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नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई कहती थीं, 'मैं 'डांसर' हूं, डांस मेरी आत्मा'

मृणालिनी साराभाई के 100वें जन्मदिन पर गूगल ने बनाया डूडल, किया याद...

नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई कहती थीं, 'मैं 'डांसर' हूं, डांस मेरी आत्मा'

Friday May 11, 2018 , 6 min Read

हमारे देश में सन् 1950 के जमाने में जब महिलाओं को खुली आजादी नहीं होती थी, 'अम्मा' के नाम से मशहूर शास्त्रीय नृत्यांगना और कोरियोग्राफर पद्मश्री-पद्मभूषण मृणालिनी साराभाई को उनके मशहूर साइंटिस्ट पति विक्रम साराभाई ने सर्वाधिक संश्रय दिया। यद्यपि उनका बचपन स्विटजरलैंड में बीता, पढ़ाई-लिखाई शांति निकेतन और फ्रांस में भी हुई। आज 'अम्मा' का जन्मदिन है। गूगल ने उन पर डूडल बनाया है।

मृणालिनी साराभाई

मृणालिनी साराभाई


मृणालिनी ने अपने करियर की शुरुआत कोरियोग्राफी से की थी। लगभग तीन सौ ड्रामा एवं डांस में उनका विशेष योगदान रहा। साल 1947 में उनकी पहली संतान कार्तिकेय का जन्म हुआ। वे दोनों भी कलाकार हैं।

'अम्मा' के नाम से मशहूर शास्त्रीय नृत्यांगना और कोरियोग्राफर पद्मश्री-पद्मभूषण मृणालिनी साराभाई पहली ऐसी भारतीय महिला रहीं, जिन्हें डिप्लोमा ऑफ फ्रेंस आर्चिव्स मेडल से समादृत किया गया था। उनका आज (11 मई) जन्मदिन है। वह केरल में जन्मीं और आजीवन अहमदाबाद (गुजरात) की होकर रह गईं। अपने जमाने में वह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में पढ़ने वाली गिनीचुनी महिलाओं में एक थीं। वह कहती थीं - 'नाच मेरी साँस है, मेरा राग। नाच मैं खुद हूँ। क्या कभी कोई यह शब्द समझेगा? नृत्य और मेरे अस्तित्व में कोई अलगाव नहीं है। यह मेरी आत्मा की चमक है, जिससे मेरे अंग का हर हिस्सा चलता है। जब मैं नाचती हूँ तो मैं 'मैं' होती हूँ। जो मैं हूँ, चुप्पी मेरी प्रतिक्रिया है, नाच मेरा जवाब।'

21 जनवरी, 2016 को उनका अहमदाबाद में निधन हुआ था। उस समय वह 97 वर्ष की थीं। अपने बचपन का अधिकांश समय उन्होंने स्विट्जरलैंड में बिताया। वहां 'डेलक्रूज स्‍कूल' से उन्‍होंने पश्चिमी नृत्‍य कलाएं सीखीं, साथ ही शांति निकेतन से भी शिक्षा प्राप्‍त की। शांति निकेतन से शिक्षा हासिल करने के बाद वह कुछ समय के लिए अमरीका चली गईं। उन्होंने स्विट्जरलैंड से भारत लौटकर जानी-मानी नृत्‍यांगना मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई से भरतनाट्यम का और दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य और पौराणिक गुरु थाकाज़ी कुंचू कुरुप से कथकली के शास्त्रीय नृत्य-नाटक में प्रशिक्षण लिया।

उनके पति भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम के अग्रणी डॉ. विक्रम साराभाई सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक रहे हैं। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना और समाजसेवी हैं। मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सेना झांसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ़ थीं। भारत सरकार की ओर से मृणालिनी साराभाई को देश के प्रसिद्ध नागरिक सम्मान 'पद्मभूषण' और 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंगलिया', नॉविच यूके ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। 'इंटरनेशनल डांस काउंसिल पेरिस' की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए भी नामित किया गया था। उन्होंने प्रसिद्ध 'दर्पणा एकेडमी' की स्थापना की थी।

वह जीवन के कई क्षेत्रों, जैसे पर्यावरण, नृत्य, कविता, लेख आदि पर अपनी अमिट छाप छोड़ गईं। उनका पूरा जीवन कला को समर्पित रहा। उन्होंने अपनी हर साँस कला के नाम कर दी। 'दर्पण नृत्य एकेडमी' से अब तक अठारह हजार से अधिक छात्र भरतनाट्यम और कथककली में तालीम हासिल कर चुके हैं। वहाँ कठपुतली, संगीत और नाटक के अलावा कई स्वदेशी संगीत वाद्य यंत्र जैसे मृदानगम और बाँसुरी के अलावा मार्शल आर्ट भी सिखाया जाता है। इस बैनर की ग्लोब पहचान है। यह देश ही नहीं विदेशों के छात्रों के लिए भी नृत्य सीखने के बड़े केंद्र के तौर पर विकसित है। उन्होंने कथकली की अपनी पहली प्रस्तुति दिल्ली में दी। जब उन्होंने ‘मनुष्य’ नाटक का मंचन किया तो उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी ऑडियंस में मौजूद रहे थे। सो खत्म होने पर मृणालिनी को उनसे खूब शाबाशी मिली थी। उन्होंने कई नाटक और उपन्यास, बच्चों के लिए कहानियां और एक ऑटोबायोग्राफी लिखी- ‘मृणालिनी साराभाई- द वॉयस ऑफ द हार्ट’।

मृणालिनी साराभाई का गूगल डूडल

मृणालिनी साराभाई का गूगल डूडल


मृणालिनी केरल की फ्रीडम फाइटर फैमिली से रही हैं। उनकी मां अम्मू स्वामिनाथन सांसद रहीं। पिता डॉ. विश्वनाथ स्वामिनाथन मद्रास हाईकोर्ट में बैरिस्टर और लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल रहे। मृणालिनी और साइंटिस्ट विक्रम के दो बच्चे हुए, कार्तिकेय और मल्लिका। मृणालिनी ने अपने करियर की शुरुआत कोरियोग्राफी से की थी। लगभग तीन सौ ड्रामा एवं डांस में उनका विशेष योगदान रहा। साल 1947 में उनकी पहली संतान कार्तिकेय का जन्म हुआ। वे दोनों भी कलाकार हैं।

मृणालिनी के इस दुनिया से विदा होने पर बेटी मल्लिका साराभाई ने फ़ेसबुक पर लिखा था - 'मेरी माँ मृणालिनी साराभाई हमें छोड़ अपने अनंत नृत्य के लिए चली गईं।' मल्लिका तो राजनीति में भी सक्रिय हैं। सन् 2009 में उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ गांधीनगर से चुनाव नरेंद्र मोदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ा था। सियासत में वह मोदी की प्रखर आलोचक हैं। अपनी मां के निधन पर शोक न प्रकट करने पर उन्हों मोदी के प्रति गहरी नाराजगी जताते हुए फेसबुक पर लिखा था कि ‘मेरे प्रिय प्रधानमंत्री, आप मेरी राजनीति से नफरत करते हैं और मैं आपकी राजनीति से लेकिन उसका उससे कोई लेना-देना नहीं है, जो मृणालिनी साराभाई ने अपने देश की संस्कृति को दुनियाभर में पिछले छह दशक से बढ़ावा देने के लिए किया। उन्होंने विश्व में हमारी संस्कृति की लौ जलाए रखी।’ गुजरात पुलिस ने मल्लिका के खिलाफ अपने नृत्य दल के हिस्से के रूप में भारतीयों की अमेरिका में अवैध तस्करी करने को लेकर मामला दर्ज किया था लेकिन अदालतों ने उस मामले में मल्लिका को क्लीनचिट दे दी थी।

मृणालिनी साराभाई गुजरात हैंडलूम कॉरपोरेशन और नेहरू फॉउंडेशन की चेयरमैन भी रहीं। इसके अलावा गांधी जी के विचारों को प्रसारित-प्रचारित करने वाले सर्वोदय इंटरनेशनल की वह ट्रस्टी भी रहीं। आजीवन सोशल अवेयरनेस प्रोग्रामों में भी गहरी अभिरुचि और सक्रिय भागेदारी रही। उनके नेतृत्व में समय-समय पर विभिन्न मंचों से प्रायः गंभीर सोशल इश्यू उठाए जाते रहे। सामाजिक रूढ़ियों की वह मुखर विरोधी रहीं। मृणालिनी साराभाई की जड़ें केरल से जुड़ी थीं। उन्होंने अपनी गुरु मीनाक्षी सुंदरम पिल्लै से कम उम्र में भारतनाट्यम का प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू कर दिया था। बाद में उन्होंने कथकली सीखा। चेन्नई में शुरुआती शिक्षा के बाद वह फ्रांस भी पढ़ने गई थीं। स्वतंत्रता आंदोलन जब चरम पर था, उसी वक्त उनकी मुलाकात अहमदाबाद में के उद्योगपति, प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले विक्रम साराभाई से हुई। उस जमाने में दोनों दाम्पत्य सूत्र में बंधे, 1940 और 50 के दशक में मृणालिनी की प्रतिभा को अवसर मिलने में विक्रम साराभाई का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा क्योंकि उस समय महिलाओं को बहुत अधिक आजादी नहीं थी।

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