अब चिकन और मटन की जगह आ रहा है आर्टिफिशयल मीट, पेड़ पौधों से होगा तैयार
विश्व बाजार से पारंपरिक मीट के दिन लदने वाले हैं। कई बड़ी कंपनियां 'अल्टरनेटिव मीट' बाजार में अरबों डॉलर निवेश कर चुकी हैं। आने वाले कुछ वर्षों में बाजार पर 'अल्टरनेटिव मीट' का प्रभुत्व हो सकता है। इससे भारत के 15000 करोड़ के मीट बाजार और उससे जुड़े 25 लाख लोगों की रोजी रोटी को जोर का झटका लग सकता है।
हमारे देश में भले ही मीट उद्योग डेढ़ हजार करोड़ रुपए का हो चुका हो और इस बिजनेस में लगे कुल 25 लाख लोगों का भविष्य इस पर टिका हुआ हो, पर्यावरण बचाने के लिए अब इस उद्यम का भी विकल्प ढूंढ लिया गया है। आने वाले दो दशक के भीतर ही साठ प्रतिशत से अधिक कृत्रिम (वानस्पतिक) मीट विश्व बाजार में दस्तक देने वाला है। यह मीट पेड़-पौधों से तैयार किया जाएगा। बाजार के जानकार बता रहे हैं कि आने वाले दस-पंद्रह वर्षों के भीतर इस वैकल्पिक मीट का कारोबार सौ अरब का हो जाएगा।
वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन संसद के पिछले बजट सत्र में 27 मार्च, 2017 को लोकसभा में मीट एक्सपोर्ट पर महत्वपूर्ण तथ्य पेश करते हुए सदन को बता चुकी हैं कि अप्रैल, 2016 से जनवरी, 2017 के बीच भारत से कुल 22,073 करोड़ के मीट निर्यात हुआ। इसमें सिर्फ भैंसों के मांस का निर्यात 21,316 करोड़ का रहा। यानी कुल मीट एक्सपोर्ट में 97 प्रतिशत कारोबार भैंसों के मीट का हुआ है। देशभर में लाइसेंस कुल 72 बूचड़खाने हैं, जिनमें बरेली, आगरा, सहारनपुर और लखनऊ में चार बूचड़खाने खुद सरकार चला रही है।
अलीगढ़ में हिंद एग्रो आईएमपीपी पहला बूचड़खाना है, जिसे 1996 में शुरू किया गया था। इन बूचड़खानों में रोजाना औसतन पचीस-तीस हजार जानवरों की खपत है। मीट निर्यात में देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है, जहां डेढ़ सौ बड़े बूचड़खाने चल रहे हैं। इसके साथ ही अवैध मीट की भी 50 हजार दुकानें हैं। आंध्र प्रदेश 15.2 फीसदी और पश्चिम बंगाल 10.9 फीसदी मीट निर्यात करता है। हर वर्ष औसतन कुल 26,685 करोड़ रुपए का मीट भारत से बाहरी देशों को निर्यात किया जा रहा है।
इस बीच उपभोक्ताओं, खाद्य कंपनियों और बाजार में बड़े रेस्त्राओं में अल्टरनेटिव मीट की तेजी से डिमांड बढ़ती जा रही है। अमेरिकी वित्तीय निवेशक भी वैकल्पिक मीट उद्योग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसलिए नॉनवेज खाने वालों को आने वाले कुछ वर्षों के भीतर ही जोर का झटका लगने का अंदेशा है। एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि आगामी दो दशकों में इसके कुल कारोबार पर अल्टरनेटिव मीट बाजार का कब्जा हो जाएगा, जिसमें चालीस फीसदी ही असली मीट होगा। बाजार में 35 प्रतिशत मीट कल्चर्ड और 25 प्रतिशत पेड़-पौधों से तैयार मीट बिकने लगेगा।
चिकित्सकों का मानना है कि इससे मांस जनित बीमारियां कम होंगी। वही, वित्तीय सेवा कंपनी जेपीमोर्गन चेज का अनुमान है कि 10 साल में ही इस तरह के मीट का विश्व बाजार सालाना करीब 140 अरब डालर तक पहुंच जाएगा। बर्गर किंग अप्रैल से ही निरामिष ‘हूपर’ पर परीक्षण कर रहा है। मैकडॉनाल्ड ने भी जर्मनी में बिना मांस का बर्गर देना शुरू कर दिया है। इसी तरह एक अन्य अमेरिकी रेस्त्रां कंपनी केंटुकी फ्रायड चिकन भी बिना मांस की चीजें पेश करने की संभावनाएं तलाश रही है।
एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पेड़-पौधों से तैयार मीट में वे सारी खूबियां होंगी, जो जानवरों के मीट में होती हैं। कल्चर्ड मीट जानवरों को नुकसान पहुंचाए बिना उनकी कोशिकाओं से तैयार किया जाता है। दुनिया भर में मांस के लिए बड़े पैमाने पर जानवरों को पाला जा रहा है, जिसके चलते यह उद्योग का रूप ले चुका है, लेकिन वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक मीट उद्योग का पर्यावरण पर गंभीर असर डाल रहा है। इससे कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी हो रही है। इस बीच नयी नयी स्टार्टअप कंपनियों और अन्य कारोबारियों ने नयी प्रौद्योगिकी का लाभ उठा कर वृक्ष आधारित मांस उत्पादों के रंग-रूप और स्वाद के साथ नए नए प्रयोग शुरू कर दिए हैं। इससे बाजार में इस मांस ने असली मांस को टक्कर देनी शुरू कर दी है।
इस रंग बदलते मीट बाजार के कुछ ऐसे हालात हो चले हैं कि इंपासिबल फूड और बियोंड मीट निर्माता नई कंपनियां वानस्पतिक मीट की मांग पूरी नहीं कर पा रही हैं। उधर, पशु आहार की खेती के लिए जंगलों को काटा जा रहा है। इससे जलवायु संकट बढ़ रहा है। नदियां और महासागर प्रदूषित हो रहे हैं। इस वजह से भी कंपनियां वानस्पतिक मीट उत्पाद पर ध्यान केंद्रित करती जा रही हैं।
इस समय अल्टरनेटिव मीट उत्पादों में अरबों डॉलर का निवेश हो चुका है। इसमें पारंपरिक मीट मार्केट पर हावी कंपनियां भी शामिल हैं। दुनिया की कई कंपनियां जानवरों को बिना मारे या नुकसान पहुंचाए उनके कोशिकाओं से मांस तैयार करने में जुटी हैं। कारोबार की संभावनाओं का ही नतीजा है कि कंपनी बियोंड मीट का शेयर न्यूयार्क शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के पहले दिन ही 163 प्रतिशत उछल कर 65.75 डालर पर पहुंच गया।
लड़खड़ाते मीट बाजार के ताज़ा हालात पर नजर दौड़ाने से पता चलता है कि अमेरिका और एशिया में लगभग सात हजार बर्गर रेस्त्राओं में इम्पासिबल बर्गर ने बाजार से 30 करोड़ डॉलर की पूंजी जुटाकर अपनी माली हालत दो अरब डालर की कर ली है। नेस्ले सोया, गेहूं और चुकंदर का इन्क्रेडिबल बर्गर बेचने लगा है तो यूनिलीवर वेजीटेरियन बूचर ब्रांड का अधिग्रहण कर चुका है। अमेरिका की कंपनी 'केलाग' तो विगत पांच दशकों से इस तरह का मीट परोस रही है।