कोलकाता, बेंगलुरु में फंसे हजारों प्रवासी श्रमिकों को खाना खिला रहे हैं ये तीन दोस्त
कोरोनावायरस महामारी के बीच तीन दोस्त देबयान मुखर्जी, सौम्यदीप मंडल और देबोत्तम बसु उन लोगों को राशन किट और आवश्यक सामान वितरित कर रहे हैं, जो बेंगलुरु और कोलकाता में फंसे हुए हैं।
करीब दो महीनों से हम प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के साक्षी बने हुए हैं, जो पूरे राज्यों में पैदल यात्रा कर रहे हैं। जबकि भारत सरकार बसों और ट्रेनों में दैनिक वेतन भोगी और मजदूरों को घर भेजने की योजना के साथ चल रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
सोशल डिस्टेन्सिंग के लिए डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों और सीमित सीटों की उपलब्धता के बाद, बड़ी संख्या में लोग अभी अपने घर जाने से वंचित हैं और उनके पास भोजन या आश्रय तक पहुंच भी नहीं है।
पिछले हफ्ते बेंगलुरु में पूर्वोत्तर राज्यों और ओडिशा के 9,000 से अधिक प्रवासी श्रमिकों ने पैलेस ग्राउंड में समूह बनाया था और वापस घर जाने के लिए अधिक परिवहन की मांग की थी। सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में यह कहानी एक जैसी ही है।
कई गैर-सरकारी संगठनों और लोग इन्हे भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए आगे आए हैं, उनमें से एक 30 वर्षीय देबयान मुखर्जी भी हैं।
उनके दोस्त सौम्यदीप मंडल और देबोत्तम बसु के समर्थन के साथ उन्होने ‘HundAID’ नाम का एक फेसबुक अभियान चलाया है, जिसके जरिये देबयान, जो शहर में एक्सेंचर में एक वरिष्ठ क्लाउड विश्लेषक के रूप में काम करते हैं, इन लोगों की मदद कर रहे हैं।
देबयान मुखर्जी ने द लॉजिकल इंडियन को बताया, "हमारा मूल मानदंड यह था कि वे बिना भोजन के न जाएं। उन्हें लॉकडाउन के बाद फिर से अपना काम जारी रखना चाहिए और इसके लिए उन्हें जीवित रहना होगा। इसलिए हमारी बुनियादी चिंता यह थी कि उन तक कम से कम भोजन की पहुँच हो।”
जबकि देबोत्तम और सौम्यदीप कोलकाता से समर्थन प्रदान करते हैं और राशन वितरित करने में भी मदद करते हैं, देबायन स्थानीय पुलिस की मदद से बेंगलुरु के इलाकों में समान वितरित करते हैं।
यह अभियान उन लोगों से कम से कम 100 रुपये मांगता है, जो दैनिक ग्रामीणों के लिए भोजन के बदले में योगदान करना चाहता है। आज तक देबयान की उनकी 10 लोगों की टीम ने 3.8 लाख रुपये के करीब राशि इकट्ठा की है और पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और कोलकाता के साथ बेंगलुरु में लगभग 3,500 श्रमिकों की मदद को आगे आए हैं।