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ऑर्गैनिक खेती से अपनी तकदीर बदल रहीं अलग-अलग राज्य की ये महिलाएं

महिला किसान भी किसी से कम नहीं, नई तरह की खेती से पैदा कर रहीं अन्न...

ऑर्गैनिक खेती से अपनी तकदीर बदल रहीं अलग-अलग राज्य की ये महिलाएं

Wednesday May 09, 2018 , 6 min Read

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड आदि में सुनीता लांबा, सरिता बार्बर, लिपिका कोचर, मीना देवी, पूर्वी विमला चौधरी जैसी मेहनती महिलाओं ने आधुनिक पद्धति से खेती-किसानी कर दिखा दिया है कि वह भी किसी से कम नहीं। इनमें ज्यादातर महिलाएं ऑर्गेनिक तरीके से फल-फूल, सब्जियां, अनाज पैदा कर रही हैं।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


 उत्तराखंड में तो देहरादून जिले के धनपौ की महिलाएं अपने गांव को जैविक गांव की पहचान दिलाने के साथ ही ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने में जुटी हैं। जैविक गांव की पहचान मिलने के बाद अब दिल्ली, महाराष्ट्र सहित कई प्रदेशों से पर्यटक जैविक उत्पाद के लिए यहां पहुंच रहे हैं।

ऑर्गेनिक खेती में अब हरियाणा और उत्तराखंड की महिलाएं बढ़-चढ़कर मेहनत-मशक्कत करने लगी हैं, वह हरियाणा की सुनीता लांबा हों या बिहार की सरिता बार्बर। शायद इन्हीं स्थितियों से उत्साहित होकर उत्तराखंड सरकार अपने राज्य में आर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने, उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए शीघ्र ही आर्गेनिक एक्ट लागू करने जा रही है। एक्ट का प्रारूप तैयार हो गया है। जल्द ही इसे कैबिनेट से मंजूरी ली जा रही है। एक्ट लागू हो जाने के बाद किसानों के जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। सरकार का मानना है कि प्रमाणीकरण से राज्य के आर्गेनिक उत्पाद को ब्रांड के रूप में पहचान दिलाई जा सकेगी। एक्ट में जैविक उत्पादों की मार्केटिंग का विशेष प्रावधान किया गया है। एक्ट लागू जाने के बाद किसानों से जैविक उत्पाद खरीदने वाली कंपनियों, व्यापारियों अथवा एनजीओ को उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद में पंजीकरण करना अनिवार्य हो जाएगा।

उत्तराखंड में हर्षिल का राजमा, पुरोला का लाल चावल, देहरादून का बासमती, ज्योलीकोट का शहद आदि बड़े और फेमस व्यावसायिक कृषि उत्पाद बन चुके हैं। संभव है निकट भविष्य में अन्य राज्य सरकारें भी उत्तराखंड सरकार का अनुसरण करना चाहें। मुंगेर (बिहार) के रहने वाले आनंदमार्ग के संस्थापक प्रभात रंजन सरकार (आनंदमूर्ति) की शिष्या सरिता बार्बर जैविक खेती को बढ़ावा देने की मुहिम चला रही हैं। वर्तमान में वह जर्मनी में रह कर जैविक खेती को बढ़ावा दे रही हैं। उन्होंने 1997 में जर्मनी मूल के फ्रैंक बार्बर से शादी रचा ली थी। इस समय दोनों जर्मनी के ड्रेसडेन में जैविक अनाज, फल-फूल, सब्जियों की खेती कर रहे हैं।

इसी तरह सिरसा (हरियाणा) के गांव अरनियांवाली की महिला किसान सुनीता लांबा बारह एकड़ में ऑर्गेनिक किन्नू की बागवानी कर रही हैं। इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। सुनीता बताती हैं कि उनके पति कृष्ण लांबा सरकारी नौकरी करते हैं। पहले वह पति के साथ ही शहर में रहती थीं लेकिन बाद में अपने गांव लौटकर उन्होंने शुरुआत में अपने 10 एकड़ खेत में ऑर्गेनिक किन्नू का बाग लगाया और अपने पति की सैलरी से दोगनी ज्यादा कमाई करने लगीं। जैविक खेती को बढ़ाना देने के लिए उन्होंने अपने दो कनाल खेत में केंचुआ खाद का प्लांट लगा दिया। वहीं से घोल के रूप में खाद का इस्तेमाल होने लगा। इसके बाद पूरे बाग की सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम भी लगा लिया। सुनीता की मेहनत-मशक्कत और कुशलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह अपने खेतों में ट्रैक्टर स्वयं चला लेती हैं। पिछले साल दिसबंर में उनको चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में प्रगतिशील किसान के रूप में सम्मानित किया गया था।

पंजाब के जालंधर शहर की कई एक संभ्रांत महिलाओं ने तो जैविक खेती को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है। ये महिलाएं अपने घरों की छतों पर गमलों, लकड़ी की पेटियों, लोहे के ड्रमों में मिट्टी भरकर जैविक फल और सब्जियां उगा रही हैं। इनमें वह किसी भी तरह के कीटनाशक से परहेज करती हुईं सिर्फ गोबर की खाद का इस्तेमाल करती हैं। सबसे पहले यहां के मॉडल टाउन इलाके में रहने वाली समाजसेवी लिपिका कोचर का ध्यान उस समय घरेलू ऑर्गेनिक कृषि की ओर गया, जब डॉक्टरों ने उनके तीन साल के बेटे आदित्य की साइनस प्रॉब्लम खत्म करने के लिए तीन ऑपरेशन होना जरूरी बताया।

इसके बाद वह आयुर्वेदिक चिकित्सक से मिलीं तो उन्हें ऑर्गेनिक फूड ग्रेन से बने भोजन और फल देने की सलाह मिली और उससे बिना ऑपरेशन के बेटा कुछ समय में स्वस्थ हो गया। इसके बाद बंगा नवांशहर निवासी राष्ट्रीय एथलीट बलजीत सिंह की पत्नी भी इसी राम पर चल पड़ीं। एनजीओ ‘खेती विरासत मिशन’ ने इस मुहिम को प्रोत्साहित करने लगा। महिलाओं को टैरेस गार्डन बनाने में तकनीकी मदद मिलने लगी। देखते ही देखते मॉडल टाउन क्षेत्र की ज्यादातर महिलाएं इस मुहिम का हिस्सा बनकर नींबू, अनार, चीकू आदि उगाने लगीं।

अब ये महिलाएं एकलव्य स्कूल में संडे मार्केट में खुद अपनी उपज की बिक्री भी करने लगी हैं। उत्तराखंड में तो देहरादून जिले के धनपौ की महिलाएं अपने गांव को जैविक गांव की पहचान दिलाने के साथ ही ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने में जुटी हैं। जैविक गांव की पहचान मिलने के बाद अब दिल्ली, महाराष्ट्र सहित कई प्रदेशों से पर्यटक जैविक उत्पाद के लिए यहां पहुंच रहे हैं। इस समय गांव के लगभग 45 परिवार 30 हेक्टेयर से अधिक खेतों में गेहूं, मक्कास आलू, अरबी आदि की जैविक खेती कर रहे हैं। सबसे गौरतलब ये है कि गांव में ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत दुर्गा महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्षा मीना देवी ने कराई थी।

वह बताती हैं कि सन् 2002 में उन्होंने समूह का गठन कर जैविक खेती की शुरुआत कराई थी। सहायता समूह की इन महिलाओं ने गांव में जन मिलन केंद्र में पर्यटकों के ठहरने की उचित व्यवस्थाएं भी कर रखी हैं। उनके माध्यम से विदेशों के पर्यटक यहां जैविक खेती का जायजा लेने पहुंचते रहते हैं। अहमदाबाद (गुजरात) की पूर्वी व्यास वैसे तो पेशे से फ्रीलांस कंसलटेंट हैं लेकिन अचानक एक दिन जब वह मां के साथ अपने फार्म हाउस पर पहुंचीं तो उसके बाद से उनकी जिंदगी की राह ही बदल गई। उस फॉर्महाउस पर उनकी मां वर्षों से खेती किसानी करती आ रही थीं, जबकि वह भी पेशे से वो बैंकर थीं। पूर्वी व्यास उसी समय से ऑर्गेनिक खेती में जुट गईं। इस दौरान उन्हें शुरूआत में ऑर्गेनिक खेती के बारे में काफी कम जानकारी थी। इसके लिए उन्हें किताबों से सहारा लेना पड़ा।

इस समय वह अहमदाबाद से लगभग पैंतालीस किलोमीटर दूर खेड़ा जिले के मासर गांव में ऑर्गेनिक खेती कर रही हैं। क्षेत्र के किसानों को उनके ऑर्गेनिक उत्पादों का सही मूल्य मिले, इसके लिए पूर्वी उनको सीधे शहरी उपभोक्ताओं से जोड़ रही हैं। ऐसी ही एक जुनूनी महिला हैं जोधपुर (राजस्थान) की प्रगतिशील किसान विमला चौधरी, जिन्होंने आम कृषि पद्धति से हटकर खेती में कुछ नया कर दिखाया है। अब वह इजरायल की कृषि तकनीक को अपने यहां लागू कर रही हैं। इजरायल की कृषि तकनीक अपना कर विमला खेतों में बिना वॉल्व ड्रिप पद्धति व कंप्यूटराज्इड खेती पर काम कर रही हैं। इजरायल की उन्नत कृषि तकनीकों को जानने के लिए राज्य सरकार की ओर से विमला सहित एक प्रतिनिधिमंडल इजरायल का दौरा भी कर चुका है। इस समय वह अपने पंद्रह बीघे खेत में गूंदे, बेर, आंवला आदि की खेती कर अच्छी खासी कमाई कर रही हैं।

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