कई स्मार्ट शहरों में 5 सालों में भी नहीं बन पाए साइकिल ट्रैक, वापसी पर लग रहा ब्रेक
आवास और शहरी कार्य मंत्रालय वर्ष 2015 से देशभर में दो लाख करोड़ की लागत से 100 स्मार्ट शहर बना रहा है. इसमें फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाना अनिवार्य है. राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति-2006 में भी सुरक्षित साइक्लिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने और गैर-मोटर चालित मोड को प्राथमिकता देने की बात कही गई है.
बढ़ता तापमान, ट्रैफिक जाम, वाहनों से निकलने वाला धुआं और बीमारियों के चंगुल में फंसते शहर अब राहत भरी सांस के लिए तरस रहे हैं. सड़क पर वाहनों की भीड़ में कोई साइकिल सवार जान हथेली पर लेकर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ता दिखाई दे जाता है. साइकिल सवारों का काफिला सड़क पर बढ़ाने के लिए गैर-मोटर चालित बुनियादी ढांचा (non motorized infrastructure, NMT) तैयार करने की जरूरत है. लेकिन देशभर के स्मार्ट शहरों में एनएमटी पर काम छोटे स्तर पर हो रहा है, जबकि जरूरत इससे कहीं ज्यादा है.
शहरों को बेहतर जीवनशैली के लिए डिजाइन करने के उद्देश्य से आवास और शहरी कार्य मंत्रालय वर्ष 2015 से देशभर में 2,05,018 करोड़ रुपए की लागत से 100 स्मार्ट शहर बना रहा है. इसका मकसद आर्थिक तरक्की के साथ लोगों को बेहतर जीवन और बेहतर परिवहन सुविधा देना है. साथ ही शहरों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना है. साइकिल चलाने और पैदल चलने वालों के लिए स्मार्ट सिटी में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाना अनिवार्य है. काउंसिल ऑफ एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर के मुताबिक पैदल चलने और साइकिल को बढ़ावा देकर 2032 तक परिवहन क्षेत्र में तकरीबन 37% कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया जा सकता है.
क्या स्मार्ट शहरों में की जा सकती हैं साइकिल यात्राएं?
उदाहरण के तौर पर देहरादून को लेते हैं. यहां वर्ष 2017 में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट शुरू हुआ. प्रोजेक्ट के पांचवे वर्ष में भी शहर की सड़कें साइकिल सवारों के लिए सुरक्षित नज़र नहीं आतीं. स्मार्ट सिटी देहरादून के स्वतंत्र निदेशक लोकेश ओहरी कहते हैं, “स्मार्ट सिटी पर होने वाली बैठकों में साइकिल इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर मैं सवाल उठाता रहता हूं. लेकिन नेताओं और अधिकारियों को लगता है कि शहर सिर्फ गाड़ियों के लिए होना चाहिए. शुरुआत में सड़क बनाने की योजना में साइकिल ट्रैक पर चर्चा भी हुई थी. लेकिन इस दिशा में कोई खास काम नहीं हुआ.”
अट्ठारह लाख से अधिक की आबादी वाले देहरादून में सुबह-दोपहर स्कूल के समय पूरा शहर ट्रैफिक जाम में फंस जाता है. अगर इन्हीं बच्चों को पैदल या साइकिल से स्कूल जाने की सुविधा मिले तो जाम और प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है.
वहीं देहरादून स्मार्ट सिटी की जनसंपर्क अधिकारी प्रेरणा ध्यानी बताती हैं, “स्मार्ट सिटी के तहत शहर में पब्लिक इलेक्ट्रिक साइकिल शेयरिंग सिस्टम पर काम शुरू किया जा रहा है. इसके लिए यस बैंक के साथ आठ जुलाई को करार हुआ है. इस योजना में शहर के 10 स्थानों पर 100 ई-साइकिल 10 रुपए प्रति घंटा शुल्क पर उपलब्ध कराई जाएंगी. हमने परेड ग्राउंड के अंदर साइक्लिंग ट्रैक बनाया है. चाइल्ड फ्रेंडली प्रोजेक्ट में स्कूल के आसपास बच्चों की सुरक्षित आवाजाही के लिए फुटपाथ तैयार किया जाएगा. इन सब पर जल्द काम शुरू होगा.”
प्रेरणा शहर के एक बड़े मैदान में बने साइकिल ट्रैक की बात कर रही हैं, जहां भीड़-भरे रास्तों को पार कर लोग साइकिल चलाने आ सकते हैं. लेकिन रोज़मर्रा के कामों के लिए देहरादून स्मार्ट सिटी में साइकिल ट्रैक नहीं हैं.
यह साइकिल ट्रैक इंटर-लॉकिंग टाइल्स से बनाई गई है जिसके बीच में लोहे की जालियां लगी हैं. जबकि साइकिल ट्रैक की सतह चिकनी होनी चाहिए ताकि साइकिल सवार को सहूलियत हो, वहां से गुजरते हुए एक साइकिल सवार ने कहा.
पंजाब का भी यही हाल
साल 2016 में लुधियाना स्मार्ट सिटी के लिए चुने गए शीर्ष 20 शहरों में से एक था. लुधियाना के बाद अमृतसर और जालंधर भी इसमें जुड़े. पंजाब सरकार के ट्रैफिक सलाहकार डॉ नवदीप असीजा कहते हैं, “ये शहर सांस्कृतिक तौर पर साइकिल से चलने वालों का हुआ करता था. लेकिन अब लुधियाना की सड़कें साइकिल सवारों के लिए सुरक्षित नहीं हैं.”
इन तीनों स्मार्ट शहरों में फुटपाथ-साइकिल ट्रैक तैयार करने के लिए कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुआ है. पंजाब के शहरी निकायों को लेकर जारी कैग ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि लुधियाना, अमृतसर और जालंधर में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत प्रस्तावित 124 में से महज 15 प्रोजेक्ट ही अक्टूबर-2020 तक पूरे हो सके थे. यानी महज 12 फीसदी से कुछ अधिक. 76 प्रोजेक्ट पर काम शुरू ही नहीं हुआ. बाकी पर काम जारी है. जबकि जून 2020 तक इन्हें पूरा करना था.
नवदीप कहते हैं कि लुधियाना में इस समय 10 मीटर की साइकिल ट्रैक भी नहीं बनाई जा सकी है. जबकि स्मार्ट शहरों में एनएमटी ढांचा बनाना अनिवार्य है. राज्य सरकारों को बजट इसी शर्त के साथ जारी किया जाता है.
वहीं पंजाब के अन्य शहरों के उलट चंडीगढ़ इस मामले में आगे दिखता है. वह खुद को 200 किमी साइकिल ट्रैक बनाने वाले अकेले शहर के रूप में पेश करता है.
असीजा कहते हैं, “चंडीगढ़ स्मार्ट सिटी में साइकिल ट्रैक तैयार हैं लेकिन साइकिल सवारों का इंतज़ार है. यहां के 1951 के मास्टर प्लान में ही साइकिल ट्रैक बनाना शामिल था. लेकिन इस पर कोई काम नहीं किया गया. 1990 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद 2015 तक हमने साइकिल और सार्वजनिक वाहनों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया और सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या बढ़ती चली गई. फुटपाथ और साइकिलें पीछे छूटती चली गई. अब साइकिल ट्रैक बनाई जाएंगी तो लोग भी इन पर अपनी साइकिलें लेकर वापस आएंगे. इस बदलाव को आने में वक़्त लगेगा.”
नवनीत कहते हैं कि केंद्रशासित स्मार्ट शहरों में अपेक्षाकृत बेहतर काम हो रहा है. भुवनेश्वर जैसे एक-दो स्मार्ट शहरों को छोड़ दें, तो हमारे पास अब तक स्मार्ट सिटी का कोई अच्छा उदाहरण नहीं है.
महानगरों समेत अन्य शहरों का हाल
वहीं देश की राजधानी दिल्ली में कनॉट प्लेस के दो वर्ग किलोमीटर के दायरे को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित किया जा रहा है. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो रूमी ऐजाज़ ने इस पर शोध किया. वह कहते हैं कि नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने स्मार्ट सिटी के तहत कनॉट प्लेस क्षेत्र में खुले में साइकिल स्टैंड बनाए. आवाजाही के लिए किराए पर साइकिल उपलब्ध कराई. लेकिन यहां की सड़कों पर अलग से साइकिल ट्रैक नहीं है. जबकि दिल्ली स्मार्ट सिटी के प्रस्ताव में ऐप आधारित साइकिल ट्रैक बनाना शामिल है. स्मार्ट सिटी मिशन के तहत दिल्ली में साइकिलों को तेज रफ़्तार वाहनों के बीच से ही गुज़रना होता है.
मुंबई स्मार्ट सिटी में परिवहन बेहतर करने के लिए सड़क चौड़ी करने, मेट्रो से आवाजाही, स्मार्ट पार्किंग, फुटपाथ बनाने का प्रस्ताव शामिल था. लेकिन साइकिल से चलने की कोई योजना नहीं बनाई गई. जबकि चेन्नई स्मार्ट सिटी में 17 किमी की साइकिल ट्रैक जून 2018 में बनकर तैयार हो गया.
एजाज ने स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 2015-2021 तक किए कामों पर भी शोध किया. वह बताते हैं कि तेलंगाना की स्मार्ट सिटी ग्रेटर वारंगल में सड़क के साथ 40 किमी साइकिल और पैदल चलने की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. कोलकाता के न्यूटाउन स्मार्ट सिटी में तीन किमी बाधा रहित साइकिल ट्रैक बनाई जा रही है. सूरत स्मार्ट सिटी के बाइसिकल प्रोजेक्ट में 1160 साइकिल के साथ 42 बाइक स्टेशन बन रहे हैं. मिशन के छह साल पूरे होने पर आवास और शहरी विकास मंत्रालय ने जानकारी दी कि गैर-मोटरचालित शहरी परिवहन से जुड़े 180 प्रोजेक्ट पूरे किए जा चुके हैं.
साइकिल सवारों का सड़कों पर दावा
कोरोना के बाद साइकिल की ओर लोगों को रुझान बढ़ा है. देहरादून के साइकिल सवार अब शहर की सड़कों पर अपना दावा कर रहे हैं. शहर में 20 से अधिक साइक्लिंग क्लब-ग्रुप बने हुए हैं. देहरादून साइक्लिंग क्लब इनमें से एक है. क्लब के सदस्य हरिसिमरन सिंह कहते हैं, “हम शनिवार-इतवार को साइकिल यात्राएं आयोजित करते हैं. इसके लिए शहर के बाहरी हिस्सों को चुनते हैं क्योंकि वहां ट्रैफिक का दबाव कम होता है. हमें पूरे शहर में साइकिल ट्रैक चाहिए ताकि लोग कम दूरी वाला सफ़र साइकिल से सुरक्षित तय कर सकें.”
सड़कों पर साइकिल सवारों के दावे को मज़बूत बनाने के लिए पर्यावरणविद् पद्मश्री अनिल जोशी ने 5 जून को देहरादून की सड़कों पर साइकिल चलाई. वह कहते हैं, “देहरादून जैसे शहर में सिर्फ परेड ग्राउंड के भीतर साइकिल ट्रैक बनाने से कुछ नहीं होगा. देहरादून की सड़कों पर वाहनों का बढ़ता दबाव देखते हुए सड़कें चौड़ी की जा रही हैं. इसके लिए हज़ारों की संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं. चौड़ी की जा रही इन सड़कों पर साइकिल ट्रैक होनी ही चाहिए. छोटी दूरियां तय करने के लिए साइकिल की वापसी अहम है.”
बढ़ते तापमान से जहां शहरी क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं,वहीं वे इसके लिए ज़िम्मेदार भी हैं. पूरी दुनिया की तकरीबन आधी आबादी शहरों में रहती है. वैश्विक ग्रीन हाउस गैसों के तीन-चौथाई उत्सर्जन के लिए शहरों को ज़िम्मेदार माना जाता है. अनुमान है कि 2030 तक शहरों में कुल आबादी का दो-तिहाई लोग रहेंगे.
आईपीसीसी की रिपोर्ट के मुताबिक वाहनों से निकलने वाले धुएं को कम करना बड़ी चुनौती है. परिवहन क्षेत्र ने वर्ष 2010 में 7 गीगाटन (7.0 Gt CO2eq) ग्रीन हाउस गैसों का सीधे तौर पर उत्सर्जन किया. ये ऊर्जा से संबंधित कुल CO2 उत्सर्जन का लगभग एक-चौथाई (6.7 GtCO2) था. इसलिए राष्ट्रीय शहरी परिहवन नीति-2006 भी सुरक्षित साइक्लिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने और गैर-मोटर चालित मोड को प्राथमिकता देने की बात कही गई है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक भारत में मात्र आठ फीसदी लोग यानी 12 में से एक घर में कार है. 54% के पास दो-पहिया वाहन हैं, जबकि 55% लोगों के पास साइकिल है.
साइक्लिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल मनिंदर पाल सिंह कहते हैं, “हिंदुस्तान में हर व्यक्ति ने अपने जीवन में कभी न कभी साइकिल जरूर चलाई है. इसके बावजूद हमारी सरकारों ने 55% लोगों की सुरक्षित साइकिल यात्रा के लिए कोई नियम-कायदा नहीं बनाया. जबकि आठ फीसदी लोगों के लिए नियम-कायदे, सड़कें, फ्लाईओवर सब बनाए जा रहे हैं. हमें साइकिल से चलने वालों को अलग ट्रैक देना होगा. वाहनों के लिए नियम बनाने होंगे ताकि साइकिल सवार सुरक्षित रहें.”
देहरादून की साइक्लिंग मेयर के खिताब से नवाज़ी गईं विश्व धीमान 68 वर्ष की हैं. 2016 से उन्होंने साइकिल चलाना शुरू किया. साइकिल से वह गंगोत्री, वैष्णो देवी, लद्दाख, राजस्थान, नेपाल की लंबी यात्राएं कर चुकी हैं. देहरादून में साइकिल चलाने के दौरान कई बार सड़क दुर्घटनाओं की शिकार भी हुईं. वह कहती हैं, “हम ये इंतज़ार नहीं कर सकते कि साइकिल ट्रैक आए फिर हम साइकिल चलाएं. जब हम सड़कों पर सुरक्षा के साथ साइकिल चलाना शुरू कर देंगे तो सरकारों को भी साइकिल ट्रैक बनाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.”
साइकिल की वापसी की जरूरत केंद्र सरकार भी महसूस कर रही है. कोरोना काल में केंद्र सरकार ने साइकिल यात्राओं को बढ़ावा देने के लिए शहरों को ‘साइकिल फॉर चेंज’ चुनौती दी थी. जिसमें शहरों को साइकिल के लिहाज से सड़कों में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: साइकिल से ट्रैफिक जाम के बीच स्कूल जाता हुआ बच्चा. देहरादून में वर्ष 2017 में स्मार्ट सिटी का कार्य शुरू हुआ था. मिशन के पांचवे साल में भी देहरादून में साइकिल लेन नहीं बन सकी हैं. तस्वीर - वर्षा सिंह