आज चाचा नेहरू होते तो, क्या तब भी देश के लाखों बच्चों के साथ ऐसा होता!
जवाहरलाल नेहरू की 130वीं जयंती पर विशेष...
चाचा नेहरू कहते थे- बच्चों की बहुत ठीक से देखभाल होनी चाहिए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं। जब 27 मई 1964 को उनका निधन हुआ, तब से उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। उससे पहले भारत समेत पूरी दुनिया में 20 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता था।
आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर बाल दिवस मनाने की परंपरा सन् 1964 से चली आ रही है। जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उन्हें बच्चे चाचा नेहरू भी कहते हैं। नेहरू जी कहा करते थे - बच्चों की देखभाल की जानी चाहिए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें क्योंकि वे ही किसी भी देश का भविष्य होते हैं।
जब 27 मई 1964 को नेहरू जी का निधन हुआ, सर्वम्मत निर्णय लिया गया कि उनके जन्मदिन को बाल दिवस के तौर पर मानया जाएगा क्योंकि उन्हे बच्चों से बेहद प्यार था।
1964 से पहले तक भारत में 20 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता था क्योंकि 1954 में संयुक्त राष्ट्र ने 20 नवंबर को बाल दिवस मनाने का ऐलान किया था लेकिन 1964 से हमारे देश में वह परंपरा बदल गई।
पंडित नेहरू बच्चों ही नहीं, आधुनिक महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन को लेकर भी चिंता जताते थे कि वे ब्यूटी प्रोडक्ट्स पर बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा खर्च कर रही हैं। उन्होंने जेआरडी टाटा से भारत में ब्यूटी प्रोडक्ट के प्रॉडक्शन का निवेदन किया। उसके बाद लैक्मे भारतीय मार्केट में लांच हुआ था।
आज समूचे विश्व में विशेषकर एशिया, अफ्रीका और विकासशील दुनिया में बच्चों के मानवीय अधिकारों का जो अपहरण और उत्पीड़न हो रहा है, उसे देखकर आज चाचा नेहरू की आत्मा अवश्य रो रही होगी।
एक बार जब पंडित नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर गए, जिस सड़क से गुजर रहे थे वहां वे लोग साइकलों पर खड़े होकर तो कहीं दीवारों पर चढ़ कर उनको निहार रहे थे। तभी नेहरूजी ने देखा कि दूर खड़ा एक गुब्बारे वाला पंजों के बल खड़ा डगमगा रहा था।
नेहरूजी गाड़ी से उतरकर गुब्बारे खरीदने के लिए आगे बढ़े तो गुब्बारे वाला हक्का-बक्का रह गया। नेहरूजी ने अपने तमिल जानने वाले सचिव से कहकर सारे गुब्बारे खरीदवाए और वहां उपस्थित बच्चों में बंटवा दिए। खुशी से नाचते बच्चे उन्हे चाचा नेहरू, चाचा नेहरू कहकर बुलाने लगे। तभी से वे 'चाचा नेहरू' के नाम से बच्चों में लोकप्रिय हो गए।
जवाहरलाल नेहरू के बचपन से जुड़े अनेक लोकप्रिय प्रसंग हैं। उनके बाल्यकाल की घटना है। उनके घर में पिंजरे में एक तोता पलता था।
पिता मोतीलाल ने तोते की देखभाल का जिम्मा अपने माली को सौंप रखा था। एक बार नेहरू स्कूल से वापस आए तो तोता उन्हें देखकर जोर-जोर से बोलने लगा। उनको लगा कि तोता पिंजरे से आजाद होना चाहता है। उन्होंने पिंजरे का दरवाजा खोल दिया।
तोता आजाद होकर एक पेड़ पर जा बैठा और नेहरूजी की ओर देख-देखकर देर तक बोलता रहा। उसी समय माली आ गया। उसने नेहरू को डाँटा- "यह तुमने क्या किया! मालिक नाराज होंगे। बालक नेहरू ने कहा- सारा देश आजाद होना चाहता है। तोता भी चाहता है। आजादी सभी को मिलनी चाहिए।
भारत का पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद एक दिन तीन मूर्ति भवन के बगीचे में लगे पेड़-पौधों के बीच से गुजरते हुए घुमावदार रास्ते पर नेहरूजी टहल रहे थे। उनका ध्यान पौधों पर था। वे पौधों पर छाई बहार देखकर खुशी से निहाल हो ही रहे थे तभी उन्हें एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। नेहरूजी ने आसपास देखा तो उन्हें पेड के बीच एक-दो माह का बच्चा दिखाई दिया। उन्होंने मन ही मन सोचा- इसकी मां कहां होगी? उन्होंने इधर-उधर देखा। वह कहीं भी नजर नहीं आ रही थी। बच्चे ने रोना तेज कर दिया।
नेहरू बच्चे को बांहों में लेकर थपकियां देने लगे। बच्चा मुस्कुराने लगा। वह बच्चे के साथ खेलने लगे। तभी बच्चे की मां दौड़ती हुई आ पहुंची। अपने बच्चे की किस्मत देख एक पल को तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ।
चाचा नेहरू बच्चों में कल की दुनिया की बेहतर तस्वीर देखते थे। उन्हें बेतहाशा प्यार देना चाहते थे।
नेहरू जब आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजी हुकूमत में जेल की सलाखों के पीछे थे, तब उन्होंने अपनी नन्ही-सी बेटी इंदु (इंदिरा गाँधी) को निरंतर कुछ ऐसे पत्र लिखे थे, जिनमें धरती पर दुनिया के बनने और मानव सभ्यता के विकास की सिलसिलेवार कहानी कही गई थी।
यह पुस्तक "पिता के पत्र पुत्री के नाम" शीर्षक से प्रकाशित है और दुनिया के करोड़ों बच्चे इसे पढ़ चुके हैं।
आज भारत समेत पूरी दुनिया में बच्चों की एक बड़ी आबादी बेहाल हैं। उनकी सेहत सबके लिए बेहद चिंता का विषय है। आर्थिक विषमता से बाल श्रमिक निरंतर बढ़ रहे हैं।
प्राथमिक शिक्षा पूरी होते-होते लाखों बच्चों के स्कूल छूट जा रहे हैं। पालकों के पास देने के लिए फीस नहीं है। शिक्षा महँगी हो गई है।
शिक्षा का व्यापारीकरण देश के बच्चों के जीवन और भविष्य के लिए श्राप बन गया है। बच्चे पीड़ित हैं। उनका यौन शोषण आम बात है। उनकी हत्याएँ अखबार की सुर्खियां बन रही हैं। बच्चों की मानसिक, शारीरिक विकलांगता एवं रोगों के प्रति जागरुकता अभियान दिखावा लगते हैं।
अनपढ़ और अशिक्षित बच्चे भीख माँगने को विवश हैं। अनाथालयों में शिशुओं को उचित संरक्षण का अभाव है। आज ये स्थितियां बाल दिवस मनाने की सार्थकता पर भी यक्ष प्रश्न की तरह चस्पा हैं।