क्या आप जानते हैं भोजपुरी का पहला फिल्मी गीत लिखने वाले मोती बीए को?
भोजपुरी का पहला गीत लिखने वाले गीतकार...
अपने सुमधुर गीतों से कवि-सम्मेलनों के मंचों पर धूम मचा देने वाले भोजपुरी के ख्यात कवि मोती बीए भोजपुरी गीतों को फिल्मी दुनिया में प्रतिष्ठित करने वाले पहले रचनाकार रहे हैं। कुल अस्सी से अधिक फिल्मों में गीत लिखने वाले मोती जी का जन्मदिन 1 अगस्त को होता है।
जब उन्होंने बीए किया तब तक वे कवि सम्मेलनों में एक गीतकार के रूप में पहचान बना चुके थे। उन्होंने अपने नाम के आगे बीए लगाना शुरू कर दिया। उस समय आज़ादी की जंग जोरो पर थी।
प्रसिद्ध कवि मोती बीए के एक फिल्मी गीत की लाइन - 'मोरे राजा हो ले चल नदिया के पार' आज भी भोजपुरी अंचल के जन-जन की जुबान पर है। भोजपुरी के प्रतिष्ठित कवि मोती बीए ने आजादी से पहले एमए कर लिया था, लेकिन कविता के मंच पर अपनी क्रांतिकारी रचनाओं की वजह से वह तब देश भर में चर्चित हो गए, जब उन्होंने बीए किया था। सन् 1947 में अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री कामिनी कौशल को लेकर बनाई गई किशोर साहू की फिल्म ‘नदिया के पार’ में उन्होंने चित्रपट जगत के लिए सबसे पहला भोजपुरी गीत ‘कठवा के नइयां, बनइहे रे मलहवा, नदिया के पार दे उतार’ लिखा था, जिसे भोजपुरी बोली को पहली बार सेलुलॉइड पर लाने का श्रेय दिया जाता है।
इसी फिल्म में उनकी एक गजल खासी चर्चित हुई थी, जिसका बोल था ‘हमको तुम्हारा ही आसरा, तुम हमारे हो न हो...।’ इसके अलावा फिल्म साजन, कैसे कहूं, राजपूत, राम विवाह, गजब भइले रामा, वीर घटोत्कच जैसी फिल्मों में अभिनय के साथ गीत भी लिखे। उनका जीवन गीत सागर में ही डूबता-उतराता रहा। वह लिखते हैं- ‘आंसुओं के पार से गाकर मुझे किसने पुकार, गीत जीवन का सहारा।’ उन्होंने 1944 से लेकर 1951 तक पंचोली आर्ट्स पिक्चर्स लाहौर, फिल्मिस्तान लिमिटेड, बम्बई, प्रकाश पिक्चर्स, बम्बई के गीतकार के रूप में ‘नदिया के पार’ के अलावा ‘कैसे कहूँ’, ‘साजन’, ‘सिन्दूर’, ‘रिमझिम’, ‘सुभद्रा’ इत्यादि अनेक फिल्मों में गीत लिखे। इसके बाद 1984-85 में भोजपुरी फिल्म ‘गजब भइलें रामा’ ‘चम्पा चमेली’ ‘ठकुराइन’ इत्यादि में गीत लेखन के साथ ही उन्होंने अभिनय भी किया। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन बम्बई, इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर से काव्य पाठ तथा अनेक स्वरचित लोक संगीतिकाओं का प्रसारण होता रहा।
देवरिया (उ.प्र.) के गांव बरेजी में पिता राधाकृष्ण उपाध्याय और मां कौशल्या देवी के घर 01 अगस्त, 1919 को जनमे मोती बीए का 18 जनवरी, 2009 को देहावसान हो गया। उन्होंने बरहज से हाई स्कूल, गोरखपुर से इण्टर मीडिएट तथा वाराणसी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. (इतिहास), बी.टी. साहित्य रत्न प्राप्त किया। सन् 1936 से सन् 2000 तक हिन्दी, भोजपुरी, उर्दू तथा अंग्रेजी में उन्होंने गीत, गजल, कविता, निबन्ध, अनुवाद, आत्मकथा आदि कुल पचास से अधिक पुस्तकें लिखीं। 1939 से 1943 तक अग्रगामी, आज, संसार, आर्यावर्त समाचार-पत्रों के सम्पादकीय विभाग में मूर्धन्य पत्रकार बाबूराव विष्णु पराड़कर तथा सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के वह सम्पादकीय सहायक भी रहे।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1943 में वाराणसी में चेतगंज थाना तथा सेण्ट्रल जेल में भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत उन्हें नजरबन्द रखा गया था। वह 1952 से 1980 तक श्रीकृष्ण इण्टर कालेज, बरहज में इतिहास, अंग्रेजी एवं तर्क शास्त्र के प्रवक्ता के रूप में प्रतिष्ठित रहे। वर्ष 1978 में उत्तर प्रदेश शासन (शिक्षा विभाग) द्वारा ‘आदर्श अध्यापक’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अध्यापन काल में विद्यार्थियों के लाभार्थ हाई स्कूल/जूनियर हाई स्कूल पोइट्री तथा अन्य अंग्रेजी कविताओं का उन्होंने हिन्दी में पद्यानुवाद किया। हिंदी साहित्य में उनकी तेईस प्रकाशित तथा सात अप्रकाशित कविता की पुस्तकें, हिन्दी गद्य में ‘इतिहास का दर्द’, निबन्ध एवं आत्मकथा, भोजपुरी में पाँच प्रकाशित एवं दो अप्रकाशित पुस्तकें उपलब्ध हैं।
उर्दू में पाँच प्रकाशित तथा एक अप्रकाशित, अंग्रेजी में दो प्रकाशित तथा एक अप्रकाशित कविता पुस्तक तथा अंग्रेजी में शेक्सपीयर के सानेट्स तथा पाँच अन्य लम्बी अंग्रेजी कविताओं, कई अन्य छोटी अंग्रेजी कविताओं का हिन्दी एवं भोजपुरी में पद्यानुवाद उपलब्ध है। उन्होंने अब्राहम लिंकन (अंग्रेजी नाटक) का भोजपुरी में अनुवाद, कालिदास कृत ‘मेघदूत’ (संस्कृत) का भोजपुरी में पद्यानुवाद किया।
मोती बीए की 16 साल की उम्र में पहली बार एक कविता दैनिक आज में प्रकाशित हुई। उसकी पंक्तियां थीं- "बिखरा दो ना अनमोल -अरि सखि घूंघट के पट खोल "। जब उन्होंने बीए किया तब तक वे कवि सम्मेलनों में एक गीतकार के रूप में पहचान बना चुके थे। उन्होंने अपने नाम के आगे बीए लगाना शुरू कर दिया। उस समय आज़ादी की जंग जोरो पर थी। अंग्रेज़ों के खिलाफ़ पूरे देश में माहौल बहुत गर्म था। मोती जी भोजपुरी भाषा में क्रांतिकारी गीत लिख लिखकर लोगों को सुनाया करते थे। उसी दौर का उनका एक गीत था -
'भोजपुरियन के हे भइया का समझेला
खुलि के आवा अखाड़ा लड़ा दिहे सा
तोहरी चरखा पढ़वले में का धईल बा
तोहके सगरी पहाड़ा पढ़ा दिये सा।'
मोती बीए को दो दर्जन से अधिक सम्मान एवं पुरस्कार मिले, जिनमें से प्रमुख हैं- उत्तर प्रदेश शासन द्वारा ‘समिधा’ पुस्तक के लिए राज्य साहित्यिक पुरस्कार (1973-74), उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा ‘आदर्श अध्यापक’ पुरस्कार (1978), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा राहुल सांस्कृत्यायन पुरस्कार (1984), हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा ‘भोजपुरी रत्न’ उपाधि (1992), ‘श्रुतिकीर्ति’ सम्मान (1997), विश्व भोजपुरी सम्मेलन, भोपाल द्वारा ‘सेतु’ सम्मान (1998), साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा भोजपुरी के लिए प्रथम ‘भाषा सम्मान’ (2001-02), ‘किसलय’ सम्मान (2005), ‘सरयूरत्न’ सम्मान (2005) आदि।
हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और भोजपुरी पर समान अधिकार रखने वाला और भोजपुरी के शेक्सपियर के नाम से याद किये जाने वाले इस गीतकार ने ये दुनिया छोड़ने से पहले लंबी गुमनाम जिंदगी गुजारी। मोती लाल बीए का पूरा नाम मोती लाल उपाध्याय था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया ज़िले के बरेजी नाम के गांव में 1 अगस्त 1919 को हुआ। बचपन से ही कविता में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी। वे मनपसंद कविताओं को ज़बानी याद कर लेते थे। फिर उन्होंने खुद कविताएं लिखनी शुरू कर दीं। उनकी पढ़ाई वाराणसी में हुई। जनवरी 1944 में वाराणसी में हुए एक कवि सम्मेलन में पंचोली आर्ट पिक्चर के निर्देशक रवि दवे ने उन्हें सुना। मोती का गीत "रूप भार से लदी तू चली" उन्हें बहुत पसंद आया और उन्होंने मोती को फिल्मों में गीत लिखने के लिये निमंत्रण दिया लेकिन मोती जी ने निमंत्रण को फौरन स्वीकार नहीं किया। साहित्य रचने में ही जुटे रहे।
1945 में वह फिर गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें वाराणसी सेंट्रल जेल में भारत रक्षा कानून के तहत नजर बंद कर दिया गया, लेकिन पहले की ही तरह कुछ हफ्तों बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। मोती जी पत्रकारिता ओर साहित्य से ही जुड़े रहना चाहते थे। फिल्मों में जाना उनकी प्राथमिकता कभी नहीं रही, फिर भी जेल से रिहाई के बाद रोजगार के अवसर की तलाश में उन्हें रवि दवे का फिल्मों में गीत लिखने का निमंत्रण फिर याद आया तो उन्होंने लाहौर का रुख किया, जहां पंचोली आर्ट पिक्चर का कार्यालय था। उनकी मुलाकात दलसुख पंचोली से हुई और उन्होंने उन्हें तीन सौ रूपए महीने के वेतन पर गीतकार के रूप में रख लिया। मोती को गीत लिखने के लिये पहली फ़िल्म मिली "कैसे कहूं"। इसके संगीतकार थे पंडित अमरनाथ। इस फ़िल्म में मोती ने पांच गीत लिखे शेष गीत डी एन मधोक ने लिखे।
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