वो कंपनी जिसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और बन बैठी देश की सबसे बड़ी कंपनी
गुजरात के जूनागढ़ से शुरू हुई अंबानी की यह यात्रा काफी दिलचस्प है। इस दौरान कई उतार-चढ़ाव के बीच रिलायंस ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपना भारत के कारोबार क्षेत्र में वर्चस्व कायम रखा।
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड बाजार पूंजीकरण के मामले में देश की सबसे बड़ी कंपनी है और कंपनी के मालिक मुकेश अंबानी लंबे समय से भारत के सबसे धनी व्यक्ति बने हुए हैं। बीते तीस सालों में 60 हज़ार फीसदी ग्रोथ जुटाने वाली कंपनी की यह यात्रा बेहद दिलचस्प है।
कंपनी के संस्थापक धीरुभाई अंबानी ने जिस तरह एक छोटे से गांव और अपनी गरीबी से पार पाते हुए भारत की सबसे बड़ी कंपनी की स्थापना की, वह किसी अजूबे से कम नहीं है। वो धीरुभाई अंबानी का विवेक ही था, जिसके चलते कठिन परिस्थितियों में भी रिलायंस सफलता के पथ से जरा सा भी नहीं डगमगाई।
ऐसे बढ़ा पहला कदम
गुजरात के जूनागढ़ में जन्मे धीरुभाई अंबानी बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे, घर के हालात कुछ यूं थे कि उन्होने जीविकार्जन के लिए गिरनार की पहाड़ियों पर तीर्थयात्रियों को पकौड़े बेंचे। माना जाता है कि व्यवसाय के क्षेत्र में आने की शुरुआत धीरुभाई अंबानी ने यहीं से की। गौरतलब है कि आगे चलकर बिजनेस टायकून बनने वाला यह शख्स परिवार की आर्थिक तंगी के चलते हाईस्कूल तक ही पढ़ाई अर्जित कर सका।
धीरुभाई अंबानी जब महज 16 साल के थे, तभी वे यमन के अदन शहर चले गए। अदन में धीरुभाई अंबानी ने A. Besse and Co. के साथ बतौर गैस अटेंडेंट जुड़ गए, इस दौरान धीरुभाई का वेतन 300 रुपये हुआ करता था, हालांकि कुछ समय बाद ही धीरुभाई अंबानी को पदोन्नत कर उन्हे अदन शहर के बन्दरगाह पर बने कंपनी के फिलिंग स्टेशन पर प्रबंधन का काम दे दिया गया।
फिर शुरू हुई रिलायंस
साल था 1958, धीरुभाई अंबानी अपने वतन भारत वापस आ गए। भारत आकर धीरुभाई अंबानी ने अपने चचेरे भाई चम्पकलाल दिमानी के साथ रिलायंस कमर्शियल कार्पोरेशन की शुरुआत की। यह कंपनी पॉलीएस्टर के सूत का आयात और मसालों का निर्यात करती थी। स्वभाव में अंतर होने के चलते धीरुभाई और उनके चचेरे भाई की साझेदारी लंबे समय तक टिक नहीं सकी और 1965 में इसका अंत हो गया। धीरुभाई को जोखिम उठाने वाले व्यवसायियों में गिना जाता था, जबकि चम्पकलाल दिमानी इसके उलट थे। गौरतलब है कि 1960 तक धीरुभाई अंबानी की संपत्ति 10 लाख रुपये आँकी गई थी।
साल 1966 में धीरुभाई अंबानी ने अहमदाबाद में एक कपड़ा मिल की शुरुआत की, इसी के साथ आज चर्चित कपड़ों के ब्रांड ‘विमल’ की भी शुरुआत धीरुभाई ने उसी समय की। साल 1977 में रिलायंस ने पहली बार अपने आईपीओ जारी किया। आईपीओ जारी होते ही कंपनी के साथ 58 हज़ार से भी अधिक निवेशक जुड़े। भारत में इक्विटी कल्ट शुरू करने का श्रेय धीरुभाई अंबानी को ही दिया जाता है।
रिलायंस अपनी सालाना आम बैठकों को आमतौर पर स्टेडियम या मैदानों में आयोजित करने के लिए जानी जाती है। साल 1986 में हुई रिलायंस की सालाना आम बैठक मुंबई के क्रॉस मैदान में आयोजित की गई थी, जिसमें कंपनी के करीब 35 हज़ार शेयरहोल्डरों ने हिस्सा लिया था। साल 1985 में रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज का नाम बदलकर रिलायंस इंडस्ट्रीज रख दिया गया।
तेजी से बढ़ने लगा दायरा
1982 में पॉलिस्टर उत्पादन शुरू करने के साथ, साल 1991 में रिलायंस ने रिफाइनरी के क्षेत्र में दस्तक दी। इसके बाद कंपनी ने पॉलीमर के व्यवसाय में भी प्रवेश किया। इस दौरान रिलायंस के साथ बड़ी संख्या में कर्मचारी जुड़ना शुरू हो गए। साल 1994 में 300 मिलियन डॉलर का जीडीआर यानी वैश्विक जमा रसीद जारी करने के साथ ही धीरुभाई अंबानी को ‘बिजनेसमैन ऑफ द इयर’ के खिताब से भी नवाजा गया। साल 1998 में आउटस्टैंडिंग लीडरशिप के लिए धीरुभाई अंबानी को यूनिवर्सिटी ऑफ पेनिसेलवानिया के वर्तन स्कूल ने सम्मानित भी किया।
साल 2002 में रिलायंस के संस्थापक धीरुभाई अंबानी को लगे एक बड़े सदमे के बाद मुंबई के बरीच कैंडी अस्पताल में दाखिल कराया गया, लेकिन उन्हे बचाया ना जा सका और 6 जुलाई को उनका देहांत हो गया। जब धीरुभाई अंबानी का निधन्न हुआ उस समय रिलायंस समूह की सालाना राशि 75 हज़ार करोड़ रुपये थी।
हुआ बंटवारा
धीरुभाई अंबानी के निधन के दो साल बाद ही उनके दोनों बेटों मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच मतभेद हुआ, जिसके चलते रिलायंस के व्यापार को दो हिस्सों में बांटना पड़ गया। बंटवारे के बाद मुकेश अंबानी को आरआईएल और आईपीसीएल का कारोबार मिला, जबकि अनिल अंबानी को रिलायंस पूंजी, रिलायंस ऊर्जा और रिलायंस इन्फोकॉम का व्यापार मिला। बँटवारे के बाद मुकेश के कारोबार को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड का नाम मिला, जबकि अनिल के कारोबार को अनिल धीरुभाई अंबानी समूह का नाम मिला।
बँटवारे के बाद साल 2008 में रिलायंस इंडस्ट्रीज इकलौती ऐसे भारतीय कंपनी थी, जिसे फोर्ब्स ने ‘दुनिया की 100 सबसे सम्मानित’ कंपनियों की सूची में शामिल किया था।
आगे बढ़ती गई रिलायंस
साल 2002 में रिलायंस ने महानदी बेसिन में प्रकृतिक गैस रिजर्व खोजा,जिसके बाद साल 2009 में इस ब्लॉक में गैस का उत्पादन शुरू कर दिया गया। इसी के साथ मुकेश अंबानी ने अपने हिस्से के कारोबार को आगे बढ़ाते हुए एनर्जी, टेलीकॉम और रिटेल हर क्षेत्र में विस्तार किया। इसी बीच साल 2019 में कंपनी 10 लाख करोड़ का मूल्य वाली देश की पहली कंपनी बनकर सामने आई।
रिलायंस को बड़ा बूस्ट जियो से मिला। रिलायंस ने साल 2010 में इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेस लिमिटेड में 96 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदी थी। साल 2013 में इसका नाम बदलकर रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड कर दिया गया। इस कंपनी ने अपनी योजना के तहत साल 2016 में देश भर में लोगों के बीच बड़े पैमाने पर 4जी सिमकार्ड का वितरण किया। जियो के पास 36 करोड़ 69 लाख से भी अधिक यूजर हैं। इतने बड़े यूजरबेस के साथ जियो बेहद कम समय में भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन बैठी है।
कंपनी आगे बढ़ी लेकिन इसके साथ कंपनी के ऊपर कर्ज का भी बोझ है। 31 मार्च 2019 के आंकड़ों के हिसाब से रिलायंस के ऊपर 2.87 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ है, हालांकि कंपनी ने साल 2021 तक कर्ज मुक्त कंपनी बनने का लक्ष्य रखा है। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार भारत में हर 4 में से एक निवेशक रिलायन्स का शेयरधारक है। आज रिलायंस के साथ 123 सहायक कंपनियाँ और 10 सहयोगी कंपनियाँ जुड़ी हुईं है। रिलायंस रिटेल, रिलायंस लाइफ साइंसेज़, रिलायंस जियो, रिलायंस सोलर और रिलायंस लॉजिस्टिक आदि प्रमुख हैं।
मुकेश अंबानी के उलट अनिल अंबानी का कारोबार उस गति से आगे नहीं बढ़ सका, ज्सिए गति से उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी का करोबार आगे बढ़ रहा था। साल 2008 की वैश्विक मंडी ने अनिल को बड़ा झटका दिया और उनके कारोबार को 31 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। एक ओर मुकेश जहां बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर छोटे भाई अनिल अंबानी आज भारी कर्ज़ के नीचे दबे हुए हैं।