'नी रिप्लेसमेंट' से मिल सकता है हर तरह के घुटने के दर्द से छुटकारा
एक हालिया अध्ययन के अनुसार यह बात सामने आई है कि 50 या इससे अधिक उम्र की 63 प्रतिशत महिलाएं घुटनों की समस्या से परेशान हैं। 12 साल तक चले इस अध्ययन में यह सामने आया कि ये महिलाएं किसी न किसी कारण से घुटनों के दर्द से परेशान हैं।
रिसर्च के अनुसार जिनका बीएमआई यानी मोटापा अधिक है, उनमें घुटनों के दर्द की शिकायत ज्यादा रहती है। मुंबई के पी डी हिंदुजा हास्पिटल में सीनियर आर्थोपीडिशियन डॉ. संजय अग्रवाल हमें बता रहे हैं घुटने के प्रत्यारोपण के बारे में।
देश की 63 प्रतिशत महिलाओं को है घुटने की शिकायत। एक हालिया अध्ययन के अनुसार यह बात सामने आई है कि 50 या इससे अधिक उम्र की 63 प्रतिशत महिलाएं घुटनों की समस्या से परेशान हैं। 12 साल तक चले इस अध्ययन में यह सामने आया कि ये महिलाएं किसी न किसी कारण से घुटनों के दर्द से परेशान हैं। इसकी वजह घुटनों में किसी प्रकार की चोट, मोटापा या ऑस्टियो अर्थराइटिस होता है। अध्ययन में शामिल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो। निगेल एर्डन के अनुसार, यह पहला अध्ययन है, जिसमें सिर्फ महिलाओं को शामिल किया गया।
इस अध्ययन में 44 से 57 साल आयु वर्ग की 1000 से ज्यादा महिलाओं को लिया गया। 44 प्रतिशत महिलाओं को कभी-कभार यह दर्द उठता ही है। जबकि 23 प्रतिशत को माह के आखिरी दिनों में यह दर्द होता है। कभी-कभार और ज्यादातर दिनों में घुटनों के दर्द की शिकायत वाले मरीजों में 9 और 2 प्रतिशत का अनुपात है। रिसर्च के अनुसार जिनका बीएमआई यानी मोटापा अधिक है, उनमें घुटनों के दर्द की शिकायत ज्यादा रहती है। मुंबई के पी डी हिंदुजा हास्पिटल में सीनियर आर्थोपीडिशियन डॉ. संजय अग्रवाल हमें बता रहे हैं घुटने के प्रत्यारोपण के बारे में।
क्या है नी-रिप्लेसमेंट
घुटनों में अर्थराइटिस होने से कई बार विकलांगता की स्थिति तक आ जाती है। जैसे-जैसे घुटने जवाब देने लगते हैं, चलना-फिरना, उठना-बैठना, यहां तक कि बिस्तर से उठ पाना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में नी-रिप्लेसमेंट एक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
ऑपरेशन की प्रक्रिया
इसमें जांघ वाली हड्डी, जो घुटने के पास जुड़ती है और घुटने को जोड़ने वाली पैर वाली हड्डी, दोनों के कार्टिलेज काट कर उच्चस्तरीय तकनीक से प्लास्टिक फिट किया जाता है। कुछ समय में ही दोनों हड्डियों की ऊपरी परत एकदम चिकनी हो जाती है और मरीज चलना फिरना शुरू कर देता है। साधारणतया मरीज ऑपरेशन के दो दिन में ही सहारे से चलने लगता है। फिर 20-25 दिन में सीढ़ी भी चढ़ना शुरू कर देता है।
कैसे पता लगाएं
यदि एक्स रे में आप को घुटना या उसके अंदर के भाग अधिक विकारग्रस्त होते दिख रहे हों या आप घुटनों से लाचार महसूस कर रहे हों जैसे बेपनाह दर्द, उठने बैठने में तकलीफ, चलने में दिक्क्त, घुटने में कड़ापन, सूजन, लाल होना तो आप घुटना प्रत्यारोपण के लिए उपयुक्त हैं। हर वर्श पूरे विश्व में लगभग 65,00,00 लोग अपना घुटना बदलवाते हैं। वैसे, घुटना बदलवाने की उम्र 65 से 70 की उम्र उपयुक्त मानी गई है। लेकिन यह व्यक्तिगत तौर पर भिन्न भी हो सकता है।
घुटना प्रत्यारोपण क्या होता है? घुटना प्रत्यारोपण में विकारगग्रस्त कार्टिलेज को निकाल कर वहां पर धातु व प्लास्टिक जैसी चीजों को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। घुटना प्रत्यारोपण के द्वारा तिग्रस्त भाग को या फिर पूरे घुटने को बदलना संभव है। घुटना प्रत्यारोपण दो प्रकार से किया जाता है। आमतौर पर घुटना प्रत्यारोपण निम्र प्रकार के होते हैं।
1- यूनीकंपार्टमेंटल
2- पोस्टीरियर क्रूशिएट लिगामेंट रिटेनिंग
3- पोस्टीरियर क्रूशिएट लिगामेंट सब्स्टीट्यूटिंग
4- रोटेटिंग प्लैटफोर्म
5- स्टेबिलाइज्ड
6- हाइंज
7- टोटल नी रिप्लेसमेंट
टोटल नी रिप्लेसमेंट या फिर यूनीकंपार्टमेंटल नी रिप्लेसमेंट। टोटल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के दौरान पूरे घुटने को बदला जाता है जबकि यूनीकंपार्टमेंटल नी रिप्लेसमेंट के दौरान घुटने के ऊपरी व मध्य भाग बदले जाते हैं। दरअसल, घुटने के प्रत्यारोपण के समय घुटने में एक 4-6 से मी का चीरा लगाया जाता है। फिर विकारग्रस्त भाग को हटाकर उसके स्थान पर ये नए धातु जिन्हें प्रोस्थेसिस के नाम से जाना जाता है, को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस प्रोस्थेसिस को हड्डियों से सटाकर लगाया जाता है। ये प्रोस्थेसिस कोबाल्ट क्रोम, टाइटेनियम और पोलिथिलीन की मदद से निर्मित किए जाते हैं। फिर घुटने की त्वचा को सिलकर बंद कर दिया जाता है।
इस प्रक्रिया के दौरान मरीज को ऐनीस्थिीसिया दिया जाता है। मरीज को अतिरिक्त रक्त चढ़ाने की भी आवश्यकता होती है। ऑपरेश न के बाद मरीज को लगभग 5-7 दिन तक हास्पिटल में रुकना पड़ता है। ऑपरेश न के एक दो दिनों के बाद घुटने पर पानी आदि नहीं पडना चाहिए जब तक कि वह घाव सूख न जाए। सर्जरी के बाद चार से छरू सप्ताह के बाद पीड़ित धीरे-धीरे अपनी नियमित दिनचर्या को अपना सकता है। ऑपरेश न के बाद व्यायाम करने व आयरन से भरपूर भोजन करने से पीड़ित को ठीक होने में मदद मिलती है। आपरेश न के छरू सप्ताह के बाद पीड़ित गाड़ी चलाने में समर्थ हो जाते हैं।
ऑपरेशन के बाद आप को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
• बहुत भारी कसरत, जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ना या फिर भारी वस्तु उठाने से हिचकिचाएं।
• अपने वजन को नियंत्रण में ही रखें।
• घुटनों के बल पर न बैठैं।
• बहुत नीची कुर्सी व जमीन पर बैठने को नजरअंदाज करें।
• कोई भी नया व्यायाम शुरु करने से पहले अपने डाक्टर से सलाह लें। जागिंग ऐरोबिक्स जैसे व्यायाम को करने से बचें।
• पीड़ित के लिए कौन सा प्रत्यारोपण उपयुक्त है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि पीड़ित की उम्र क्या है, उसके घुटने किस स्तर तक खराब हैं व पीड़ित की दिनचर्या में किस प्रकार के कार्य शामिल हैं व उनका स्तर क्या है? वैसे भी डाक्टर पीड़ित से ये सब जानकर ही उपयुक्त सर्जरी सुझाते हैं। ओस्टयोआर्थराइटिस से जूझ रहे लोगों के लिए यूनीकंपार्टमेंटल घुटना प्रत्यारोपण बेहतर माना जाता है।
नी रिप्लेसमेंट में लगने वाला कुल खर्चा
टोटल नी रिप्लेसमेंट का खर्चा इस पर निर्भरकरता है कि रिप्लेसमेंट कहां पर किया जा रहा है? अगर अमेरिका की बात करें तो इसका कुल खर्च 40,000 डालर के आसपास है। भारत में 6,000 डालर, कोस्टा रीका में 11500 डालर व मेक्सिकों में यही खर्च तकरीबन 9,000 डालर तक होता है। इसीलिए ऐसा कहा जा सकता है कि अमेरिका जैसे विकसित देशो में की अपेक्शा भारत जैसे विकासशील देशों में घुटना प्रत्यारोपण कराने का कुल खर्च लगभग 70 प्रतिशत तक कम होता है। पूरे विश्व इतने कम खर्च में ऐसी सेवा नहीं महैया कराई जाती है।
घुटना प्रत्यारोपण के आने से उन लोगों के जीवन में बेहद बदलाव आया है, जो अपने घुटनों को मोड़ने में असमर्थ थे। अब इन लोगों के लिए सभी प्रकार की संभावनाएं जैसे चौकड़ी मारकर बैठना व पूजा करना, गोल्फ खेलना जैसी क्रियाएं करना आसान हो जाता है। घुटना प्रत्यारोपण के क्शेत्र में दिनों दिन हो रहे विकास के चलते अब घुटनों पर अधिक भार भी सहन किया जा सकता है व इससे ज्यादा लोचशीलता आ जाती है। घुटने में गहराई से लचीलापन आने से मरीज को इस बात का आश्वासन हो जाता है कि वह बहुत अच्छे ढंग से लंबे समय तक स्वस्थ रहेगा। इस सुधार की अवधि कम से कम 10 से 15 साल तक आंकी गई है।
यह ठीक है कि अब कृत्रिम जोड़ों का प्रत्यारोपण संभव हो गया है। लेकिन यदि आप प्रौढ़ावस्था में हड्डिड्ढयों के रोगों से बचना चाहते हैं तो अपनी जीवन चर्या में थोड़ा सुधार कर लें। घी, चीनी, चिकनाई कम खाएं, संतुलित आहार लें। खाने में कैल्शियम की मात्रा पर्याप्त रखें, साग-सब्जी अवश्य खाएं और थोड़ा बहुत व्यायाम करें तो सेहत के लिए फायदेमंद होगा।
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