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने समाज को नई सोच प्रदान की और बदलाव किया। ये कोई डॉक्टर नहीं है, बिजनेस वुमेन भी नही ये हैं। वो महिला जिन्होंने छोटे काम से शुरुआत की और शिखर तक पहुंची हैं।
ये औरतें मिसाल हैं कि कैसे एक कदम उठाने से बड़े से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
समाज में बदलाव के लिए जरूरी नहीं कि आप बहुत बड़ा या उम्दा काम करें । छोटा काम भी समाज में सोच की नई उपज पैदा कर सकता है, क्रांति ला सकता है।
कहते हैं कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता ,काम बस काम होता है । एलेनोर रूजवेल्ट ने कहा है कि 'एक महिला एक चाय की थैली की तरह है, आप तब तक उसकी ताकत का अंदाजा नहीं लगा सकते जब तक वह गर्म पानी में नहीं घुल जाती।' इसीलिए कभी भी औरत की ताकत को कमतर नहीं आंकना चाहिए। हम अपने देश की सभी मजबूत और आत्मनिर्भर औरतों को सलाम करते हैं।
आईये आज हम आपको मिलवाते हैं उन महिलाओं से जिन्होंने समाज को नई सोच प्रदान करने के साथ-साथ बदलाव की दिशा में भी बेहतरीन काम किया है। ये वो हैं जो ना तो डॉक्टर हैं और ना ही बिज़नेस वुमेन, ये वो हैं जिन्होंने अपने काम की शुरुआत की तो थी काफी छोटे स्तर से लेकिन पहुंच गईं शिखर पर...
रेड लाइ एरिया में काम करने वाली महिलाओं के लिए दुनिया का पहला नाइट केयर सेंटर खोलने वाली प्रीति पटकर
गृहिणी होने के साथ-साथ प्रीति पटकर भारतीय सामाजिक कार्यकर्त्ता और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हैं, जिन्होंने एक एनजीओ की शुरुआत की । एनजीओ की शुरुआत करना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन जो उन्होंने किया है वो काबिल ए तारीफ है। प्रीति एक संगठन "प्रेरणा" की सह-संस्थापक व निर्देशक हैं, जिसने मुंबई के रेड-लाइट इलाकों में व्यावसायिक यौन शोषण और तस्करी से बच्चों की रक्षा की। प्रीति ने रेड लाइट एरिया में काम करने वाली औरतों के बच्चों के लिए दुनिया का पहला नाइट केयर सेंटर खोला है। ये उनके लिए ही नही बल्कि देश के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है। उनके इस कदम ने कई बच्चों की जिंदगी को रोशन किया है।
प्रीति का जन्म मुंबई में हुआ था। उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और माँ एक डेकेयर कार्यक्रम चलाती थीं। उन्होंने टाटा इंस्टीटूट ऑफ़ सोशल साइंसेज से सामाजिक कार्य में मास्टर की डिग्री हासिल की वो भी स्वर्ण पदक के साथ। उनका विवाह सामाजिक कार्यकर्त्ता प्रवीन पाटकर से हुआ है।
स्नेहा कामत ने दी 'शी कैन ड्राइव' के रूप में अपने पैशन को नई पहचान
वैसे तो स्नेहा कामत सोशोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट हैं लेकिन उन्होंने अपने पढ़ाई को छोड़ अपने पैशन को नई उड़ान दी और उड़ान ऐसी जो उनकी पहचान बन गई। स्नेहा ने समाज की उस सोच को बदलने का काम किया है, जिसमें ये कहा जाता है कि हर काम औरत के बस की बात नहीं। स्नेहा 'शी कैन ड्राइव' नाम से एक ड्राइविंग स्कूल चलाती हैं, जहां सिर्फ महिलाएं ड्राइविंग सीखती हैं।
स्नेहा औरतों को की नाज़ुक हथेलियों में कार का स्टेयरिंग पकड़ा कर सिर्फ उन्हें सड़क पर कार दौड़ाना ही नहीं सीखा रही हैं, बल्कि उन्होंने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है, जो अपनी मंज़िल तक पहुंचने के लिए या तो पति पर निर्भर थीं या पिता पर या भाई पर या ड्राइवर पर। औरत का सड़क पर गाड़ी चलाना कुछ लोगों कि आंखों की किरकिरी ज़रूर हो सकता है, लेकिन औरत के लिए ये आत्मनिर्भर होने की पहचान है। ये उन लोगों के लिए करारा जवाब है, जो सड़क पर कार चलाती औरत के पास से ये कहते हुए निकल जाते हैं, 'तुम औरतों को गाड़ी चलाने का लाइसेंस किसने दिया है...'
अर्पण की फाउंडर और सीईओ पूजा टपारिया
पूजा टपारिया एक गैर-सरकारी संगठन चलाती है जिसका मकसद है, बाल शोषण में कमी लाना। पूजा की सोच तब बदली जब उन्होंने एक नाटक देखा जो बाल शोषण पर आधारित था। इस नाटक ने उन पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि उन्होंने अर्पण नाम से एक एनजीओ की शुरुआत की जिसका उद्देश्य बाल शोषण से मुक्ति दिलाना है।
पूजा ने अर्पण की स्थापना 2006 में की थी, जिसका काम है बाल शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाकर मुक्ति दिलाना। ये एक अच्छी बात है कि अर्पण की स्थापना के बाद लोगों की सोच पर भी काफी गहरा प्रभाव पड़ा है। अभी तक अर्पण ने करीबन 70,000 लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है इसके साथ ही 210,000 लोगों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से छाप छोड़ी है। अर्पण की स्थापना के बाद आज तक पूजा का एकमात्र उद्देश्य इस घृणित काम को समाप्त करना ही रहा है जिसे वह आज भी जी-जान से पूरा करने में जुटी हैं।
सीएसए (Child Sexual Abuse (CSA)) पर काम करने के लिए पूजा ने 30 लाख अमरीकी डालर (20 करोड़ रूपए से अधिक) जुटाए का धन जुटा है। पूजा एक बिज़नेस क्लास फैमिली से आती हैं। पूजा यूनिलांड इंडिया की बोर्ड निदेशक भी हैं और उनकी रणनीतियों और कार्यक्रमों में सलाहकार की भूमिका निभाती हैं। साथ ही पूजा एसएपीसीएन, सार्क एसोसिएशन ऑफ द प्रीवेंशन ऑफ चाइल्ड अप्यूज एंड एनगलक्ट की संस्थापक सदस्य हैं। बाल दुर्व्यवहार पर उनके काम के लिए उन्हें दिल्ली में आईसीजीओएनओ द्वारा 2010 में कर्मवीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक सफल डॉक्टर माला श्रीकांत बन गईं आंत्रेप्रेन्योर
माल श्रीकांत एक बेहद कुशल डॉक्टर रह चुकी हैं, लेकिन आज वो एक बुनाई का कारखाना चलाती हैं। इस कारखाने को चलाने के पीछे माला का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि वो अपने इलाके के ज्यादा से ज्यादा ज़रूरतमंद लोगों को रोज़गार देकर आत्मनिर्भर बना सकें। माला ने कई लोगों की ज़िदगियों को बदलने का नेक काम किया है।
माला श्रीकांत की कहानी किसी ट्रैजेडी से कम नहीं है। इनकी जिंदगी में तमाम मुश्किलें रोड़ा बनती रही हैं। तलाक और उनके जीवन में घटी एक दुर्घटना ने उनके जीवन को और मुश्किल बना दिया था। लेकिन उन्होंने अपना दिमाग अपने काम में लगाया। उन्होंने अपने होमटाउन रानीखेत में बुनाई का एक छोटा-सा कारखाना शुरू किया जो देखते ही देखते लोगों के लिए रोजगार का साधन बन गया। इसके बाद माला का जीवन तो बदला ही साथ ही रानीखेत के लोगों का भी जीवन बदला। इस कारखाने की बदौलत लोगों ने एक नई स्किल सीखी और इसे अपनी आजीविका का भी हिस्सा बना लिया।
आवारा कुत्तों की मसीहा प्रतिमा देवी
प्रतिमा देवी ने सालों साल तक कचरा बीनने का काम किया है। उनका जीवन दिल्ली के सबसे व्यस्त बाजारों में से एक बाजार में बीता है जहां वो टिन व फटे टाट से बने घर में रहती थीं और काम करती थीं। लेकिन उनके जीवन के एक सबसे अच्छे काम ने उन्हें पहचान दिलाई है और वो है आवारा कुत्तों की नि:स्वार्थ भाव से देखभाल करना।
प्रतिमा देवी 62 साल की हैं, लेकिन आज भी बेहतर तौर पर कुत्तों की देखभाल करती हैं। प्रतिमा करीबन 300 कुत्तों का पालन पोषण करते हुए उनका अच्छे से खयाल रखती हैं। वो कुत्तों को अपने बच्चे के समान मानती हैं और किसी भी कुत्ते को भूखा नहीं देख सकतीं। उनके इस दयालु स्वभाव और इस महान काम के लिए उन्हें गॉडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवॉर्ड फॉर सोशल ब्रेवरी से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें लोग डॉग लेडी ऑफ दिल्ली के नाम से भी जानते हैं।
अवसाद से जूझ रहे लोगों के लिए एक अनोखी वेबसाइट बनाने वाली ऋचा सिंह
रिचा सिंह एक ऐसी बीमारी से जूझ रही हैं जिससे करीबन 36% आबादी प्रभावित है। WHO की रिपोर्ट के मुताबिक कई भारतीय ऐसे हैं जो हर साल अवसाद से जूझते हैं। रिचा ने इस चीज को समझा और yourdost.com नाम से वेबसाइट शुरू की। ये वेबसाइट लोगों को उनकी समस्याओं से जूझने में मदद करती है। यह एक ऐसा नेटवर्क है जहां आप अपनी हर बात को कह और सुन सकते हो । रिचा का ये काम तारीफ के काबिल है। रिचा आईआईटी गुवाहटी की पूर्वछात्रा रह चुकी हैं।
आए दिन लोगों की आत्महत्या की खबरें कहीं न कहीं से सुनने को मिल जाती हैं। आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं जो अपनी बात किसी से साझा नहीं कर पाते कुछ तो ऐसे होते हैं जो कुछ कहना तो चाहते हैं, लेकिन वह अपनी बात किसी से कह नहीं पाते।अगर उनसे कोई एक बार जी खोलकर बात भी कर लेता तो शायद वे आज इस दुनिया में होते। ऐसे परेशान और दबाव में जी रहे लोगों के लिए ही रिचा सिंह ने 2014 में 'योर दोस्त' नाम से अपनी वेबसाइट शुरू की थी। यहां छात्रों के अलावा अन्य लोगों की भी काउंसलिंग होती है। आज इस वेबसाइट में दो सौ से ज्यादा एक्सपर्ट्स अपनी सेवा दे रहे हैं।
आईआईटी गुवाहाटी के दिनों में रिचा की एक सहेली ने आत्महत्या कर ली थी। उसकी आत्महत्या की वजह रिचा खुद भी नहीं जान पाईं कि उनकी दोस्त ने ऐसा किया क्यों? रिचा के अनुसार यदि उनकी दोस्त को कोई अच्छा काउंसलर मिलता तो शायद वो आत्महत्या नहीं करतीं। अपनी दोस्त के जाने के बाद रिचा ने ये फैसला लिया कि वो कुछ ऐसा काम करेंगी जिससे कि जैसे उन्होंने अपनी दोस्त खोई कोई और न खोये और उन्होंने योरदोस्त वेबसाइट बना डाली। रिचा के लिए यह फील्ड एकदम नई थी। इसको समझने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने विभिन्न विषयों के मनोवैज्ञानिकों से बात करके उन्हें पैनल में शामिल किया।
रिचा की सहेली की मौत 2008 में हुई और उन्होंने इस वेबसाइट को 2014 में बेंगलुरु से शुरू किया। इस वेबसाइट की सबसे खास बात ये है कि इसकी मदद से आप बिना अपना वास्तविक नाम बताये योरदोस्त एक्सपर्ट्स से चैट कर सकते हैं।