पति की खुदकुशी से टूट चुकी राजश्री ने खुदकुशी करने जा रहे 30 लोगों की बचाई जान
अब तक ढाई हजार से ज्यादा परेशान लोगों की काउंसलिंग कर चुकी हैं...पति की मौत के बाद खुद मौत को गले लगाने का सोचने लगी थीं...
"तीन साल पहले पति ने अचानक खुदकुशी कर ली। लगा अब जिंदगी खत्म हो गई। दोनों बच्चों को पालना मुश्किल लगने लगा। तब सोचा कि मैं भी जी कर क्या करुंगी। खुदकुशी करने के ख्याल आने लगे। एक परिचित मुझे काउंसलर के पास लेकर गया। धीरे-धीरे हिम्मत बढी और फिर संकल्प लिया कि अब जिंदगी में खुदकुशी करने वालों को हर हाल में रोकुंगी।"
सिलसिला चल पडा और एक अकेली औरत खुदकुशी करने जा रहे 30 लोगों को मौत के मुंह से खींचकर ले आई।
रात साढे आठ बजे इंदौर के पुलिस कन्ट्रोल रुम का फोन घनघना उठा। ड्यूटी पर तैनात कॉंसटेबल नें फोन उठाया। फोन के दूसरी तरफ से एक लडकी की आवाज आई। उसने कांपती आवाज में कहा कि वो एक कॉम्पलेक्स की सातवीं मंजिल से छलांग लगाने जा रही है। उसने कहा मेरी मौत का जिम्मेदार मेरा बॉयफ्रेन्ड है, जिसनें मुझे धोका दिया है। फोन करने वाली युवती ने कहा कि आप उसके बॉय फ्रेंड का डिटेल नोट कर लीजिये। मेरी मौत के बाद उसे सजा जरुर मिलना चाहिये। कॉन्सटेबल पसीना-पसीना हो गया। उसने तत्काल कॉल करने वाली लडकी को फोन पर रुकने के लिये कहा और राजश्री पाठक को फोन लगाकर जिस नंबर से कॉल आया था, वो नंबर उन्हे दे दिया। कॉन्सेटबल ने लडकी को दिलासा दिया कि वे चंद मिनट रुकें, कोई उनसे बात करना चाहता है। कॉन्सटेबल के फोन रखते ही खुदकुशी करने जा रही लडकी के मोबाईल पर राजश्री का फोन आया। राजश्री ने उस लडकी से प्यार से बात करना शुरु की। धीरे-धीरे वो कौन है, कहां रहती है, अभी कहां है जैसी शुरुआती पूछताछ करने लगी। लडकी भी सबकुछ बताने लगी, मगर अपनी लोकेशन नहीं बता रही थी। बातचीत का सिलसिला चल पडा। राजश्री उस लडकी को ढाढस बंधाते हुऐ जिंदगी का मोल समझाने लगीं। डेढ घंटा बीत गया। राजश्री के फोन का बेलेन्स खत्म हो गया, फोन कट गया। राजश्री ने तत्काल अपने बेटे से कहकर रिचार्ज करवाया। राजश्री ये सोचकर घबरा रहीं थी कि कहीं इस बीच लडकी ने कुछ कर न लिया हो। वापस उस लडकी को फोन लगाया और जैसे ही उसनें उठाया राजश्री की जान में जान आई। फिर बातचीत का सिलसिला चल पडा। लडकी को राजश्री की बातों पर भरोसा हुआ तो उसने अपनी लोकेशन बता दी। राजश्री ने लडकी की लोकेशन पुलिस को मैसेज कर दी। लडकी से बात करते हुऐ ही राजश्री पुलिस को लेकर लोकेशन पर पहुंची तो देखा इमारत की सातवीं मंजिल की मुंडेर पर लडकी बैठी हुई है। उसे पीछे से जाकर पकड़ा और राजश्री उसे अपने साथ लेकर आईं। रात भर समझाया। 15 दिन की काउंसलिंग के बाद राजश्री की मेहनत रंग लाई और वो लडकी अपने दिल से खुदकुशी का ख्याल पूरी तरह निकाल चुकी थी।
इस युवती और उसे बचाने के राजश्री के प्रयासों की कहानी सुर्खियों में बनी रही। मगर राजश्री अपनें अगले मिशन पर जुट चुकीं थीं। राजश्री का मिशन है खुदकुशी करने वालों को बचाकर लाना। जिसके लिये वो न दिन देखती हैं न रात। इस युवती की तरह अब तक जिंदगी से निराश हो चुके 30 लोगों को राजश्री खुदकुशी के मुहानें से खींचकर वापस ले आईं। वे सभी लोग आज खुश हैं और राजश्री का शुक्रिया अदा करते नहीं थकते।
दूसरों को खुदकुशी से रोकने वाली राजश्री की जिंदगी में एक ऐसा लम्हा था जब वो खुद को खत्म करने की सोचने लगी थीं। जिंदगी में सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा छा गया था। डिप्रेशन पूरी तरह हावी हो चुका था। और ये तूफान अचानक से राजश्री की जिंदगी में आ गया था। पहले राजश्री अपनी जिंदगी में बहुत खुश थीं। पति राजेश पाठक की क्रिएटिव मीडिया सोल्यूशन नाम से कम्पनी थी। आमदनी भी अच्छी थी। घर में प्यारे से दो बच्चे। कहें तो सब कुछ अच्छा था जिंदगी में। 24 अप्रैल 2013 को राजेश पाठक अकेले ही अपने फार्म हाउस गये। वहां से अपने एक दोस्त को फोन करके बताया कि वे खुदकुशी करने जा रहे हैं। दोस्त उनसे आगे कुछ पूछता तब तक राजेश ने अपनी लायसेंसी रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली। राजेश की खबर मिलते ही राजश्री सदमे में चली गईं। इस हादसे के सदमें ने राजश्री को बुरी तरह जकड़ लिया। जिंदगी में चारों ओर अंधेरा दिखाई देनें लगा। मन में खुदकुशी करने के विचार हावी होने लगे। एक परिचित ने राजश्री की ये हालत देखी तो उन्हे एक काउंसलर के पास लेकर गये। कई दिन तक काउंसलर अपनी बातों से राजश्री को समझाते रहे। इसका असर भी होनें लगा। अब राजश्री हालात का सामना करनें के लिये अंदर से मजबूत होनें लगीं। और धीरे-धीरे राजश्री ने अपने परिवार को संभाल लिया।
राजश्री ने योर स्टोरी को बताया,
"मेरे पति राजेश पाठक जिंदादिल इंसान थे। हम सब बहुत खुश थे। परिवार में आये क्षणिक तनाव की वजह से डिप्रेशन में चले गये और इतना बड़ा कदम उठा लिया। हमारा पूरा परिवार बिखर गया। 6 महीने तक तो समझ ही नहीं आया कि मैं जिंदा हूं या नहीं। डिप्रेशन पूरी तरह हावी था। मन में भी उल्टे सीधे ख्याल आते थे। मैरे परिचित मुझे काउंसलर के पास ले गये और वहीं से मुझे नई दिशा मिली।"
राजश्री सोचने लगीं कि काउंसलर के पास जाकर उनकी सोच पूरी तरह बदल गई है। काश उनके पति इतना बडा कदम उठाने से पहले अगर किसी काउंसलर से बात कर लेते तो उनका परिवार बिखरता नहीं। इसी पल राजश्री ने ठान लिया कि अब वो खुदकुशी जैसा कदम उठाने वालों को रोकेंगी और यहीं उनकी जिंदगी का ध्येय होगा। राजश्री इंदौर की एक संस्था स्पंदन से जुड गईं जो सुसाइड हेल्पलाइन के जरिये लोगों की काउंसलिंग करके उन्हे बचाने के प्रयास करती है। 1 साल तक इस संस्था से जुडकर राजश्री डिप्रेशन के शिकार लोगों की काउंसलिंग करती रही। इसके बाद राजश्री ने संस्था छोड दी और खुद ही अकेले इस सफर पर निकल पडीं। राजश्री अब तक तीन हजार से ज्यादा लोगों की काउंसिलंग करके उन्हें जिंदगी का मोल समझा चुकी हैं। 30 खुदकुशी करने जा रहे लोगों को वापस मौत के मुंह से खींचकर ला चुकी हैं। आज वे सभी लोग अपनी जिंदगी से खुश हैं। इन खुदकुशी करने जा रहे लोगों में उज्जैन की 16 साल की दंसवी क्लास की छात्रा है जो पढाई का तनाव नहीं झेल पा रही थी तो रायपुर की सिख दम्पत्ति भी है जो आर्थिक तंगी के चलते बच्चों को कहीं छोडकर खुद को खत्म करने जा रहे थे।
राजश्री अपने घर में ही कपडों का व्यवसाय चलाती हैं। और दोनों बच्चों की भी बेहतर परवरिश कर रही हैं। इसी के साथ-साथ ही उनका मिशन चलता रहता है। पुलिस से लेकर समाजसेवी संस्थाओँ के माध्यम से वे जिंदगी से हताश-निराश लोगों को ढूंढकर उनकी मदद करती हैं।
राजश्री कहती हैं,
"आत्महत्या जैसा कदम क्षणिक आवेश के कारण होता है। अगर आत्महत्या करने वाला शख्स दो मिनट रुककर शांत दिमाग से सोच ले तो वो फिर ऐसा कदम कभी नहीं उठायेगा। मेरा मिशन भी यही है कि जिस पर ऐसी सोच हावी हो चुकी है उस सोच को दिमाग से निकालकर जिंदगी की अहमियत समझाना।"