इस आर्किटेक्चर ने 40 देशों का भ्रमण करने के बाद भारतीय शैली से तैयार किया अपना अद्भुत घर, नक्शा देख हैरान हो जाएंगे आप
कोयंबटूर शहर के रहने वाले आर्किटेक्चर राघव ने भारतीय वास्तुकला के आधार पर घर का निर्माण किया है, जिसका नाम उन्होंने ‘कासा रोका’ रखा।
राहुल सांकृत्यायन, इस नाम से तो लगभग हर कोई परिचित होगा ही। सांकृत्यायन जी को हिन्दी साहित्य की दुनिया में महापंडित के नाम से भी जाना जाता है। उनकी एक गद्य रचना ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ पाठकों के मन के आज भी काफी करीब है। इस रचना में लेखक ने इंसान के घुमक्कड़ीपन को जरूरी बताया है और उसका बखान बेहद गहराई और खूबसूरती से किया है।
महापंडित का मनाना है कि यदि इंसान ने घुमक्कड़ी का रास्ता न अपनाया होता तो उसके सोचने और तर्क करने की क्षमता कभी भी पशुओं से ऊपर नहीं उठ पाती। इंसान का मस्तिष्क भिन्न-भिन्न चीजों को देखने के बाद ही अच्छे और बुरे में फर्क करना सीखता है जिसके बाद नए विचारों का आविर्भाव होता है।
40 अलग-अलग देशों की यात्रा करने के बाद इस आर्किटेक्चर के दिमाग में भी कुछ ऐसे ही नए विचारों का जन्म हुआ और उसने एक अद्भुत घर का निर्माण कर डाला, जिसका नाम ‘कासा रोका’ है।
भारतीय परंपरा पर आधारित है यह घर
कोयंबटूर शहर के रहने वाले आर्किटेक्चर राघव ने भारतीय वास्तुकला के आधार पर आधारित घर का निर्माण किया है जिसका नाम उन्होंने ‘कासा रोका’ रखा। इस घर की सबसे खास बात यह है कि इसमें एसी और कूलर के बिना भी भीषण गर्मी के मौसम में भी वातावरण ठंडा बना रहता है। इसके साथ-साथ इस घर को बनाने में जीरो कार्बन फुट प्रिन्ट का ध्यान रखा गया है। यह घर राघव के दिल के बेहद ही करीब है।
एक चैनल से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैंने दुनिया के 40 से भी ज्यादा देश घूमे हैं और वहां का आर्किटेक्चर भी देखा है। बावजूद इसके, मुझे लगा कि हमारे देश में पुराने घर जिस तरीके से बनाए जाते थे, वे काफी अच्छे थे और लागत भी कम होती थी।”
राघव ने की है स्पेन से पढ़ाई
मूलरूप से भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित कोयंबटूर जिले के रहने वाले राघव ने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई अपने ही शहर से पूरी की है। उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वह कुछ दिनों के लिए पहले दिल्ली गए फिर रोबोटिक्स आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने के लिए स्पेन का रुख कर लिया। जहां कई सालों तक वह रहे। यहाँ रहते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कई वर्षों तक नौकरी भी की।
जॉब के दौरान उन्होंने करीब 40 अलग-अलग देशों का भ्रमण किया। लेकिन विदेश में काफी दिनों तक मन नहीं लगा तो वापस घर आ गए। वैसे तो इस शहर को राज्य की मुख्य औद्योगिक नगरी कहते हैं लेकिन भौगोलिक दृष्टि से यह शहर काफी गर्म है। इस समस्या से निजात पाने के लिए राघव ने अपने हुनर का इस्तेमाल करके वातानुकूलित घर बनाने की शुरुआत कर दी।
क्या हैं इस घर की अन्य खूबियां
तकरीबन आठ महीने में बनकर तैयार हुए इस घर की लागत बेहद ही कम है। यह अपने अनोखे डिजाइन और खूबियों के कारण आस-पास के दूसरे घरों से काफी अलग दिखाई देता है। भारत आने के बाद राघव ने क्षेत्रीय वास्तुकला और मॉर्डन डिजाइन पर आधारित कई अलग-अलग कॉन्सेप्ट पर रिसर्च की जो उनके विजन और मिशन पर खरी उतरती हो।
इस घर के निर्माण में हाथों से बनाई जाने वाली टाइलल्स और कराईकुडी पत्थरों का प्रयोग किया गया है। कराईकुडी पत्थरों उपयोग खास कर घर के खंभे बनाने में किया गया है। इसके अतिरिक्त घर बनाने में कांच की बोतलें और कई ऐसी चीजों को प्रयोग में लाया गया है जिसे प्राय: लोग कबाड़ में फेंक देते हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राघव कहते हैं, “घर की छत बनाने के लिए जिस स्लैब का इस्तेमाल किया है वह मिट्टी की ऐसी प्लेटों से बनी हुई हैं जो थर्मल हीट को 30 प्रतिशत तक कम कर देती हैं। इसके साथ कुछ कांच की टाइल्स का इस्तेमाल भी किया गया है जो दिन के समय प्राकृतिक रोशनी देती हैं।”
Edited by Ranjana Tripathi