एक पैर से जिम करने वाली लड़की और चालीस फ्रैक्चर वाले स्पर्श
दिव्यांगता को भले ही लोग अभिशाप समझते हों, लेकिन मन में जुनून लेकर चलने वालों की राह में कभी ये आड़े नहीं आ सकती। एक पैर से जिम में फर्राटे भरती लड़की, अपनी सुरीली तान से छत्तीसगढ़ की कलेक्टर का दिल जीत लेने वाली दिव्यांग रागिनी, शरीर में एक सौ पैंतीस फ्रैक्चर होने के बावजूद छह देशों में नाम कमा चुके पंद्रह साल के आइरन मैन स्पर्श दिव्यांगों के लिए मिसाल हैं।
आज हमारे देश में विकलांगता से जूझ रहे करोड़ों लोगों के लिए जो न्यूनतम आवश्यक सुविधाएं सार्वजानिक जगहों पर होनी चाहिए, उसका अभाव लगभग सभी शहरों में है।
हमारे देश में ढाई करोड़ से भी अधिक लोग दिव्यांग (विकलांग) हैं। मानसिक मजबूती से इस पर किस तरह विजय पाई जा सकती है, यही पाठ पढ़ाती है आजकल सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक ऐसी लड़की, जिसके एक पैर नहीं है, लेकिन वह आम लोगों की तरह जिम में फर्राटे भरती है। वेट लिफ्टिंग भी उसके लिए कोई कठिन काम नहीं। वह लड़की जिम में कई किलो वजन उठा लेती है। खुद को थोड़ा संभालते हुए पहले वह बड़े-बड़े डंबल उठाती है और बाद में वेट लिफ्टिंग शुरू कर देती है। इसे उनतालीस मिनट के एक वीडियो पर देखा जा सकता है।
ऐसी ही एक दिव्यांग बच्ची है बालोद (छत्तीसगढ़) की रागिनी। पिछले दिनो वह जब शहर के टाउनहॉल में मंच पर गीत गा रही थी, सुनकर कलेक्टर किरण कौशल इतनी भावुक हो गईं कि बार-बार उससे गीत सुनने की फरमाइश करने लगीं। रागिनी 10वीं कक्षा पढ़ती है। वह लाखों में से एक को होने वाली आर्थोग्राइपोसिस मल्टीपल कंजनाइटा नाम की गंभीर बीमारी से जूझ रही है। उम्र के हिसाब से उसके शरीर का विकास नहीं हो रहा है। वैसे तो वह सोलह साल की हो चुकी है लेकि देखने में मात्र पांच साल की लगती है। उसके हाथ-पैरों की हड्डियां मुड़ गई हैं। वह गायन में दिल्ली में नेशनल बालश्री अवॉर्ड से सम्मानित भी हो चुकी है। उसके गाने सुनने के बाद कलेक्टर ने समाज कल्याण विभाग को निर्देश दिए हैं कि उसके लिए एक संगीतकार ट्रेनर नियुक्त करे। ट्रेनर का खर्च डीएम स्वयं वहन करेंगी। एक और ऐसे ही पंद्रह वर्षीय दिव्यांग हैं स्पर्श। उनके शरीर में एक सौ पैंतीस फ्रैक्चर हैं, जिनकी कई बार सर्जरी हो चुकी हैं। म्यूजिक कंपोजर स्पर्श भी रागिनी की तरह सुरीले गीत गाते हैं।
गैर सरकारी संस्था ‘स्वयं फाउंडेशन' को ‘एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन' यानी ‘सुगम्य भारत अभियान' के तहत किए गये देश के आठ शहरों में एक सर्वे से पता चला है कि आज हमारे देश में विकलांगता से जूझ रहे करोड़ों लोगों के लिए जो न्यूनतम आवश्यक सुविधाएं सार्वजानिक जगहों पर होनी चाहिए, उसका अभाव लगभग सभी शहरों में है। अस्पताल, शिक्षा संस्थान, पुलिस स्टेशन जैसी जगहों पर भी उनके लिए टॉयलेट या व्हील चेयर नहीं मिलते हैं। आधुनिक होने का दावा करने वाला भारतीय समाज भी अब तक विकलांगों के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है।
अधिकतर लोगों के मन में दिव्यांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है, यह दोनों भाव दिव्यांगों के स्वाभिमान पर चोट करते हैं। शारीरिक रूप से अक्षम के लिए काम करने वाले किशोर गोहिल कहते हैं कि दिव्यांग कह भर देने से इनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आ सकता है। यह केवल छलावा है। शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के लिए अपेक्षित इंतजाम करना जरूरी है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों से लड़ रहे हैं रागिनी और स्पर्श जैसे दिव्यांग, जिनका कौशल मिसाल है। गणेश चतुर्थी के त्योहार पर जब बॉलिवुड ऐक्ट्रेस ईशा गुप्ता न्यू जर्सी में थीं, स्पर्श के गाने सुनकर खुशी से रो पड़ीं।
स्पर्श की कहानी और उसके टैलंट को फैन्स के साथ शेयर करने के लिए ईशा ने इस दौरान का एक विडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट किया। इसके साथ उन्होंने लिखा, 'तुम सबकुछ हो, तुम जादू हो स्पर्श।' सूरत (गुजरात) निवासी पंद्रह वर्ष के 'आइरन मैन' स्पर्श इस समय न्यूयॉर्क में रह रहे हैं। वह अब तक आधा दर्जन देशों में सवा सौ लाइव प्रोग्राम भी दे चुके हैं। इसके साथ ही वह सात गायन प्रतियोगिताएं जीत चुके हैं। इतना ही नहीं, वह यूनाइटेड नेशंस, गूगल, टेडएक्स गेटवे, गोवा फेस्ट, एनबीए के बड़े इवेंट में शो भी प्रस्तुत कर चुके हैं।
उनको ग्लोबल इंडियन अवॉर्ड, चैंपियन ऑफ होप, स्पेशल अचीवर्स अवॉर्ड, इंस्पिरेशन अवॉर्ड ऑफ एक्सिलेंस, मोस्ट इंस्पायरिंग इंडीविजुअल अवॉर्ड आदि से सम्मानित किया जा चुका है। न्यूयॉर्क में एक फाइनैंशल कंपनी के डाइरेक्टर स्पर्श के पिता हिरेन शाह बताते हैं कि जन्म के समय उनके शरीर में चालीस फ्रैक्चर थे। वह बचपन से ही कुशाग्र थे। तीन साल की उम्र में ही उसकी उंगलियां वाद्ययंत्रों पर तैरने लगीं। इससे और फ्रैक्चर हो गए। इसके बाद वह गाने लगा। वही से शुरू हो गया उनके प्रोग्राम में गीत-संगीत सुनाने का दौर। स्पर्श को स्टेज शो से जो कमाई होती है, उसे वह दान कर देते हैं। स्पर्श गाते-बजाते ही नहीं, खुद कविताएं भी लिख लेते हैं। अब तक वह दो दर्जन से अधिक गीत लिख चुके हैं। संगीत में स्पर्श को अपनी मां जिगिशा से प्रशिक्षण मिलता है। वह भी अमेरिका में बड़े पद पर नौकरी करती हैं।
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