बन गई ऐसी टेस्टिंग किट जो महज़ 10 मिनट में कोरोना का पता लगाएगी
वाशिंगटन, वैज्ञानिकों ने कोविड-19 की जांच के लिए एक प्रायोगिक किट तैयार की है जिससे 10 मिनट में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता चल जाएगा। इस उपलब्धि से पूरी दुनिया में कोविड-19 जांच में तेजी आने की उम्मीद है।
एसीएस नैनो नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के मुताबिक इस जांच किट में साधारण सोना के नैनो कण होते हैं जो वायरस की उपस्थिति होने से रंग बदलता है।
मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन विश्वविद्यालय (यूएमएसओएम) के शोधकर्ताओं ने बताया कि इस जांच में किसी उन्नत प्रयोगशाला तकनीक की आश्यकता नहीं होती, जैसा आमतौर पर वायरस का विश्लेषण करने के लिए उसके आनुवांशिकी की कई प्रति बनानी पड़ती है।
यूएमएसओएम के प्रमुख शोधपत्र लेखक दीपांजन पैन ने कहा,
‘‘प्राथमिक जांच पर आधारित इस जांच से हमें भरोसा है कि वायरस के आरएनए तत्वों का संक्रमण के पहले दिन से ही पता लगाने में मदद मिलेगी।’’
हालांकि, पैन ने कहा कि इस जांच की विश्वसनीयता को परखने के लिए अभी और जांच की आवश्यकता है।
अध्ययन में रेखांकित किया गया कि इस प्रायोगिक जांच में मरीज के नाक और लार के नमूने लेकर दस मिनट की प्रक्रिया में आरएनए प्राप्त किया जाता है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि जांच के दौरान कोरोना वायरस की आनुवांशिकी के क्रम में मौजूद प्रोटीन का पता लगाने के लिए विशेष कण का इस्तेमाल किया जाता है।
अध्ययन में कहा गया कि बायोसेंसर जब आनुवांशिकी क्रम से जुड़ते हैं तो सोने के नैनोकण प्रतिक्रिया करते हैं और तरल पदार्थ बैंगनी से नीले रंग में तब्दील हो जाता है।
पैन ने कहा,
‘‘किसी भी कोविड-19 जांच की सटीकता वायरस के भरोसेमंद तरीके से पता लगाने पर आधारित होता है। इसका मतलब है कि वायरस की मौजूदगी होने पर गलत जानकारी नहीं दे।’’
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में कई जांच किट उपलब्ध हैं लेकिन वे संक्रमण के कई दिनों के बाद ही वायरस होने की पुष्टि कर पाते हैं।
पैन ने कहा कि इसकी वजह से पर्याप्त संख्या में गलत नतीजे आ रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि आरएनए आधारित जांच वायरस से संक्रमण का पता लगाने के मामले में बहुत प्रमाणिक है।
उन्होंने कहा, हालांकि इसकी सटीकता का पता लगाने के लिए और चिकित्सीय परीक्षण की जरूरत है। शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रयोगशाला में होने वाली कोविड-19 मानक जांच के मुकाबले यह कम महंगा होगा।
उन्होंने कहा कि इस जांच में प्रयोगशाला के उपकरणों और प्रशिक्षित व्यक्तियों की जरूरत नहीं है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि इस जांच का इस्तेमाल नर्सिंग होम, महाविद्यालयों के परिसर और कार्यस्थल पर किया जा सकता है।
Edited by रविकांत पारीक