आने वाले वक़्त में बिजली की तरह सब कुछ बदल डालेगी कृत्रिम मेधा
"निकट भविष्य में स्टार्टअप हो या फैशन कारोबार, शिक्षा, कृषि, चिकित्सा, स्पोर्ट; जीवन के हर क्षेत्र में कृत्रिम मेधा (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस - एआई) वही रोल निभाने जा रही है, जो सौ साल पहले सब कुछ बदल देने वाली बिजली ने अदा किया था। पूरा विश्व बाजार कृत्रिम मेधा में अपना सुरक्षित भविष्य देख रहा है।"
फैशन कारोबार की तह में जाने से पहले आइए, कुछ बड़ी सुर्खियों पर नज़र दौड़ा लेते हैं। मसलन, कुछेक साल पहले कारपोरेट दिग्गज रतन टाटा फैशन पोर्टल 'कारयाह' में बड़ी हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लेते हैं, बीते महीने जून में आदित्य बिड़ला की कंपनी 'एबी फैशन' ऑनलाइन स्टोर 'जैपोर' में 110 करोड़ रुपए लगाने पर सहमति के साथ ही, कुछ दिन पहले 60 करोड़ में शांतनु-निखिल ब्रांड के अधिग्रहण का मन बना लेती है, देश के सबसे अमीर सौ भारतीयों में एक किशोर बियानी की कंपनी 'पेंटालून' अपनी फैशन शाखा अलग कर 'पेंटालून रिटेल इंडिया' की बजाए 'फ्यूचर मार्केट्स एंड कंज्यूमर ग्रुप लिमिटेड' नाम से स्वतंत्र हो जाना चाहती है, पोलो, ऐरो, फ्लाइंग मशीन और टॉमी हिलफिगर जैसे जाने-माने ब्रांड्स वाली कंपनी 'अरविंद फैशन' अपना प्रॉफिट ग्रोथ तेज करने के लिए 26 परसेंट की बढ़ोत्तरी के साथ ऑपरेटिंग प्रॉफिट 290 करोड़ होने के सपने देखने लगती है। तो, जान लीजिए कि फैशन के पूंजी जगत में अमेजन की गहरी पैठ के बाद यह सब अनायास नहीं हो रहा है।
इस समय फैशन बाजार 17 लाख करोड़ डॉलर का और रिटेल के लिए कुल सैस बाजार 40 अरब डॉलर का हो चुका है। इस उछाल में कृत्रिम मेधा (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस - एआई) सबसे मजबूत रोल अदा कर रही है। फैशन कारोबार एआई समर्थित ऑनलाइन ताकत के बूते बाजार में अपनी तेज बढ़त बनाए हुए है। एक ताजा स्टडी के मुताबिक पिछले साल तक एआई पर जो वैश्विक रिटेल खर्च दो अरब डॉलर रहा था, आने वाले दो-तीन वर्षों में सात अरब डॉलर से भी अधिक हो जाने की संभावना है।
प्राइस वाटर हाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) के मुताबिक, इस समय कृत्रिम मेधा का 15.7 खरब डॉलर का अतिरिक्त बाजार है और यह तेजी से बदल रही अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा व्यावसायिक मौका है। आखिर, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस यानी एआई का आधुनिक बाजार में इतना बड़ा रोल कैसे हो गया है और वह फैशन कारोबार में ग्रोथ के लिए भी क्यों इतना महत्वपूर्ण हो गया है?
सिकोया कैपिटल इंडिया और ग्लोबल ब्रेन की भागीदारी के साथ उस कृत्रिम मेधा की जरूरत वू.एआई की हो या किसी दूसरे उद्योग की, इन सवालों की तह में जाने से पता चल रहा है कि आज के फैशनपरस्त माहौल को देखते हुए उत्पाद में ताज़ा गुणवत्ता, नए डिजाइन, बेहतर प्रबंधन जैसी जरूरतें तो कृत्रिम मेधा से ही संभव हो पा रही हैं। चूंकि फैशन कारोबार प्रबंधन पूरी तरह से नई टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो चला है और टेक्नोलॉजी कृत्रिम मेधा पर, तो आगे भी बाजार में उसका हर कदम अब इंटरनेट की तरह आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के ही इशारों पर नाचना है। फैशन बाजार का हर उद्यमी आज अच्छी तरह से जान चुका है कि ऑनलाइन कारोबार में मशीन लर्निंग और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से ही आगे भी उनकी मुश्किलें आसान हो सकती हैं।
अभी चार महीने पहले ही सात सौ करोड़ में हैप्टिक का अधिग्रहण कर टेलीकॉम ऑपरेटर 'रिलायंस जियो' ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में कदम रखा है। याद करिए कि इसी साल मार्च में फेसबुक की ओर से बेंगलुरु में एआई फॉर इंडिया समिट में माना गया था कि भारत में कृत्रिम मेधा से जुड़ी नौकरशाही, नीति निर्माताओं, स्टार्टअप या डेवलपर जैसी प्रतिभाओं के एक मंच पर साझा होने का यही समय है। इससे लगता है कि पूरी दुनिया में एआई आधारित एप्लिकेशन के विकास की संभावनाओं की हर स्तर पर तेजी से तलाश हो रही है।
नीति आयोग भी 'कृत्रिम मेधा के लिए राष्ट्रीय रणनीति' पर जारी एक परिचर्चा पत्र में कह चुका है कि कृत्रिम मेधा के उपयोग से ही आगे औद्योगिक दक्षता और उत्पादकता दोनों में बढ़ोत्तरी होनी है। इस प्रौद्योगिकी के तहत खास कर कृषि क्षेत्र में इमेज रिकॉग्नीशन और डीप लर्निंग मॉडल से खेती-किसानी की भी तस्वीर पूरी तरह बदल जाने वाली है। आयोग ने कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्मार्ट शहर, स्मार्ट वाहन, परिवहन क्षेत्रों में कृत्रिम मेधा के उपयोग पर जोर दिया है।
स्टार्टअप क्या है, कृत्रिम मेधा की नींव पर ही तो मजबूत हो पा रहा है। सरल तौर पर फिल्म '3 इडियट्स' से कृत्रिम मेधा की बुनियादी अवधारणा समझी जा सकती है। ज्ञान या जानकारी सम्बन्धी मामलों में किसी मशीन के मानवीय दिमाग की तरह काम करने की क्षमता को कृत्रिम मेधा (एआई) कहा जाता है। कृत्रिम मेधा को लेकर वैश्विक स्तर पर अलग-अलग राय है। कुछ विद्वान इसे ऐसी बदलावकारी तकनीक मानते हैं, जो ग्रोथ और उत्पादकता की रफ्तार तेज करेगी, जबकि कुछ अन्य लोगों की राय में इसके नकारात्मक मायने हैं और इससे बड़े पैमाने पर रोजगार को नुकसान होगा।
कृत्रिम मेधा 1950 के दशक के मध्य से कम्प्यूटर साइंस में शोध का विषय रही है। इसकी नींव काफी पहले ही पड़ चुकी थी आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क के लिये 1958 में पर्सेपट्रॉन एलॉगरिह्म के आविष्कार के साथ ही इसकी शुरुआत हो गई थी। आज कृत्रिम मेधा डिजिटल तकनीक के साथ मिलकर ज्ञान और इंटेलिजेंस के जरिए लोगों को सशक्त बनाने में अहम रोल अदा कर रही है। कम्प्यूटेशन के क्षेत्र में बढ़ोत्तरी और सस्ती स्टोरेज सुविधा ने कृत्रिम मेधा के क्षेत्र में नई जान फूँकी है। उद्यमी और कारोबारी क्षेत्र भी इसीलिए आज इसे अपने भविष्य का सबसे कारगर शस्त्र मानकर चल रहा है। डिजिटल इण्डिया अभियानों के लिए तो कृत्रिम मेधा सबसे कारगर तकनीकी रणनीति मानी जा रही है। स्टैनफोर्ड के प्रोफेसर एंड्रयू एनजी ने अपने एक मशहूर कथन में कृत्रिम मेधा को 'नई बिजली' कहा है। जिस तरह से बिजली ने सौ साल पहले तकरीबन सब कुछ बदलकर रख दिया था, वही करिश्मा कृत्रिम मेधा दिखा रही है।