सराहनीय! बेटी ने दहेज में मांगीं अपने वजन जितनी किताबें, पिता ने 6 महीने में इकठ्ठा कर दे दीं
अपने आसपास में किसी लड़की की शादी में दहेज के तौर पर गहने, गाड़ी, गिफ्ट, नगद पैसे देते तो आपने भी बहुत देखा होगा लेकिन राजकोट जिले (गुजरात) के नानमवा गांव में कुछ ऐसा हुआ कि जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा है। गुजरात के रहने वाले हरदेव सिंह जडेजा ने अपनी बेटी को शादी में रुपये-पैसों के बदले किताबें देकर विदा किया। किताबें भी 10-20 नहीं बल्कि बेटी के वजन के जितनी, यानी कि पूरी 2200 किताबों के साथ अपनी बेटी को विदा किया।
उनकी यह पहल एक मिसाल के तौर पर देखी जा रही है। पेशे से शिक्षक हरदेव सिंह जडेजा की बेटी किन्नरी बा को बचपन से ही पढ़ने का काफी शौक था। उनके घर में भी 500 किताबों की एक लाइब्रेरी बनी हुई है। जब किन्नरी की सगाई तय हुई तो पिता ने बेटी से उसकी इच्छा पूछी। बेटी ने पिता से एक दिन का समय मांगा। एक दिन बात जब बेटी पिता के सामने आई तो पिता हैरान हो गए। बेटी ने पिता को एक लिस्ट पकड़ाते हुए कहा कि उसे दहेज में रुपये-पैसे नहीं बल्कि ये किताबें चाहिए। वह दहेज में रुपये-पैसों और उपहारों के बदले किताबें ले जाना पसंद करेगी।
इसी बात पर पिता ने उसकी इच्छा पूरी करने का फैसला किया। किन्नरी बा की शादी 13 फरवरी को वडोदरा में इंजीनियर पूर्वजीत सिंह के साथ हुई है। बेटी की पसंद की किताबें इकठ्ठा करना हरदेव सिंह के लिए आसान काम नहीं रहा।
उन्होंने लगातार 6 महीनों तक कई शहरों के चक्कर लगाकर किताबें इकठ्ठी कीं। इनमें कई भाषाओं की किताबें, कुरान, बाइबिल और वेद-पुराण सहित कई किताबें हैं। किन्नरी बा की की खुशी तब और दोगुनी हो गई जब उसकी शादी में आए मेहमानों ने भी उसे 200 किताबें गिफ्ट कर दीं।
शादी में आए मेहमान इस नई और सकारात्मक पहल को देखकर काफी खुश हुए और पिता हरदेव सिंह के साथ-साथ बेटी किन्नरी की भी तारीफ की।
मालूम हो, हमारे में देश में दहेज को शान-ओ-शौकत से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि शादी में जितना अधिक दहेज मिलता है, लड़का उतना ही काबिल होता है। जबकि सच्चाई में ऐसा बिल्कुल नहीं है। कई खबरें आती हैं जहां दहेज के चक्कर में घर की बहू को जला दिया जाता है या उसे प्रताड़ित किया जाता है।
दहेज हमारे समाज की एक कुप्रथा है और इसे लेना या देना एक कानूनी अपराध है। सरकार ने इसे खत्म करने के लिए कई सख्त कानून बना रखे हैं। इसमें मुख्यत: 'दहेज निषेध अधिनियम-1961' है।