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नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार और RBI को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, क्या है पूरा मामला

नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार और RBI को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, क्या है पूरा मामला

Tuesday October 18, 2022 , 5 min Read

क्या नोटबंदी करने की प्रक्रिया उचित थी? क्या सरकार के पास है नोटों को बंद करने का अधिकार है?


नोटबंदी के पांच बड़े मकसद बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को रात 8 बजे से 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का एलान किया था. वो पांच मकसद थे- कालाधन को ख़त्म करना, बड़े नोटों को कम करना ताकि कालाधन जमा न किया जा सके, देश को कैशलेस बनाना, नकली नोटों को ख़त्म करना और आंतकवादियों और नक्सलियों की कमर तोड़ना.


सरकार के इस फैसले के खिलाफ 2016 में विवेक शर्मा ने याचिका दाखिल कर इस फैसले को चुनौती दी. अब तक इस मामले में 59 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं. याचिका में पीएम मोदी की अचानक से नोटबंदी की घोषणा के बाद 80% नोटों के बेकार करने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को 5 जजों की बेंच को सौंपा था

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकीलों ने सरकार की नोटबंदी की योजना में कई कानूनी गलतियां होने की दलील दी थी, जिसके बाद 16 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था. तब कोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर कोई भी अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया था. यहां तक कि कोर्ट ने तब नोटबंदी के मामले पर अलग-अलग हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई से भी रोक लगा दी थी और मामले को पांच को रेफर कर दिया था.

नोटबंदी के बाद 2016 में दायर की गई थी याचिका

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की बेंच ने 9 सवाल तैयार किए थे जिन्हें पांच जजों की बेंच के सामने सुनवाई के लिए भेजा गया था. वे सवाल हैं:


क्या नोटबंदी का 8 नवंबर का नोटिफिकेशन और उसके बाद का नोटिफिकेशन असंवैधानिक है?

क्या नोटबंदी संविधान के अनुच्छेद-300 (ए) यानी संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है?


क्या सरकार के पास RBI अधिनियम की धारा 26 के तहत 500 और 1000 रुपये के सभी नोटों को बंद करने का अधिकार है? याचिकाकर्ताओं की दलील है कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2) किसी विशेष मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए सरकार को अधिकृत नहीं करती है. धारा 26 (2) केंद्र को एक खास सीरीज के करेंसी नोटों को रद्द करने का अधिकार देती है, न कि संपूर्ण करेंसी नोटों को. अब इसी का जवाब सरकार और RBI को देना है.


क्या नोटबंदी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. मसलन संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता के अधिकार और अनुच्छेद-19 यानी आजादी के अधिकारों का उल्लंघन है?

क्या नोटबंदी के फैसले को बिना तैयारी के लागू किया गया. करंसी का इंतजाम नहीं था और कैश लोगों तक पहुंचाने का इंतजाम नहीं है?

क्या सरकार की इकोनॉमिक पॉलिसी के खिलाफ अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है?

बैंकों और एटीएम में पैसा निकासी का लिमिट तय करना लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है?

डिस्ट्रिक्ट सहकारी बैंकों में पुराने नोट जमा करने और नए नोट निकालने पर रोक सही नहीं है.


नोटबंदी पर क्या कहता है कानून

तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने तब कहा था कि यह मानते हुए कि 2016 की अधिसूचना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत वैध रूप से जारी की गई थी, लेकिन सवाल यह था कि क्या वह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के विपरीत थी? अनुच्छेद 300(ए) कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी तौर पर सुरक्षित उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा. पीठ ने एक मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा था, ‘‘क्या बैंक खातों में जमा राशि से नकदी निकालने की सीमा का कानून में कोई आधार नहीं है और क्या यह अनुच्छेद 14,19 और 21 का उल्लंघन है?’’ वहीं, अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है और अनुच्छेद 21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकारों से संबंधित है.


मामले में सुनवाई अब जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ कर रही है.

पिछली सुनवाई में क्या हुआ था?

पिछली सुनवाईयों के दौरान अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह छह साल पहले का फैसला है और इसमें कुछ नहीं बचा है और कि यह मामला सिर्फ एकेडमिक रह गया  है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह पहले यह देखेगा कि मामला क्या अब एकेडमिक रह गया है.


जिस पर वकील पी. चिदंबरम और श्याम दीवान ने कहा कि केंद्र सरकार के फैसले की वैधता अभी भी ओपन है और कहा कि केंद्र सरकार को एग्जिक्यूटिव फैसले के जरिये करेंसी नोट रद्द करने का अधिकार नहीं है. साथ ही इस मुद्दे को भविष्य के लिए भी तय किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने याची की दलील को ध्यान में रखते हुए कहा कि मुद्दा एकेडमिक नहीं भी हो सकता है. बेंच ने कहा कि उनकी ड्यूटी है कि जो सवाल उन्हें भेजे गए हैं उनका वह जवाब दें.


28 सितंबर की सुनवाई में जस्टिस नजीर ने कहा कि वह मामले की सुनवाई 12 अक्टूबर को करेंगे और तब पहले यह तय करेंगे कि क्या यह मामला एकेडमिक रह गया है?


12 अक्टूबर की सुनवाई में अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए हमें इसे सुनना होगा और जवाब देना होगा कि क्या यह एकेडमिक है, एकेडमिक नहीं है या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर कोर्ट की लक्ष्मण रेखा से अवगत है. लेकिन जिस तरह से विमुद्रीकरण किया गया, उसकी जांच होनी चाहिए. हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा.

अगली सुनवाई नौ नवंबर को होगी 

नोटबंदी की संवैधानिक वैधता को लेकर दाखिल की गई याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा. दोनों ने कोर्ट हलफनामे के लिए समय मांगा. मामले में अगली सुनवाई नौ नवंबर को होगी.