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किरायेदारों और मकानमालिकों की मदद करने के साथ-साथ कालेधन की समस्या से निजात दिला रहे हैं तीन युवा

ये कहानी तीन ऐसे युवा दोस्तों की है जिन्होंने अच्छी खासी तगड़े वेतन वाली नौकरी छोड़कर स्टार्ट-अप की दुनिया को अपना बनाया। कुछ बहुत ही बड़ा और नया करने की प्रबल इच्छा ने इन तीनों युवाओं को मज़े से चल रही ज़िंदगी को छोड़कर चुनौतियों और जोखिमों से भरी मुश्किल राह वाली ज़िंदगी चुनने को प्रेरित किया। तीनों को अपनी ताकत, काबिलियत और ‘आईडिया’ पर इतना भरोसा था कि तीनों ने नौकरीपेशा ज़िंदगी को अलविदा कहा और कारोबार करना शुरू किया। मुकेशचंद्र, अनुषा और मुरलीधर तीन ऐसे साहसी युवा दोस्त हैं जिन्होंने कठिनाईयों की परवाह किये बिना अपना अलग रास्ता बनाया और कामयाबी की नयी शानदार कहानी का आगाज़ किया। इन तीनों में से दो ने किस किस्म का जोखिम उठाया उसका अंदाज़ा इसी बात से लग जाता है कि दोनों 16 से 18 लाख रुपये की सालाना तनख्वाह पर बड़ी कंपनियों में नौकरी कर रहे थे और उन पर 20-20 लाख रुपये का कर्ज बाकी था। लेकिन, इन दोनों को अपने नए ‘बिज़नेस मॉडल’ पर इतना भरोसा था कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बिना तनख्वाह लिए ही अपने स्टार्ट-अप पर काम करने लगे। मुकेशचंद्र, अनुषा और मुरलीधर – ये तीनों मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं और इनके परिवार में उनसे पहले किसी ने भी स्टार्ट-अप की दुनिया में कदम नहीं रखा था। तीनों के परिवारवाले नौकरी करने में भी भलाई समझते थे। इन युवाओं की स्टार्ट-अप की कहानी मुकेशचंद्र से शुरू होती है, जिन्होंने पहले नौकरी छोड़ी और कारोबार की बारीकियों को समझने के लिए एमबीए की पढ़ाई की। फिर आगे चलकर दूसरी नौकरी छोड़ी और स्टार्टअप शुरू किया। काम ऐसा था जो कि पहले किसी ने नहीं किया था लेकिन उन्होंने अपने भरोसे पर आँच आने नहीं दी, हौसला कम नहीं होने दिया। कारोबार करने की धुन को कमज़ोर पड़ने नहीं दिया और फिर अपनी एक टीम बनायी। उनके दोस्त अनुषा और मुरलीधर भी अपनी-अपनी नौकरियाँ छोड़कर इस टीम में शामिल हुए। तीनों की मेहनत रंग लायी। लगन और मेहनत से आकार लेने वाला नया कारोबार ‘पेमैट्रिक्स’ न केवल किरायेदारों और मकानमालिकों के बीच लेन-देन की समस्या का माकूल हल प्रस्तुत करता है, बल्कि काले धन की समस्या से भी नजात दिलाता है। हैदराबाद से शुरू हुआ यह कारोबार अब देश के पांच बड़े शहरों में फ़ैल चुका है और दूसरे शहरों में बाहें पसारने को बेचैन है।

किरायेदारों और मकानमालिकों की मदद करने के साथ-साथ कालेधन की समस्या से निजात दिला रहे हैं तीन युवा

Monday August 01, 2016 , 13 min Read

स्टार्ट-अप की इस कहानी के पहले नायक मुकेशचंद्र अंचूरि का जन्म तेलंगाना के करीमनगर ज़िले के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके माता-पिता सरकारी स्कूल में टीचर हैं। माता-पिता ने शुरू से ही मुकेश को अच्छी शिक्षा दी। उनकी पढ़ाई-लिखाई अच्छे स्कूल में करवाई। मुकेश को दसवीं तक करीमनगर के डॉन बोस्को स्कूल में शिक्षा दिलवाने के बाद माता-पिता ने उन्हें हैदराबाद भेज दिया। माता-पिता को लगता था कि करीमनगर जैसे छोटे शहर में रहते हुए उनका लाड़ला लड़का कामयाबी के आसमान में ऊंची उड़ान नहीं भर पाएगा। हैदराबाद में शिक्षा के ऊँचे स्तर और पढ़ाई-लिखाई की बेहतर सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए माता-पिता ने मुकेशचंद्र को हैदराबाद भिजवा दिया। मुकेशचंद्र का दाख़िला हैदराबाद के डेल्टा जूनियर कॉलेज में करवाया गया। माता-पिता और अपने शहर से दूर रहते हुए मुकेशचंद्र ने जी-जान लगाकर पढ़ाई की। माता-पिता चाहते थे कि उनका लड़का खूब पढ़-लिखकर बड़ा इंजीनियर बने और अच्छी बड़ी कंपनी में तगड़ी रकम पर नौकरी करे। 

मुकेशचंद्र अपने माता-पिता की उम्मीदों और आशाओं को अच्छी तरह से समझते थे। पढ़ाई-लिखाई के लिए माता-पिता के परिश्रम और त्याग से भी वे भली-भांति परिचित थे। माता-पिता की खुशी के लिए मुकेशचंद्र ने दिन-रात मेहनत कर पढ़ाई की। अच्छे नंबरों से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। प्रवेश-परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी जैसे बड़े शिक्षा संस्थान में दाखिले की योग्यता हासिल की। साल 2006 से 2010 तक मुकेशचंद्र ने बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, मेसरा से पॉलीमर इंजीनियरिंग में बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए तगड़ी मेहनत की। उन्हें परीक्षाओं में शानदार प्रदर्शन के लिए 'गोल्ड मैडल' भी मिला।इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते ही उन्हें इंडियन आयल कारपोरेशन जैसी नामचीन संस्था में नौकरी मिल गयी। मुकेशचंद्र को नौकरी मिलते ही उनके माता-पिता को बहुत खुशी हुई और काफी सुकून भी मिला। माता-पिता को लगा कि उनके बेटे की ज़िंदगी ‘सेट’ हो गयी है और वो खुशहाली और तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ेगा। अब उन्हें अपने बेटे के करियर के बारे में चिंता करने की ज़रुरत नहीं है।

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लेकिन, युवा मुकेशचंद्र के मन में कुछ अलग ही उथल-पुथल होने लगी थी। वे कुछ नया और बड़ा काम करने की सोचने लगे थे। नौकरीपेशा ज़िंदगी से उन्हें ऊब होने लगी थी। इंडियन आयल कारपोरेशन में उन्हें अपने काम में मज़ा नहीं आ रहा था। उद्यमी बनने का विचार भी उनके मन में हिल्लोरे मारने लगा था। वे दिन-रात इसी सोच में डूबे रहते कि कुछ नया, बड़ा और मन को खुशी देने वाला काम करने के लिए उन्हें कौन-सी राह पकड़नी चाहिए। एक दिन उन्होंने एक बड़ा फैसला ले लिया। मुकेशचंद्र ने इंडियन आयल कारपोरेशन की नौकरी छोड़कर एमबीए की पढ़ाई करने और कारोबार करने की संभावानाओं को तलाशने का मन बना लिया। साल 2014 में मुकेश ने प्रतिष्ठित एस.पी. जैन स्कूल ऑफ़ ग्लोबल मैनेजमेंट में दाख़िले की योग्यता हासिल कर ली। यहाँ से मुकेश ने ग्लोबल मास्टर्स इन बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री हासिल की और समकालीन विपणन-प्रबंधन को अपना अधिकार-क्षेत्र बनाया। उन्होंने यहीं से कारोबार की बारीकियों को भी सीखा और समझा। अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन कर मुकेशचंद्र ने एस.पी. जैन स्कूल ऑफ़ ग्लोबल मैनेजमेंट से भी 'गोल्ड मैडल' हासिल किया। इसके बाद मुकेश ने इनफिनिटी रिसर्च लिमिटेड में नौकरी करनी शुरू की, लेकिन यहाँ भी नौकरी में उनका मन ज्यादा दिन तक नहीं लगा। जिंदगी में वे जो हासिल करना चाहते थे, वो उनको नौकरी में नहीं मिल रहा था। उद्यमी बनने की जो धुन उन पर सवार हुई थी वो एक बार फिर से हावी हो गयी। इस बार धुन पक्की और बेहद तगड़ी थी। मुकेशचंद्र ने ठान ली कि वे अब उद्यमी बनेंगे और अपने दम पर कुछ नया और बहुत बड़ा काम करेंगे। करीब नौ महीने काम करने के बाद मुकेशचंद्र ने अपनी दूसरी नौकरी भी छोड़ दी और उसके बाद स्टार्टअप की दुनिया में क़दम रखा। देश में किरायेदारों और मकानमालिकों के बीच की समस्याओं को सुलझाने के मकसद से मुकेशचंद्र ने अपने स्टार्टअप ‘पेमैट्रिक्स’ की शुरूआत की।

किरायेदारों और मकानमालिकों की समस्याएं सुलझाने में भी कारोबार की संभावानाओं को तलाशने के पीछे मुकेशचंद्र पर कुछ घटनाओं का असर था । अपनी पहली नौकरी के सिलसिले में मुंबई में अपने दोस्तों के साथ रहते हुए मुकेशचन्द्र को किरायेदारों और प्रॉपर्टी-मालिकों की समस्याओं को जानने और समझने का मौका मिला था। वे कहते हैं, “मुंबई जैसे शहर में किसी भी मध्यमवर्गीय व्यक्ति के लिये किराये पर मकान लेना काफी मुश्किल होता है। वहीं दूसरी ओर मैंने सोचा कि जब हर चीज़ का भुगतान क्रैडिट कार्ड के ज़रिए हो सकता है तो किराये का भुगतान क्यों नहीं हो सकता? इतना ही नहीं कई बार किरायेदार को किराये की रसीद नहीं मिलती है, इस वजह से उसे टैक्स छूट का लाभ भी नहीं मिल पाता। साथ ही रेंटल एग्रीमेंट एक बड़ी समस्या है। मैंने अपनी एमबीए की पढ़ाई के दौरान इन परेशानियों का हल निकालने के लिए रिसर्च शुरू की और इसी दौरान ‘पेमैट्रिक्स’ का ख्याल मेरे मन में आया।” मुकेश ने एस.पी.जैन स्कूल ऑफ़ ग्लोबल मैनेजमेंट से पढ़ाई के दौरान किराये पर मकान, दुकान जैसी संपत्ति को किराये पर दिए जाने से जुड़े कारोबार पर भी गहराई से अध्ययन किया था। इसी अध्ययन के दौरान उन्हें लगा था कि वे किरायेदारों और मकान-मालिकों की समस्याओं को सुलझाते हुए दोनों के बीच संबंध सुधार सकते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें एक बहुत ही बड़ा बिज़नेस-मॉडल भी दिखाई देने लगा था।

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शोध से मुकेशचंद्र ये जान गए थे कि मकान, दुकान या प्रॉपर्टी से जुड़ी दूसरी कोई चीज़ को किराये पर देना या फिर लेना, किसी के लिए भी अच्छा खासा सिरदर्द हो सकता है। अगर प्रॉपर्टी किराये पर मिल भी जाये तो रेंट एग्रीमेंट तैयार करवाना, मकान मालिक से किराये की रसीद लेना काफी मुश्किल काम होता है। इसी तरह की समस्याओं को दूर करने के मकसद से मुकेशचंद्र ने देश में पहली बार अपनी तरह की एक ऑनलाइन सेवा शुरू की और उसका नाम रखा ‘पेमैट्रिक्स’ । ‘पेमैट्रिक्स’ के ज़रिए न सिर्फ क्रेडिट कार्ड से किराये का भुगतान ऑनलाइन किया जा सकता है, बल्कि किरायेदार को उसके भुगतान की रसीद भी मिलती है, ताकि उसे मिलने वाली टैक्स छूट का फायदा उठा सके।

‘पे-मैट्रिक्स’ को शुरू करने में मुकेशचंद्र को उनकी दोस्त अनुषा कुरुपति परमबिल ने काफी मदद की। मुकेशचंद्र की मुलाक़ात अनुषा से पहली बार इंडियन आयल कारपोरेशन में हुई थी। वहीं साथ काम करते समय दोनों में दोस्ती हो गयी। आईआईटी,चेन्नई से केमिकल इंजीनियरिंग और आईआईएम,अहमदाबाद से कारोबार-प्रबंधन की पढ़ाई करने वाली अनुषा ने भी अपने नौकरीपेशा जीवन की शुरुआत इंडियन आयल कारपोरेशन से ही की थी। अनुषा को आईआईएम,अहमदाबाद में पढ़ाई के लिए इंडियन आयल कारपोरेशन को अलविदा कहना पड़ा था। आईआईएम,अहमदाबाद से पढ़ाई करने के बाद अनुषा को रिलायंस में नौकरी मिल गयी थी। 

अलग-अलग जगह काम करने के बावजूद मुकेशचंद्र और अनुषा एक दूसरे से हमेशा संपर्क में रहे और लगातार अपने नए-नए विचारों, योजनाओं और परियोजनाओं का आदान-प्रदान किया। जब मुकेशचंद्र ने तय कर लिया कि वे किरायेदारों और मकानमालिकों की समस्याओं को सुलझाने के मकसद से स्टार्टअप शुरू करने वाले हैं तब उन्होंने अनुषा से इसमें उनका साथ देने की गुज़ारिश की। दोनों के विचार काफी मेल खाते थे और दोनों को एक दूसरे पर पूरा भरोसा था और इसी वजह से अपने दोस्त मुकेशचंद्र के कहने पर अनुषा ने बहुत ही तगड़ी रकम वाली रिलायंस की नौकरी को छोड़ दिया और स्टार्टअप से जुड़ने का जोखिम उठाया।

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स्टार्टअप से जुड़ने के अपने फैसले के बारे में अनुषा कहती हैं, “ये मेरे लिए काफी मुश्किल फैसला था, क्योंकि मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती हूं। मैंने अपनी पढ़ाई के लिए 20 लाख रुपये का एजुकेशन लोन भी लिया था। बावजूद इसके मुझे मुकेश के आइडिया पर विश्वास था, जिसके बाद मैंने तय किया कि नौकरी छोड़ क्यों न कुछ अलग करने की कोशिश की जाय।” बड़ी बात ये भी है कि न सिर्फ अनुषा को अपना एजुकेशन लोन चुकाना है, बल्कि मुकेशचंद्र पर भी एजुकेशन लोन का भार है। दोनों को करीब बीस-बीस लाख का एजुकेशन लोन चुकाना है। एजुकेशन लोन वाली इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मुकेशचंद्र और अनुषा ने अपनी ज़िंदगी में कितना बड़ा जोखिम उठाया है। दोनों बड़ी कंपनियों में बहुत ही मोटी रकम पर बड़े ओहदे पर पक्की नौकरी कर रहे थे। दोनों तरक्की के रास्ते पर बढ़ रहे थे। न तनाव था, न किसी बात का दबाव। दोनों अपनी काबिलियत के बूते अपनी-अपनी कंपनियों में अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे थे, लेकिन दोनों के मन में कुछ बड़ा और नया करने का विचार जन्म ले चुका था। यही विचार उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित कर रहा था उद्यमी बनने के लिए। दिन-ब-दिन दोनों के मन में उद्यमी बनने की इच्छा लगातार बढ़ती जा रही थी। जब मुकेशचंद्र को किरायेदारों और मकान-मालिकों की समस्याएँ सुलझाते हुए कुछ बिलकुल नया, अद्भुत और अद्वितीय करने का ख्याल आया तो उन्होंने पूरी निष्ठा और लगन से साथ इसपर काम करना शुरू कर लिया। जैसे-जैसे ये काम आगे बढ़ा मुकेशचंद्र का विश्वास भी बढ़ा। इसी विश्वास ने मुकेशचंद्र को स्टार्टअप की राह दिखाई और इस राह पर चलने की ठान कर मुकेशचंद्र ने ‘पे-मैट्रिक्स’ की नींव रखी। मुकेशचंद्र ने अनुषा के साथ मिलकर अपनी कंपनी बनाई और ‘पे-मैट्रिक्स’ के काम को आगे बढ़ाया। 

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स्टार्टअप के शुरुआती दौर में मुकेशचंद्र और अनुषा के लिए 'पेमैट्रिक्स’ को तरक्की की रास्ते पर तेज़ी से ले जाने का दमखम रखने वाली टीम खड़ी करना बहुत बड़ी चुनौती थी। दोनों व्यापार-प्रबंधन में महारत रखते थे, लेकिन उन्हें टेक्नोलॉजी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। अपने स्टार्टअप की टेक्नोलॉजी संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मुकेशचंद्र ने बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में अपने सहपाठी और मित्र मुरलीधर नायक से सलाह-मशवरा किया। मुरलीधर नायक को भी मुकेशचंद्र और अनुषा के स्टार्टअप का आइडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने भी कंपनी ज्वाइन करने का फैसला कर लिया। मुरलीधर नायक ने भी तगड़ी रकम वाली नौकरी को छोड़कर स्टार्टअप की अनूठी दुनिया में कदम रखा।

‘पेमैट्रिक्स’ के लिए तगड़ी टीम बनाने की चुनौती के बारे में मुकेशचंद्र कहते हैं, “मैं जानता था कि अच्छी कंपनी इंसान से नहीं, टीम से तैयार होती है। मैंने ऐसे लोग तलाशने शुरू किये जो मेरे अच्छे पार्टनर बन सकें। मैं अक्सर अनुषा से इस बारे में बातें करता था क्योंकि इंडियन ऑयल में वे मेरी सहयोगी थीं। इस तरह एक दिन अनुषा ने फैसला लिया कि वो मेरे इस काम में साथ देंगी और वो भी नौकरी छोड़ पूरी तरीके से इस वेंचर के साथ जुड़ गई। हालांकि किसी के लिए सैलरी छोड़कर कर बिना पैसा लिए काम करना मुश्किल होता है, लेकिन अनुषा ने ऐसा किया। तब मुझे भी लगा कि मुझे अच्छा सहयोगी मिला है। मुरलीधर के आने से हम टेक्नोलॉजी में भी बहुत मजबूत हो गए।” इस समय ‘पे-मैट्रिक्स’ की चौदह सदस्यों की टीम है। ‘पे-मैट्रिक्स’ का काम लगातार बढ़ रहा है और बढ़ते काम के मद्देनज़र टीम के विस्तार की भी योजना बन रही है।

इस तरह से तीन युवाओं के साहसी फैसले का नतीजा ये हुआ कि देश और दुनिया के सामने एक नया, अनूठा और करोड़ों लोगों के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद साबित होने वाला आइडिया, उपाय और मंच तैयार हुआ। ‘पेमैट्रिक्स’ एक बेहद खास तरह का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है। एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफार्म, जहाँ पर अगर कोई किरायेदार क्रेडिट कार्ड के ज़रिए एडवांस में किराया भुगतान करना चाहता है तो वो यहाँ कर सकता है। अगर किसी को रेंटल एग्रीमेंट करना है तो ये सेवाएं भी इसी प्लेटफार्म पर ऑनलाइन मुहैया करा दी जाती हैं। फिलहाल ‘पेमैट्रिक्स’ किराये से जुड़े प्रबंधन का काम देख रहा है, जिसमें प्रॉपर्टी के किराये का भुगतान और उसे इकट्ठा करना शामिल है।

‘पेमैट्रिक्स’ से अब तक 1200 किरायेदार और प्रॉपर्टी-मालिक जुड़ गए हैं। पिछले छह महीनों में इस स्टार्ट-अप का पेमेंट टर्न-ओवर 1.2 करोड़ रुपयों का रहा है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में ‘पेमैट्रिक्स’ की असरदार मौजूदगी है। ‘पेमैट्रिक्स’ की सेवाओं को देश के हर छोटे-बड़े शहर में पहुंचाने के लिए बड़ी तेज़ी से काम हो रहा है। ये स्टार्ट-अप महीना दर महीना 100 फीसदी विकास-दर से आगे बढ़ रहा है। ‘पेमैट्रिक्स’ टी-हब के इन्क्यूबेशन प्रोग्राम के साथ-साथ नैसकॉम के ख़ास ‘10 हज़ार स्टार्ट-अप प्रोग्राम’ में भी जगह बनाने में कामयाब हुआ है। अपनी नायाब कामयाबी पर बड़ा फ़क्र महसूस करने वाली अनुषा कहती हैं, “हमें इस बात की खुशी है कि रेंट मैनेजमेंट के क्षेत्र में हमारा किसी के साथ सीधा मुकाबला नहीं है। हालांकि बाज़ार में कई पेमेंट चैनल ज़रूर हैं, लेकिन ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं है जो प्रॉपर्टी रेंट की प्रक्रिया को कारगर बनाता है। इसलिए हमारी कोशिश है कि हम बैंको को अपने साथ भागीदार बनाकर इस वेंचर को और बड़ा बनाएं।”

बड़ी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि ‘पेमैट्रिक्स’ काले धन से लड़ने में काफी मददगार साबित हो रहा है। ऑनलाइन भुगतान की वजह से पैसे के लेन-देन में पारदर्शिता रहती है। इसके साथ-साथ किराये के भुगतान पर किरायेदार को उसकी रसीद भी मिलती है। अगर आंकड़ों पर नज़र डाली जाय तो एक अनुमान के मुताबिक, देश में कमर्शियल और रेज़िडेन्शल प्रॉपर्टी का बाज़ार 252 बिलियन डॉलर का है। मुकेशचंद्र का दावा है कि इस बेहद बड़े बाज़ार में 84 प्रतिशत लेन-देन नकद से ही होता है। यानी सिर्फ 16 फीसदी लोग ही बैंक चालानों या फिर किसी और वैध माध्यम से किराए की रकम मकान-मालिक को अदा करते हैं। मुकेशचंद्र का कहना है कि उन्होंने अपने अध्ययन और शोध में ये भी पाया है कि वैध तरीके से किराए की रकम चुकाने वाले 16 फीसदी लोगों में से 40 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो अपनी प्रॉपर्टी से दूर रहते हैं। 8 फ़ीसदी प्रोपट्री मालिक अप्रवासी भारतीय हैं यानी विदेश में रहते हैं। इतना ही नहीं अगर बैंक के खातेदारों की बात की जाय तो 2014 तक देश के 54 फीसदी लोग ही किसी न किसी बैंक के खातेदार थे। और, 2014 तक देश में क्रेडिट कार्ड धारकों की संख्या 24 मिलियन थी और पिछले दो सालों में यह संख्या बढ़ी है। ये सब आंकडें जाहिर करते हैं कि कमर्शियल और रेज़िडेन्शल प्रॉपर्टी के बाज़ार में कितनी बड़ी रकम काले-धन के तौर पर इधर से उधर होती है। यही वजह भी है कि मुकेशचंद्र भी बड़े फ़क्र के साथ कहते हैं, “हमें स्टार्टअप शुरू करने की खुशी तो है ही, लेकिन हमें इस बात से ज्यादा खुशी मिल रही है कि हम देश में काले-धन की समस्या से भी निजात पाने की एक बड़ी फ़ायदेमंद और कारगर योजना को देश के सामने पेश करने में कामयाब हुए हैं।”

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मुकेशचंद्र,अनुषा और मुरलीधर की अब तक की कहानी काफी शानदार रही है। जिस तरह से शुरुआत हुई है और भूमिका बनी है, उससे यही आभास होता है कि ये कहानी बेहद शानदार और ऐतिहासिक होगी। इतना ही नहीं आने वाले दिनों में इन तीनों युवाओं की गिनती देश के बड़े कामयाब उद्यमियों में होगी। लेकिन, इस मुकाम तक पहुंचाने में तीनों युवाओं को कई विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। तीनों कई समस्याओं और परेशानियों से दो-चार हुए हैं। मुकेशचंद्र कहते हैं, “किसी भी स्टार्टअप की शुरूआती यात्रा काफी कठिनाइयों से भरी होती है, क्योंकि तब आपको न सिर्फ बाहरी लोगों की आलोचना सहनी पड़ती है बल्कि खुद परिवार वाले भी आपके आलोचक बन जाते हैं। इस कारण कई बार आप अपने से प्रश्न करना शुरू कर देते हैं कि क्या आप सही काम कर रहे हैं? अगर ये सफल न हुआ तो क्या होगा? ऐसे कई प्रश्न आपके ज़हन में आते हैं, लेकिन आप इन सवालों का किस तरह सामना करते हैं वो ही आपका भविष्य तय करते हैं।” तीनों युवा काफी उत्साहित हैं। उनके इरादे बुलंद हैं। उन्हें अहसास है कि उन्होंने बड़े काम की शुरुआत कर दी है। तीनों युवाओं को इस बात का भी आभास है कि चुनौतियाँ ख़त्म नहीं हुई है और हर दौर में उन्हें नयी-नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। तीनों युवा भविष्य की इन्हीं चुनौतियों को डटकर मुकाबला करते हुए नया इतिहास लिखने के लिए अब अपने आप को पूरी तरह से सक्षम बनाने में जुट गए हैं। (Website : https://paymatrix.in/)


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