मानवीय कब बनेंगे माननीय
शिव सेना सांसद रवींद्र गायकवाड़ के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर फौरन हिरासत में लेना तो दूर की बात है, यह घटना इस बात को स्पष्ट करती है, कि हमारी पुलिस एक सांसद और आम आदमी में कितना फर्क करती है?
23 मार्च को एयर इंडिया की उड़ान संख्या AI 852 द्वारा पुणे से दिल्ली आये शिव सेना सांसद रवींद्र गायकवाड़ ने दिल्ली हवाई अड्डे पर ड्यूटी मैनेजर आर. सुकुमार के साथ जो कुछ किया, वो निंदनीय था। सासंद ने एयर इंडिया के ड्यूटी मैनेजर आर. सुकुमार को अपशब्द कहे, उनका चश्मा तोड़ दिया, उन्हें बेइज्जत किया और अपने जूतों से मारा, जिससे उन्हें काफी चोटें भी आईं। सांसद का गुस्सा जब इन सबसे भी शांत नहीं हुआ, तो उन्होंने चिल्लाना शुरू कर दिया।
सांसद रवींद्र गायकवाड़ ने तीन साल पहले दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में एक वेटर के मुंह में जबरन रोटी ठूंस दी थी। वह रमजान का महीना था और महाराष्ट्र सदन का वह वेटर रोजे से था।
गौरतलब है, कि शिव सेना सांसद रवींद्र गायकवाड़ के विरुद्ध 18 केस पहले से ही दर्ज़ हैं। 23 मार्च की घटना को लेकर उनके खिलाफ दो शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन पुलिस काफी वक्त तक इसी पर विचार करती रही, कि एफआईआर दर्ज किया जाये या नहीं। एफआईआर दर्ज कर फौरन हिरासत में लेना तो दूर की बात है, यह घटना इस बात को स्पष्ट करती है, कि हमारी पुलिस एक सांसद और आम आदमी में कितना फर्क करती है?
सांसद रवींद्र गायकवाड़ किसी की जूतों से पिटाई करके भी खुद को सही मान रहे हैं। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन घटना को दुर्भाग्यपूर्ण तो मानती हैं, मगर उनका कहना है कि मामले का स्वत: संज्ञान लेकर वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकतीं। यह तो अच्छा हुआ कि क्लोज सर्किट और मोबाइल कैमरों के इस जमाने में घटना का वीडियो सामने आ गया, वरना अभी तक ऐसी किसी घटना के होने से ही इनकार कर दिया गया होता।
इस मारपीट में जब रवींद्र गायकवाड का नाम सामने आया, तो अचानक लोगों को याद आया कि ये वही माननीय हैं, जिन्होंने तीन साल पहले दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में एक वेटर के मुंह में जबरन रोटी ठूंस दी थी। वह रमजान का महीना था और महाराष्ट्र सदन का वह वेटर रोजे से था। जिस तरह उस घटना को देश भूल गया, जल्द ही एअर इंडिया की फ्लाइट में हुई मारपीट को भी देश भूल जायेगा। फिर इस घटना की याद हमें तब आएगी, जब सांसद महोदय अपना कोई नया कारनामा लेकर देश के सामने हाजिर होंगे। पिछले मामले का जिक्र इसलिए भी जरूरी है कि आज की तरह ही तब हमने सांसद महोदय की लानत-मलानत करते हुए कुछ समय तक खबरों के चटखारे लिए और यह जानने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं रही कि उस वेटर को न्याय मिला या नहीं? या सांसद महोदय के खिलाफ कोई कदम उठाया गया या नहीं?
यदि पिछली घटना को अंजाम तक पहुंचा दिया जाता, तो शायद सांसद रवींद्र गायकवाड़ एयर लाइन्स वाली घटना को अंजाम न देते। एक सांसद की ऐसी हरकत से संसद को शर्मसार होना पड़ा है।
माननीयों के अमानवीय आचरण की दास्तानों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है। अभी हाल ही में 3 जनवरी को कर्नाटक के कारवाड़ में भाजपा विधायक अनंत कुमार हेगड़े ने एक अस्पताल के 2 डाक्टरों व अन्य स्टाफ को बुरी तरह पीट डाला। 8 जनवरी को होशंगाबाद में 'नमामि देवी नर्मदे' सेवा यात्रा में शामिल भाजपा सांसद राव उदय प्रताप सिंह ने पुलिसकर्मी से किसी बात पर नाराज होकर उसे थप्पड़ जड़ दिया और कहा, 'मुझे पहचानते नहीं क्या?' 21 जनवरी को असम के नौगांव में एक इंजीनियर जयंत दास ने बीच सड़क में खड़ी भाजपा विधायक डिम्बेश्वर दास की कार वहां से हटा दी, तो विधायक ने उसकी बेइज्जती की व अपने पैरों को हाथ लगवा कर माफी मंगवाई। 5 फरवरी को बंगाल के 'दक्षिण 24 परगना' जिले में तृणमूल कांग्रेस के नेता ने एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला। 7 मार्च को बिहार के सुपौल में वीरपुर थाना क्षेत्र के सीतापुर में भाजपा विधायक ने लोगों से मारपीट की और अपशब्द कहे। 16 मार्च को महाराष्ट्र के ठाणे में एक मंत्री ने विवाद के चलते जूनियर इंजीनियर महेश गुप्ते को मारा। 19 मार्च को दिल्ली पुलिस ने 25 लाख रुपए की लूट के मामले में 'आम आदमी पार्टी' के नेता को गिरफ्तार किया। 23 मार्च को सतारा (महाराष्ट्र) पुलिस ने राकांपा सांसद उदय राजे भोंसले व 9 अन्यों के विरुद्ध एक कम्पनी के अधिकारी से जबरन वसूली करने और मारपीट करने के आरोप में केस दर्ज किया।
कुछ घटनाएं तो ऐसी हैं जिनके पक्ष में किसी प्रकार का तर्क ढूंढा ही नहीं जा सकता। मसलन महाराष्ट्र विधानसभा में मनसे सदस्यों ने सपा सदस्य अबू आजमी द्वारा हिन्दी में शपथ की शुरुआत के बाद जो हमला किया उसमें तो कहीं सरकार की अनसुनी थी ही नहीं। देश के सबसे बड़े सूबे उ.प्र. में तो माननीय तो स्वयं एक विभाजक रेखा बन चुके हैं। उ.प्र. की पूर्व सरकार में एक-दो नहीं 567 से भी अधिक ऐसे मामले हैं, जिसमें सपा सरकार के मंत्री, विधायक सहित अन्य जनप्रतिनिधियों ने अपने-अपने इलाके में जमकर तांडव किया था। इसमें दंगा कराने से लेकर लूट, हत्या, चोरी-डकैती जैसे संगीन मामले तो हैं ही दुराचार की भी दर्जनों वारदाते शामिल हैं। सपा सरकार के मंत्री पंडित सिंह की धारा प्रवाह गालियों ने जहां सरकार की सक्षमता का अहसास कराया, वहीं पत्रकार स्वर्गीय जगेंद्र सिंह की हत्या में राज्यमंत्री राममूर्ती वर्मा के मुख्य आरोपी होने ने सरकार के इकबाल को बुलंद किया। विडम्बना है, कि यूपी की राजधानी लखनऊ से सिर्फ 52 किलोमीटर दूर बाराबंकी के एक टोल प्लाजा पर यूपी सरकार के पूर्व मंत्री द्वारा टोल प्लाजा कर्मचारियों पर किये गये जानलेवा हमले के प्रकरण में मुख्यमंत्री के सीधे हस्तक्षेप के बाद गैर सूबे दिल्ली से पूर्व मंत्री इकबाल को गिरफ्तार कर निजाम की बची-खुची साख को बचाने का प्रयास करता है। यह एक बानगी भर है हमारी व्यवस्था के माननीय लोगों की, जिनके हाथों में देश के वर्तमान और भविष्य की बागडोर है।
जब देश के सासंद ऐसे हैं, तो संसद कैसी होगी? इस तरह की अवांछनीय हरकतें, संसद की मर्यादा को भंग कर रही हैं। शोरगुल और हंगामे की अभ्यस्त हो चली संसद में सरेआम असंसदीय घटनाएं आम भारतीय को लोकतंत्र का वह घिनौना चेहरा दिखाती हैं, जिसकी कल्पना शायद ही कभी किसी ने की हो।
देश के हर मसले पर अपनी सलाह देने वाली शिवसेना अब खुल कर अपने सासंद के पक्ष में आ गई है। अब देखना ये है, कि कुल 18 मामलों में आरोपित सांसद के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है या नहीं? क्षरण की ये धारा आखिर कहां तक जायेगी? क्या इस धारा को रोकने एवं विधायिकाओं की महिमा पुन: प्रतिष्ठित करने की संभावना बची हुई है या स्थिति बिलकुल नियंत्रणविहीन है?
रहजनों में रहबर तलाशने की शर्त पर चल रही संसदीय सियासत से सड़क सवाल कर रही है, क्या माननीय कभी मानवीय बनेंगे !!