देश में समानता लाने में मददगार रही है कोविड महामारी: रिपोर्ट
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के अर्थशास्त्रियों ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 से देश में असमानताएं कम हुई हैं और वैश्विक महामारी ने तो एक तरह से सबको एक स्तर पर लाने का काम किया है.
विशेषज्ञों ने इस आलोचना को नकार दिया कि भारत में असमानताएं बढ़ रही हैं जिसमें अमीर और भी अमीर हो रहा है जबकि गरीब और ज्यादा गरीबी में धंस रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि सरकार गरीबों को जो पैसा भेज रही है वह प्रत्येक घर के लिए प्रतिवर्ष 75,000 रुपये पड़ता है.
दरअसल कोविड-19 महामारी का प्रकोप शुरू होने के कुछ महीनों बाद ऐसी चिंता व्यक्त की गईं थीं कि देश में अमीर लोगों की सम्पन्नता बढ़ रही है जबकि गरीब लोग गरीबी में डूबते जा रहे हैं. इसे ‘के-आकार’ का पुनरुद्धार नाम दिया गया था.
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों और अध्ययनों के विश्लेषण के बाद कहा, "देखा जाए तो वैश्विक महामारी एक प्रकार से समानता लाने वाली रही है जिसमें खाद्यान्न दिये जाने जैसे कदमों के जरिए गरीबों की रक्षा हुई."
उन्होंने कहा कि कोविड-19 के बाद भारत ने तीव्र पुनरुद्धार हासिल किया, बावजूद इसके आलोचक अब भी इसे भारत के लिए ‘के-आकार’ का पुनरुद्धार बता रहे हैं.
अनाज खरीद के जरिए असमानता को कम करने में मिली मदद से संबंधित एक अध्ययन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘भारत के संदर्भ में बात की जाए तो यह मानना गलत है कि महामारी के दौरान असमानता बढ़ी है.’’ बल्कि अधिक अनाज खरीद से नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण के रूप में बेहद गरीब लोगों को फायदा हो रहा है. साथ ही इससे छोटे और सीमांत किसानों को भी लाभ मिल रहा है क्योंकि उनके जेब में पैसे आए.
रिपोर्ट में कहा गया, "जैसा कि जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) से स्पष्ट है, राज्यों में उत्पादन में प्रगतिशील वृद्धि हुई है और इस तरह की वृद्धि का परिणाम एक समावेशी वृद्धि के रूप में सामने आया है."
वहीं, IdeasForIndia के एक सर्वे में 47 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें किसी-न-किसी प्रकार की सहायता या सहयोग प्राप्त हुआ है - 89% उत्तरदाताओं को सरकार से सहायता प्राप्त हुई, 12% को मित्रों और रिश्तेदारों से सहायता मिली, और 4% को अन्य स्रोतों जैसे कि स्थानीय राजनीतिक नेता, गैर सरकारी संगठन आदि से सहायता प्राप्त हुई. सरकार से मिलने वाली सहायता मुख्य रूप से वित्तीय सहायता, भोजन और अन्य राशन के सामान की व्यवस्था के रूप में थी. कुछ व्यक्तियों ने विशेष रूप से सरकार से पका हुआ भोजन प्राप्त करने का उल्लेख किया है. हालांकि, उत्तरदाताओं में से 71% का मानना था कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की मदद अपर्याप्त थी.
Edited by रविकांत पारीक