अपराध से रोककर ‘राजू सैनी’ ने बच्चों को पढ़ाया, फ्री कोचिंग दी और 100% बनाया सफल
अपराध का रास्ता बंद करके, दिखाई शिक्षा, रोजगार की राह...
गरीब बस्तियों के हजारों बच्चों को शिक्षित कर दिलाई सरकारी नौकरियां...
इंदौर में सरकारी बगीचे में चल रही है प्रतियोगी परीक्षाओं की 13 साल से फ्री क्लास...
1 हजार से ज्यादा छात्र पहुंचे सरकारी नौकरियों में, 5 हजार से ज्यादा को जोडा शिक्षा से...
कहते हैं मन में काम करने की लगन होनी चाहिए फिर मुश्किलें कितनी भी हों रास्ता मिल ही जाता है। कई बार ये भी कहा जाता है कि संसाधनों की कमी की वजह से कार्य मंजिल तक नहीं पहुंच पाता है, लेकिन इंदौर के राजू सैनी के बारे में जब आप पढ़ेंगे तो आपको यकीन हो जाएगा कि बस मन में दृढ़ इच्छा होनी चाहिए, ज़िंदगी और समय राह खुद बनाने लगती है।
इंदौर के नेहरु पार्क में पिछले 13 साल से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाने के लिये एक खास कोचिंग चल रही है ‘राजू सैनी सर’ की क्लास। जहां छत के नाम पर आसमान है और बैठने के लिए ज़मीन। पढाई के लिए ज़रूरी संसाधनों के नाम पर राजू सैनी सर का ये कोचिंग जीरो है। पर इन तमाम दिक्कतों के बावजूद सफलता की 100 फीसदी गांरटी है। इससे भी बड़ी बात यह है कि जहां सफलता सौ फीसदी है वहां पढ़ने के लिए छात्रों को कोई फीस भी नहीं देना होती। पढ़ाई बिल्कुल फ्री। आज इस कोचिंग में आकर एक हजार छात्र सरकारी नौकरियां पा चुके हैं। इनमें से ज्यादातर छात्र वो हैं जिन्हें अगर राजू सैनी का साथ ना मिला होता तो अपराध की दुनिया में अपनी पैठ जमा चुके होते।
राजू सैनी के जज़्बे की इस कहानी को समझने के लिए आपको लिए चलते हैं हम उनके बचपन में। इंदौर के मालवा मिल इलाके की चार गरीब बस्तियां पंचम की फेल, गोमा की फेल, लाला का बगीचा, कुलकर्णी भट्टा अपराध के लिये पूरे शहर में पहचाना जाता था। रात की बात तो छोडिए, दिन में भी कोई यहां निकलना नहीं चाहता था। पंचम की फेल में रहकर चंद बच्चों के साथ स्कूल की पढाई करने वाले राजू के आसपास दिन रात सिर्फ आपराधिक माहौल ही था। राजू के घर की हालत भी अच्छी नहीं थी। पिता ऑटो रिक्शा चलाते थे। उसी से पूरा घर चलता था। राजू के बाकी दोस्तों ने स्कूल छोड दिया, मगर राजू माहौल से लडते हुए 8वीं क्लास तक पहुंच गए।
राजू ने योरस्टोरी को बताया,
एक वक्त ऐसा आ गया कि मुझे लगा कि आस पडोस से लड़ाई झगडे की आवाजें, पुलिस की दबिश और हंगामें के बीच पढना मुश्किल है तो मैंने स्कूल से सीधे सरकारी बगीचे नेहरु पार्क जाकर पढना शुरु कर दिया। अंधेरा होने तक मैं वहीं पढ़ता और रात को घर आ जाता। ग्रेजुएशन तक नेहरु पार्क में ही अपनी पढाई की और कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी शुरु कर दी।
इसी बीच राजू ने बस्ती के कुछ बच्चों को साथ लाकर नेहरु पार्क में ही पढाना शुरु कर दिया। और अपनी भी सरकारी नौकरी की परिक्षाओं की तैयार जारी रखी। 2002 में राजू ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए फ्री कोचिंग शुरु कर दी। इतना ही नहीं इलाके की बस्तियों में जाकर उन बच्चों को ढूंढा जिन्होंने बीच में पढाई छोड़ दी थी। उनको समझाकर वापस पढाई शुरु करवाई गई। और ग्रेजुएशन कर चुके छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग देना शुरु कर दिया। 2002 की पहले बैच में सिर्फ 5 छात्र आये। बस्ती में राजू सैनी का मजाक भी बनाया गया, कि खुद तो नौकरी में लगी नहीं दूसरों को क्या नौकरी दिलवायेगा। बस्ती में गरीबी के चलते बच्चों को पढाना ही मुश्किल था। ऐसे में उन्हें नौकरी और अच्छी जिंदगी के ख्वाब दिखाना ही राजू के लिए मुश्किल था। मगर 5 छात्रों पर की गई मेहनत रंग लाई। पांच में से चार छात्रों का पहली बार में ही सेलेक्शन हो गया। एक छात्र अजय जारवाल एग्जाम में सिलेक्ट होकर सिकन्दराबाद में रेलवे में गुड्स गार्ड की जॉब में लगा, दूसरा छात्र अखिलेश यादव मध्यप्रदेश पुलिस में, तीसरा हेमराज गुरसनिया आरपीएफ में और चौथा लोकेश जारवाल असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी में लग गया। इन चारों का बस्ती में जमकर हार-फूल से ढोल-नगाडों की थाप पर स्वागत हुआ। ये बात आग की तरह इलाके में फैली। और इसके बाद इलाके के लोगों की सोच में बदलाव आना शुरु हुआ। सबको लगने लगा कि अपराध और मजदूरी की मुफलिसी भरी जिंदगी के अलावा भी बहुत कुछ करने को है। बस फिर क्या था, राजू को अब शिक्षा का अलख जगाने के लिए पहले जितनी मेहनत नहीं करना पडी। 2003 के बैच में 8वीं से लेकर ग्रेजुऐशन कर चुके 40 बच्चे अपना भविष्य संवारने के लिये राजू सर की कोचिंग में आ चुके थे। धीरे-धीरे काफिला बडा होता गया और पिछले 13 साल में राजू सर की कोचिंग से 1 हजार से ज्यादा बच्चे सरकारी नौकरियों में अपना झंडा गाड चुके हैं।
2004 में राजू भी सिलेक्ट होकर रेलवे में स्टेशन मास्टर की नौकरी पा गये। इंदौर के पास देवास में राजू की पोस्टिंग हुई। तब से लेकर आज तक राजू अपनी नौकरी करने के बाद सीधे इंदौर आते हैं तो घर नहीं बल्कि नेहरु पार्क पहुंच जाते हैं, जहां उनके छात्र उनका इंतजार करते हुए मिलते हैं। राजू सैनी का कहना है कि उनके नौकरी में आने के बाद माहौल तेजी से बदला। जो लोग उन पर नौकरी नहीं होने का तंज कसते थे वे भी अपने बच्चों को राजू के पास भेजने लगे। अचानक से बदले माहौल ने इलाके की तस्वीर को काफी हद तक बदल दिया। 1990 तक इस इलाके को अपराध के नाम पर जाना जाता था। जहां हर घर में या तो अपराधी होता था, या फिर मुफलिसी में गुजर-बसर करता परिवार। मगर आज इन बस्तियों में 500 से ज्यादा सरकारी मुलाजिम हैं जो आगे आने वाली पीढी के लिये मिसाल कायम कर रहे हैं। यहां की कई लडकियां अच्छे ओहदे पर सरकारी पदों पर अपनी सेवाऐं दे रही हैं। राजू पिछले 15 साल से 12 जनवरी को युवा दिवस मनाते हैं जिसमें वे घर-घर जाकर शिक्षा के लिये गरीब परिवारों को जागरुक करते हैं। कोचिंग के लिये राजू की मदद करने के लिये उनके ही पुराने छात्र टीचर की भूमिका में आते रहते हैं।
राजू ने योरस्टोरी को बताया,
कई लोग उनसे सवाल करते हैं कि सरकारी नौकरियां बिना रिश्वत के नहीं मिलती मगर मेरा कहना है कि पैसा कहीं नहीं चलता, सिर्फ सही मार्गदर्शन चलता है। सही दिशा में अगर बच्चे को आगे बढाया जायेगा तो वह झंडे गाड़कर की दम लेगा।
आज राजू के पास इंदौर के अलावा आसपास के जिलों से भी गरीब बच्चे पढने आते हैं। कई छात्रों का कहना है कि राजू सर अगर नहीं होते तो वो या तो किसी दुकान पर छोटी मोटी नौकरी कर रहे होते या फिर पुलिस रिकॉर्ड में नाम दर्ज करा चुके होते। 38 साल के राजू ने दूसरों की जिंदगी संवारने के लिए अब तक शादी नहीं की।