दुनिया भर में क्यों दोगुना हुआ एडल्ट डायपर का कारोबार?
ये कैसी बीमारियां, जो पैदा कर रही हैं नए-नए उद्यम...
ओवर एक्टिव ब्लेडर यानी यूरीनरी इन्कॉन्टीनेंस (यूआई) की बीमारी ने एडल्ट डायपर का एक बड़ा बाजार पैदा कर दिया है। विश्व में 40 करोड़ लोग ओवर एक्टिव ब्लेडर से से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। इस वक्त दुनिया में डायपर बाजार पहले की तुलना में दो गुना, करीब नौ अरब डॉलर का हो चुका है।
बीमारियां नए-नए उद्यम भी पैदा करती रहती हैं। एक ऐसी ही बीमारी से बाजार में एडल्ट डायपर का कारोबार बढ़ने लगा है, जिससे बहुतायत में लोग पीड़ित है। वह बीमारी है ओवर एक्टिव ब्लेडर यानी यूरीनरी इन्कॉन्टीनेंस (यूआई)। यूरिन का अनियंत्रित रिसाव झुंझलाहट से भर देता है। घर में, रास्ते में, ऑफिस में या बाजार में हो, पीड़ित को व्यस्त से व्यस्त वक़्त में भी बार-बार टॉयलेट जाना पड़ता है। इसके लिए अक्सर पीड़ित को शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ती है। पीड़ितों पैड की जरूरत महसूस होने लगती हैं। खासकर उम्रदराज, चलने-फिरने में निशक्त लोगों के लिए तो यह बीमारी किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं होती है।
इसलिए ओवर एक्टिव ब्लेडर कोई असामान्य बीमारी नहीं है। मानसिक प्रताड़ना जैसी यह बीमारी बुजुर्गों में आमतौर से होती है। ज्यादातर को यूरीनरी इन्कॉन्टीनेंस की समस्या होती है। अन्य आयुवर्ग के यूआई पीड़ितों का भी सामाजिक मेल-मिलाप, बाहर घूमना-फिरना रुक जाने से उन्हे डिप्रेशन का मर्ज भी मुफ्त में घेर लेता है।
एक सर्वे के मुताबिक, लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में एक बार 60 वर्ष से अधिक उम्र की 3000 महिलाओं में से लगभग 21.8 प्रतिशत यानी 656 को ओवर एक्टिव ब्लेडर से पीड़ित पाया गया। ग्लोबल फोरम ऑन इंकॉन्टीनेंस के मुताबिक, 12 प्रतिशत महिलाएं और 5 फीसदी पुरुष इस बीमारी के शिकार हैं।
अब बच्चों से बड़ा वयस्क डायपर बाजार होने जा रहा है। जापान में तो आज से छह साल पहले ही एडल्ट डायपर बाजार, चाइल्ड डायपर मार्केट को पीछे छोड़ चुका है। इस वक्त दुनिया में डायपर बाजार पहले की तुलना में दो गुना, करीब नौ अरब डॉलर का हो चुका है। बच्चों के डायपर के साथ ही बाजार में एडल्ट डायपर की भी डिमांड तेजी से बढ़ रही है। इसके प्रॉडक्शन पर पूरी दुनिया के डायपर उद्यमियों की नजर है। एक सर्वे के मुताबिक, इस समय विश्व में 40 करोड़ लोग ओवर एक्टिव ब्लेडर से से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित हैं। इससे पिछले साल की तुलना में वर्ष 2019 में एडल्ट डायपर के बाजार में करीब नौ फीसदी का इजाफा हो गया है। पीड़ित 40 करोड़ में से पचास फीसदी एडल्ट डायपर का इस्तेमाल कर रहे हैं।
उम्रदराज अधिकतर लोग बाजार में जाकर डायपर खरीदने में झिझकते हैं, इसलिए कंपनियां इसकी आपूर्ति के नए-नए तरीके तो अपना ही रही हैं, विज्ञापन के माध्यम से भी इस मुद्दे पर बहस तेज कर रही हैं। एडल्ट डायपर निर्माता कंपनी यूनीचार्म कॉर्पोरेशन लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही है कि वयस्कों की तरह युवा भी यूरीनरी इन्कॉन्टीनेंस के शिकार हो सकते हैं। गत वर्ष इस कंपनी के एडल्ट डायपर की बिक्री में आठ फिसदी का इजाफा हुआ है। इसी तरह अमेरिका की किम्बरले क्लार्क कंपनी ने भी पिछले साल से एडल्ट डायपर बाजार में उतार दिए हैं।
स्वीडन की एक कंपनी तो महिलाओं के लिए डिस्पोजेबल अंडरवेयर लोकप्रिय बनाने में जुटी है। इस हकीकत का एक खतरनाक पहलू ये भी है कि सैनिटरी पैड, बच्चों के नैपी और एडल्ट डायपर पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक साबित हो रहे हैं। डायपर में खास अवशोषक पॉलिमर (एसएपी) होते हैं, जो बड़ी मात्रा में तरल अवशोषित कर सकते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास के रसायन विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने इस समस्या के समाधान के लिए काइटोसैन, सीट्रिक एसिड और यूरिया को मिलाकर सुपर एब्जोर्बेंट पॉलिमर विकसित किया है, जो जैविक रूप से अपघटित हो सकता है। काइटोसैन समुद्री खाद्य पदार्थों से प्राप्त किया गया एक प्रकार का शर्करा है। इस पॉलिमर को बनाने के लिए काइटोसैन, साइट्रिक एसिड और यूरिया को 1:2:2 के अनुपात में मिलाया गया है। इस सुपर एब्जोर्बेंट में तरल पदार्थ को सोखने की क्षमता काफी अधिक है।
प्रत्येक एक ग्राम पॉलिमर 1250 ग्राम तक पानी सोख सकता है। नये पॉलिमर की पानी सोखने की क्षमता की तुलना बाजार में बिकने वाले बेबी डायपर से करने पर इसे काफी प्रभावी पाया गया है। इस मिश्रण को अत्यधिक चिपचिपे और छिद्रयुक्त क्रॉसलिंक्ड जैल के रूप में परिवर्तित करने के लिए एक बंद कंटेनर में 100 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म किया गया है।