कलियुग के राम-लक्ष्मण का कमाल, हैकर को ढूंढकर करते हैं बवाल
सही हैकर की पहचान के लिए अप्लीकेशन एप वायरलिटीफिलहाल ऐप वायरलिटी सिर्फ एंड्रॉयड पर आधारित
मुझे नहीं मालूम कि आपमें से कितने लोग उस तस्वीर से रू-ब-रू हुए होंगे जिसमें एक शख्स के कंधे पर शैंपू की वजह से संक्रमण हो गया था। ये काफी घिनौना था, पर शुक्र है कि वो फर्जी पोस्ट निकला था। इस फर्जी पोस्ट ने काफी चर्चा बटोरी थी, जहां कई लोग तो अपने- अपने तरीके से उपाय भी बताने लगे थे। हैरानी की बात तो ये है कि इस तरह के फर्जी पोस्ट भी इतने मशहूर हो जाते हैं।
इस तरह एक पोस्ट के वायरल होने के विज्ञान को वायरल हो चुके कुछ पोस्ट का अध्ययन कर आसानी से समझा जा सकता है, लेकिन यहां सवाल ये है कि आखिर कैसे किसी को कोई वायरल पोस्ट या ऐप मिलता है?
पौराणिक ग्रंथ रामायण में भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण तो इसमें पारंगत थे। अब ऐप वायरलिटी के संस्थापक नए युग के राम और लक्ष्मण ने भी इसमें पारंगत होने की तैयारी कर ली है।
ऐप वायरलिटी के सह-संस्थापक लक्ष्मण पापिनेणी का कहना है, ‘हम लोग भाई हैं, ब्लॉगर हैं और हम हमेशा कुछ नया करने में लगे रहते हैं। हम लोग 2008 से साथ काम कर रहे हैं और ये हमारी साथ-साथ में चौथी पहल है। अपनी इस नई पहल से पहले, हम दोनों ऑरेकल, इन्फोसिस और विप्रो में काम कर चुके हैं”। रामाकोतेश्वर राव पापिनेणी उनके भाई के साथ-साथ ऐप वायरलिटी के सह-संस्थापक भी हैं।
इससे पहले ये दोनों ब्लॉगिंग नेटवर्क ‘Makeideaz’ और ऑनलाइन किराने की दुकान ‘MomGrocery.com’ की शुरूआत कर चुके हैं। दोनों को ऐप वायरलिटी का आइडिया अपनी तीसरी पहल Giveaway.ly पर काम करने के दौरान आया। Giveaway.ly पर ऐसी सर्विस दी जाती है जिसकी मदद से कारोबारी बिना किसी कोडिंग के लोगों को लॉटरी खेलने का मौका दे सकता है। लक्ष्मण ने बताया कि Giveaway.ly पर काम करने के दौरान लोगों के इस तरह के रिक्वेस्ट आने लगे कि क्या उन्हें इसी तरह की सर्विस मोबाइल ऐप या थर्ड पार्टी ऐप पर मिल सकती है। जांच करने पर उन्हें पता चला कि कई ऐसी कंपनियां हैं जो संगठित रूप से विकसित होने के लिए अलग-अलग तरह की तकनीकी लागू करती हैं। कई स्थापित कंपनियों में तो ग्रोथ हैकर के नाम से एक अलग से विभाग है जिसका काम पहचान कर ग्रोथ हैक को लागू करना है। लक्ष्मण के मुताबिक, ‘यहां ये बात भी सही है कि हर कोई एक ग्रोथ हैकर का भार उठा नहीं सकता है। तभी हमने ये तय कि हम एक ऐसा टूलकिट बनाएंगे जो ऐप बनाने वालों को सही ग्रोथ हैक की पहचान करने और उन्हें लागू करने में मददगार साबित होगा और वो भी बिना किसी कोडिंग के‘।
लक्ष्मण ने कहा, ‘ऐप विकसित करने वाले अपने ऐप में वायरल फीचर्स चाहते हैं, लेकिन सही वायरल टेक्निक की पहचान करने और उसे बनाने में काफी वक्त के साथ-साथ पैसा भी लगता है। ऐप वायरलिटी से हम इसी समस्या का हल मुहैया कराना चाहते है।’ ऐप वायरलिटी में A/B टेस्टिंग के इस्तेमाल (एक तरह की सांख्यिकी अवधारणा की टेस्टिंग) और गहन विश्लेषण के साथ कारोबारियों को भूगोल, यूजर सेगमेंटेशन टार्गेटिंग इत्यादि को लेकर सटीक जानकारी दी जाती है, जिससे ये पता लगाई जा सके कि कब और क्या ठीक से काम करेगा।
हैदराबाद की पांच सदस्यों वाली इस टीम की कोशिशों से जहां ऐप के डाउनलोड की संख्या बढ़ी है, वहीं इसके ग्राहकों को बनाए रखने और उन्हें जोड़े रखने में भी मदद मिली है।
फिलहाल ऐप वायरलिटी सिर्फ एंड्रॉयड पर आधारित ऐप है। अब तक वे 250 बीटा से ज्यादा साइनअप्स बनाने में कामयाब रहे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने एक प्राइवेट बीटा का भी एलान किया है जो 10 से ज्यादा एप्प पर मौजूद है। भविष्य में वैश्विक बाजार को टारगेट करने के लिए दोनों ने एसडीके (सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट किट) को वितरित करने के लिए चैनल पार्टनर बनाने की योजना बनाई है। लक्ष्मण ने बताया कि आज के समय में किसी ऐप में वायरल फीचर का शामिल होना बेहद जरूरी हो गया है। उबर, ड्रॉपबॉक्स और इस जैसी कई दूसरी कंपनियों ने शुरुआत में 60 फीसदी से ज्यादा विकास इसी वायरल फीचर के दम पर हासिल की है। बकौल लक्ष्मण, ‘मुझे लगता है कि ऐप वायरलिटी में दूसरों से जो अलग बात है, वो ये कि इसमें मल्टीपल ग्रोथ टेक्निक है, सही हैक की पहचान करने में मदद के लिए इसमें एक इंजन लगा है और सबसे खास ये कि इसमें किसी कोडिंग की जररूत नहीं है’।
ऐप वायरलिटी की शुरुआत करने वाले ने अभी हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट एसीलेरेटर प्रोग्राम से ग्रेजुएट किया है और अब वो इसके जरिए कुछ धन भी जुटाने की सोच रहे हैं। लक्ष्मण ने बताया कि उनका ये ऐप शुरुआत के दस हजार एमएयू (मंथली एक्टिव यूजर्स) को मुफ्त में मिलेगा और उसके बाद यूजर्स से मामूली शुल्क वसूली जाएगी । लक्ष्मण ने ये भी बताया कि 2014 में स्टार्टअप एरेना सिंगापुर में प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र भारतीय कंपनी उनकी ही थी।
‘इस तरह के बी2बी सॉल्यूशन का बिक्री चक्र थोड़ा लंबा होता है। ऐसे में ऐप डेवलपर्स को एक थर्ड पार्टी के एसडीके इस्तेमाल करने के लिए तैयार करना काफी चुनौती भरा है। हालांकि, इस मामले में हम भाग्यशाली हैं कि शुरुआत में ही हमें कुछ बड़ी कंपनियों का साथ मिल गया, जिससे हमें शुरू में कुछ हद तक मान्यता मिलने में मदद मिली।‘
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