मां की मदद करने के लिए बनाया रोटी मेकर, एक घंटे में बन जाती हैं 180 रोटियां
कर्नाटक के रहने वाले 41 साल के बोमई के भीतर हमेशा से कुछ नया खोजने की इच्छा रहती थी। वे अपनी मां को रोटी बनाते वक्त मुश्किल झेलते देखते थे। उनकी मां रोटी बनाते वक्त आटे को फैलने से रोकने के लिए अखबार का इस्तेमाल करती थीं, इसे देखकर बोमई ने सोचा कि कोई जुगाड़ खोजा जाए जिससे मां को रोटी बनाने में कम मेहनत करनी पड़े। कुछ ही दिनों के भीतर उन्होंने एक मशीन बना ही ली...
बोमई अक्सर इस बारे में सोचते रहते थे कि ऐसा कुछ किया जाए जिससे गांव में रहने वाले लोगों और मजदूरों काम आसान हो सके। लेकिन उनकी शिक्षा-दीक्षा का सही इंतजाम नहीं हो पाया।
बोमई चाहते हैं कि इसे बड़े स्तर पर डेवलप किया जाए, लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से वे मजबूर हैं। वे कहते हैं कि मेक इन इंडिया अभियान के तहत रोटी मेकर को अच्छे से डेवलप करना चाहता हूं जिससे की ग्रामीण आबादी को लाभ पहुंच सके।
कर्नाटक के रहने वाले 41 साल के बोमई के भीतर हमेशा से कुछ नया खोजने की इच्छा रहती थी। उन्होंने कभी साइकिल बनाने की दुकान से अपना सफर शुरू किया था और आज उनके पास लाइसेंस वाली वर्कशॉप है। बोमई अक्सर इस बारे में सोचते रहते थे कि ऐसा कुछ किया जाए जिससे गांव में रहने वाले लोगों और मजदूरों काम आसान हो सके। लेकिन उनकी शिक्षा-दीक्षा का सही इंतजाम नहीं हो पाया। वे कहते हैं, 'घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मैं पढ़ नहीं पाया, लेकिन मेरे अंदर हमेशा से कुछ नया करने की तमन्ना रहती थी।' उन्होंने अपनी मां और गांव की कई अन्य महिलाओं को घरों में रोटी बनाते हुए मुश्किल का सामना करते देखा था। इसीलिए रोटीमेकर बनाने के लिए उन्होंने काम किया।
बड़े परिवार होने की वजह से गांव की औरतों को काफी ज्यादा रोटियां बनानी पड़ती हैं। बोमई को रोटी काफी पसंद है। वे अपनी मां को रोटी बनाते वक्त मुश्किल झेलते देखते थे। उनकी मां रोटी बनाते वक्त आटे को फैलने से रोकने के लिए अखबार का इस्तेमाल करती थीं, इसे देखकर बोमई ने सोचा कि कोई जुगाड़ खोजा जाए जिससे मां को रोटी बनाने में कम मेहनत करनी पड़े। कुछ ही दिनों के भीतर उन्होंने एक मशीन बना ही ली। इसके बारे में बताते हुए वे कहते हैं, 'इस मशीन में आपको सिर्फ चपाती को रखकर उपर लगी पिन को घुमाना होता है। इससे काफी आसानी से रोटी तैयार हो जाती है।'
बोमई की रोटी बनाने वाली मशीन बिजली से तो चलती ही है साथ ही इसे सोलर पावर के जरिए भी चलाया जा सकता है। इसे बनाने में उन्हें लगभग 15 हजार की लागत आई। मशीन का वजन सिर्फ 6 किलो है और इसे चलाना काफी आसानन भी है। देखने में यह किसी इंडकशन स्टोव के जैसे लगती है। इससे एक घंटे में बड़े आराम से 180 रोटियां बनाई जा सकती हैं। जब उनसे पूछा गया कि इससे उनकी मां का काम तो आसान हो गया होगा, तो उन्होंने कहा कि इससे मां काफी खुश हैं। अब वे रोटी बनाने के लिए कभी मना नहीं करती हैं। इससे उनका समय भी बच जाता है।
बोमई चाहते हैं कि इसे बड़े स्तर पर डेवलप किया जाए, लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से वे मजबूर हैं। वे कहते हैं कि मेक इन इंडिया अभियान के तहत रोटी मेकर को अच्छे से डेवलप करना चाहता हूं जिससे की ग्रामीण आबादी को लाभ पहुंच सके। लेकिन उसके लिए उन्हें पैसों की जरूरत है। बोमई ने रोटीमेकर के अलावा और भी कई चीजें बनाई हैं जिससे घर का काम आसान हो जाता है। उन्होंने इससे पहले एक ऐसा कोयले का स्टोव बनाया था जिसमें कोयले की जरूरत 80 प्रतिशत कम हो जाती है। इससे प्रदूषण भी कम होता है।
वे कहते हैं, 'पानी गरम करने के लिए मेरी मां काफी संघर्ष करते हुए पुराने स्टाइल के स्टोव का इस्तेमाल करती थी। उससे घर में धुआं भी खूब होता था। इससे बचने के लिए मैंने पर्यावरण के अनुकूल स्टोव बनाया जिसमें पहले के मुकाबले सिर्फ 20 प्रतिशत धुआं निकलता है। इसमें एक एयर फिलटर भी लगा है।' बोमई को कोयले वाला स्टोव बनाने में सिर्फ 2,600 की लागत आई। और उसे गांव वालों ने इतना पसंद किया कि वे अब तक 50 स्टोव बनाकर बेच चुके हैं। हालांकि वे उसमें फैन लगाकर उसे अपडेट करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि मुश्किलें उन्हें नई खोज करने के लिए प्रेरित करती हैं। इसीलिए वे हमेशा गांव वालों की मदद करने के बारे में सोचते रहते हैं।
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