जब मणिपुर सरकार ने नहीं की मदद, तो इस IAS अॉफिसर ने खुद से ही बनावा दी 100 किमी लंबी सड़क
बिना किसी सरकारी मदद के 100 किमी लंबी सड़क बनवाने वाला IAS अॉफिसर
मणिपुर के दूरस्थ इलाके के दो गांव टूसेम और तमेंगलॉन्ग तक जाने के लिए सड़क नहीं थी, जिसका असर आम जनजीवन पर पड़ रहा था, ऐसे में जनता की ज़रूरत को देखते हुए 2009 बैच के IAS ऑफिसर आर्मस्ट्रॉन्ग पेम ने आज से 5 साल पहले बिना किसी सरकारी सहायता के 100 किलोमीटर लंबी सड़क बनवा दी थी, आईये जानें पेम और उनके कामों को थोड़ा और करीब से...
आज से कुछ साल पहले 2009 बैच के IAS ऑफिसर आर्मस्ट्रॉन्ग पेम ने मणिपुर सरकार को पत्र लिखकर सड़क बनवाने के लिए मदद मांगी, लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार ने अपने हाथ खड़े कर लिए। इससे पेम को थोड़ा दुख पहुंचा, लेकिन उन्होंने सोच लिया कि वे अपने दम पर ही ये सड़क बनवा कर रहेंगे।
कहा जाता है कि जिन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने का जुनून सवार होता है वो सागर पर भी पुल बना सकते हैं। हम खुशनसीब हैं कि हमारे देश में ऐसी बातों को हकीकत में बदल देने वाले लोग हैं। मिरैकल मैन के नाम से मशहूर आईएएस ऑफिसर आर्मस्ट्रॉन्ग पेम ऐसे ही शख्स हैं जो ऐसी चीजें करने के लिए जाने जाते हैं। 2009 बैच के आईएएस ऑफिसर पेम ने आज से 5 साल पहले बिना किसी सरकारी सहायता के 100 किलोमीटर सड़क बनवा दी थी। मणिपुर के दूरस्थ इलाके के दो गांव टूसेम और तमेंगलॉन्ग तक जाने के लिए सड़क नहीं थी। आज उस सड़क को पीपल्स रोड के नाम से जाना जाता है। जिसका पूरा श्रेय इस कर्मठ अधिकारी को जाता है।
आज से लगभग 5 साल पहले मणिपुर के दो इलाके सड़क न होने के कारण बाकी दुनिया से कटे हुए थे। इस वजह से वहां के लोगों को काफी दिक्कतें होती थीं और किसी जरूरी काम के लिए वह बाहर नहीं निकल पाते थे। कहीं बाहर जाने के लिए लोगों को या तो घंटों पैदल चलना पड़ता था या फिर उन्हें नदी पार करने का जोखिम लेना पड़ता था। यह सड़क मणिपुर को आसाम और नागालैंड से जोड़ती है। पेम ने सड़क बनवाने के लिए फेसबुक के जरिए 40 लाख रुपये इकट्ठा किए थे। अगर किसी की तबीयत खराब हो जाती थी तो उसे अस्पताल पहुंचाने के लिए बांस का छोटा सा स्ट्रेचर बनाना पड़ता था, जिसके सहारे नदी पार की जाती थी।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस सड़क को बनवाने के लिए कभी रुचि नहीं दिखाई थी। बताया जाता है कि 1982 में ही इस सड़क को बनवाने का प्रस्ताव भेजा गया था और केंद्र सरकार ने 101 करोड़ रुपये स्वीकृत भी किए थे, लेकिन बाद में किन्हीं कारणों से काम आगे नहीं बढ़ा था। राज्य सरकारें भी लोगों से सिर्फ वादे ही करती रहीं लेकिन हकीकत में कुछ नहीं हुआ। इसी वजह से डॉक्टर भी इस गांव तक नहीं पहुंच पाते थे। पेम के ही आग्रह पर एक महिला डॉक्टर इस गांव में आने को राजी हुई थीं। जिन्होंने वहां रहकर लगभग 500 मरीजों का इलाज किया था। लेकिन हमेशा तो ऐसा हो नहीं सकता था इसलिए सड़क का बनना जरूरी था।
पेम खुद एक दूरस्थ गांव से आते हैं जहां हमेशा से सुविधाओं का आभाव रहा है, इसलिए उन्हें गांव वालों का दर्द समझ में आ गया। वे अच्छे काम करके पूर्वोत्तर के ग्रामीण इलाकों में बदलाव लाना चाहते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से 2005 में ग्रैजुएट होने वाले पेम ने यूपीएससी की परीक्षा दी।
2009 में परीक्षा पास करके पेम आईएएस बने और मणिपुर के टूसेम जिले में एसडीएम के पद पर उन्हें तैनाती मिली। जहां लोगों को ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं नहीं मिलती थीं। उन्होंने इसके लिए कुछ करने के बारे में सोचा। उन्होंने ठान लिया था कि चाहे सरकार की मदद मिले या नहीं, वे सड़क बनवा के ही रहेंगे। उन्होंने इसके लिए 31 गांवों का दौरा किया जिससे कि वे उनकी सही समस्या जान सकें।
इसके बाद उन्होंने मणिपुर सरकार को पत्र लिखकर सड़क बनवाने के लिए मदद मांगी। लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार ने अपने हाथ खड़े कर लिए। इससे पेम को थोड़ा दुख पहुंचा, लेकिन उन्होंने सोच लिया कि वे अपने दम पर ही ये सड़क बनवा कर रहेंगे। उन्होंने मदद जुटाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। और आखिर में वही हुआ जिसकी उन्हें उम्मीद थी। लोगों ने इस पहल को उम्मीद से ज्यादा समर्थन दिया। भारत के बाकी इलाकों में रहने वाले लोगों ने आर्थिक मदद करने के लिए हाथ बढ़ाए। यह देखकर पेम ने भी अपनी ओर से पांच लाख रुपये दान किए और इतना ही नहीं उनके माता-पिता ने भी अपनी पेंशन से कुछ पैसे सड़क बनवाने के लिए दिए।
लाखों लोगों ने पेम के इस सराहनीय कदम की तारीफ की। कुछ ही दिनों में 40 लाख रुपयों का इंतजाम हो गया। इसके अलावा स्थानीय ठेकेदारों ने भी उनकी मदद करने की बात कही। लोगों ने सड़क बनवाने के लिए श्रमदान भी किया और सड़क बनकर तैयार हो गई।
ऐसा करके आर्मस्ट्रॉन्ग ने एक उदाहरण पेश किया है कि हर काम के लिए सरकार की तरफ आस लगाना जरूरी नहीं है। आम इंसान और समाज के लोग मिलकर कुछ भी कर सकते हैं।
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