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अदालत ने धर्मसंघ से नन के निष्कासन पर एक जनवरी तक लगाई रोक

अदालत ने धर्मसंघ से नन के निष्कासन पर एक जनवरी तक लगाई रोक

Friday December 20, 2019 , 2 min Read

धर्मसंघ से निष्कासित नन के पक्ष में फैसला देते हुए केरल के वायनाड की एक अदालत ने उनके निष्कासन पर रोक लगा दी है। लूसी को उनकी जीवनशैली के बारे में संतोषजनक जवाब देने के चलते निष्काषित किया गया था।

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केरल के वायनाड की एक अदालत ने चर्च के कानूनों के उल्लंघन के आरोप में धर्मसंघ से निष्कासित की गई, एक नन को राहत देते हुए उनके निष्कासन पर एक जनवरी तक रोक लगा दी है।


फ्रांसिस्कन क्लैरिस्ट कांग्रिगेशन (एफसीसी) ने सिस्टर लूसी कलप्पुरा को अपनी जीवनशैली के बारे में संतोषजनक जवाब देने में नाकाम रहने पर निष्कासित कर दिया था।

सिस्टर कलप्पुरा ने कविताएं प्रकाशित की थीं, एक कार खरीदी थी और बलात्कार के आरोपी जालंधर के पूर्व बिशप के खिलाफ एक रैली में भाग लिया था।

नन की याचिका पर सुनवाई करने वाली मनंतावाड़ी की एक मुंसिफ अदालत ने बुधवार को उनके निष्कासन पर एक जनवरी तक रोक लगा दी।

नन के एक संबंधी ने पीटीआई-भाषा से कहा,

"सिस्टर ने एफसीसी से अपने निष्कासन के खिलाफ अदालत का रुख किया। उन्हें उनका पक्ष सुने बिना हटा दिया गया था। अदालत ने कल कहा कि वह एक जनवरी को मामले की सुनवाई करेगी।"

इसके पहले ईसाइयों की एक संस्था ‘फ्रांसिस्कन क्लैरिस्ट कॉन्ग्रिगेशन’ से निष्कासित किये जाने के फैसले के खिलाफ केरल की नन ने वेटिकन में अपील दायर की थी। संस्था ने नन लूसी कलप्पुरा पर कविताएं छपवाने, कार खरीदने और जालंधर डायोसिज के एक पूर्व बिशप के खिलाफ प्रदर्शन में भाग लेने का आरोप लगाया था।



गौरतलब है कि पूर्व बिशप बलात्कार का आरोपी है। तब संस्था ने नन की मां को एक खत लिखकर नान को वापस घर ले जाने के लिए कहा था। नन के अपनी जीवनशैली के बारे में संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में नाकाम रहने पर अगस्त महीने की शुरूआत में संस्था से निष्कासित कर दिया गया था।


इसके पहले लूसी ने मुखर होकर पादरियों के खिलाफ सख्त आवाज़ उठाई थी। लूसी का कहना है कि

"इस तरह के पादरियों की हरकतों से सभोई वाकिफ हैं, लेकिन उनके किलफ कोई आवाज़ नहीं उठाता है।"

लूसी ने अपनी जीवनी में इस तरह की घटनाओं का मुखर होकर जिक्र किया है। लूसी के अनुसार उन्होने उन्होंने इस किताब को लिखने की शुरुआत वर्ष 2004 और 2005 के बीच की थी। वह उन दिनों वह तमाम तरह की मानसिक यातनाओं से गुजर रहीं थीं।


(Edited by प्रियांशु द्विवेदी)