Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

जिन्होंने की पौधों में संवेदना की खोज, क्यों नोबेल जीतने से चूक गए यह महान वैज्ञानिक

जिन्होंने की पौधों में संवेदना की खोज, क्यों नोबेल जीतने से चूक गए यह महान वैज्ञानिक

Wednesday November 23, 2022 , 5 min Read

जे.सी.बोस के नाम से प्रसिद्ध जगदीश चन्द्र बोस (Jagdish Chandra Bose) को आधुनिक भारतीय इतिहास में प्रथम आधुनिक वैज्ञानिक के रूप में याद किया जाता है. उनके साथ ही प्रफुल्ल चन्द रे (1861-1944), जिन्होंने भारतीय कैमिस्टरी स्कूल और एक रसायन उद्योग की स्थापना की, और श्रीनिवास रामानुजम (1887-1920) एक महान् गणितज्ञ के रूप में भारतीय विज्ञान के आधुनिक इतिहास में समान रूप से प्रसिद्ध हैं और वे बोस के समकालीन थे.


जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर, 1858 को ब्रिटिश शासन के पूर्वी बंगाल के मेमनसिंह के ररौली गांव में हुआ था जो अब बांग्लादेश में है. उनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता और ब्रिटिश शासन में डिप्टी मैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर के पद पर रहे थे. अपनी शुरुआती पढ़ाई अपने पिता द्वारा स्थापित गांव के ही एक स्कूल में करने के बाद बोस ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी का अध्ययन किया. फिर वे कैंब्रिज विश्वविद्यालय गए. सन 1884 में वहां से स्नातक की डिग्री लेने के बाद वह भारत लौटे. यहां प्रेजिडेंसी कॉलेज में भौतिकी के अध्यापक पद पर उनकी नियुक्ति हुई. बोस  पहले भारतीय थे जिनकी नियुक्ति प्रैसीडेंसी कॉलेज में भौतिक-विज्ञान प्रोफ़ैसर के रूप में की गई थी. उस समय ब्रिटेन वासियों का विचार था कि शिक्षा सेवा में उच्च पद प्राप्त करने के लिए भारतीय योग्य नहीं हैं और इस प्रकार इम्पीरियल शिक्षा सेवा उनकी पहुँच से बाहर है, चाहे वे कितनी ही अर्हता रखते हों. परिणामस्वरूप भारतीय प्रोफेसर्स को यूरोपीय प्रोफेसरों की तुलना में मात्र दो-तिहाई वेतन दिया जाता था. बोस इस भेदभाव से क्षुब्ध थे. समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धान्त पर अडीग बोस ने साल भर वेतन नहीं लिया. आर्थिक तंगी के कारण कलकत्ता का महंगा मकान छोड़ शहर से दूर जाना पड़ा. पर अपने निश्चय से डिगे नहीं. आखिरकार कॉलेज प्रशासन उनके संकल्प के सामने झुकी और उन्हें अंग्रेजों के बराबर वेतन देना स्वीकार कर लिया गया.स्वाभिमानी बोस प्रायोगिक विज्ञान के प्रथप्रदर्शक थे. उन्होंने भौतिक-विज्ञान और शरीर-विज्ञान दोनों में संवेदी यंत्रों का निर्माण किया.


अपने अध्यापन कार्य के साथ-साथ विज्ञान अनुसंधान कार्य को आगे बढाने में रुचि रखने वाले बोस ने प्रेसिडेंसी कालेज में दिए गए एक छोटे कमरे में ही अपने अनुसंधान कार्य किए थे. कोई प्रयोगशाला, उपकरण या साथी उपलब्ध नहीं होने के बावजूद उन्होंने विद्युत तंरगों की विशेषताओं का अध्ययन यहीं से शुरू किया था.

क्या रेडियो तरंगों की खोज जगदीश चन्द्र बोस ने की थी?

इसमें कोई दो मत नहीं है कि रेडियो तरंगों के संप्रेषण के क्षेत्र में बोस ने अद्वितीय कार्य किया. उनकी इस खोज को स्वयं बोस और तत्कालीन वैज्ञानिकों ने गंभीरतापूर्वक नहीं लिया और इटली के वैज्ञानिक मारकोनी ने इस विषय पर दो वर्ष बाद की गई स्वतंत्र खोज के व्यावसायिक खोज का पेटेंट ले लिया, अर्थात मारकोनी को रेडियो के आविष्कारक के रूप में मान लिया गया. मारकोनी ने बाद में यह कहा कि उन्हें सर बोस के कार्यों की कुछ जानकारी थी जिसे उन्होंने निरंतर अनुसंधान द्वारा परिष्कृत किया. मार्कोनी को इस खोज के लिए 1909 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार भी मिला.


आखिर बोस ने ऐसा क्यों किया?

बोस अपने अविष्कार को पेटेंट बनाने के विरूद्ध थे. उनका मानना था विज्ञान का अनुसरण या प्रयोग व्यक्तिगत लाभ में नहीं बल्कि नहीं मानवता की भलाई में निहित है. इस सोच के कारण वे अपने अविष्कारों से व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाये जाने के पक्षधर थे, लिहाज़ा पेटेंट को अपने नाम पर अनुबंधित न करने का फैसला लिया.

पेड़-पौधों में होती है जान

अपने विद्युत तरंग रिसीवर के विलेक्षण व्यवहार से अभिभूत हो कर जो लम्बे प्रयोग के बाद ‘श्रांति’ के चिह्न दिखाता था लेकिन कुछ आराम के बाद उसे उसकी वास्तविक संवेदनशीलता के लिए पुन: चालू किया जा सकता था, इस घटना के समझने के लिए बोस ने इस प्रक्रिया को योजनाबद्ध अध्ययन करने का निश्चय किया. पहले-पहल उनकी हाय्पोथिसिस यह थी कि धातुओं की भी अपनी ‘भावनाएं’ होती है. धातुओं से उनका ध्यान पौधों की ओर गया और पेड़-पौधों में संवेदनाएं होने की बात कर बोस ने संसार को आश्चर्यचकित कर दिया था. जीवित और अजैव के बीच संबंध के बारे में बोस के सिद्धांतों को उनके जीवन काल में गम्‍भीतरता-पूर्वक नहीं लिया गया और अब भी उनके कुछ विचार गूढ़ बने हुए हैं.


पशुओं और पौधों में जीवन की गतिविधि को सामान्यतः अलग माना जाता था. माना जाता था कि पशु आघात खाने की स्थिति को गति द्वारा प्रकट करते हैं जबकि पौधे आघात खाने की स्थिति को उदासी की प्रवृत्ति से प्रकट करते हैं. बोस का मानना था कि पौधे और पशुओं  में भावावेग सामान होते हैं. इन्होंने इस तथ्य को जटिल यंत्रों की सहायता से दर्शाने का प्रयास किया. बोस ने निष्कर्ष निकाला कि पेड़-पौधे दर्द भी महसूस कर सकते हैं, प्यार का अनुभव भी कर सकते हैं. वह भी मानव तथा अन्य जीवधारियों के समान सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी, प्रकाश, शोर तथा अन्य उत्तेजनाओं का अनुभव करते हैं.


विज्ञान में अभूतपूर्व खोज करने के लिए बोस को 1917 में “नाइट” (Knight) की उपाधी दी गई.  


79 वर्ष की उम्र में इस महान वैज्ञानिक का 23 नवम्बर 1937 को निधन हुआ.