रक्तदान करने के लिए 500 किमी ट्रैवल करके पहुंचा ये शख्स, हर कोई कर रहा है तारीफ
रक्तदान को आमतौर पर दयालुता का एक महान कृत्य माना जाता है। इस महान कार्य में अपना योगदान देने के लिए भारत में अनेकों लोग सामने आते हैं और हर दिन किसी न किसी जान बचाते हैं। यहां तक कि कभी-कभी, लोग इस मूलभूत स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत में अपना योगदान देने के लिए उससे भी एक कदम आगे चले जाते हैं।
ऐसे ही एक शख्स हैं राउरकेला के रहने वाले दिलीप बारीक। दिलीप ने हाल ही में ओडिशा के बेरहामपुर शहर में अपना रक्तदान करने और एक नई माँ के जीवन को बचाने के लिए 500 किलोमीटर की यात्रा की।
जैसा कि दुनिया में कुल 38 प्रकार के ब्लड ग्रुप हैं। जिनमें से एक बॉम्बे ब्लड ग्रुप के नाम से मशहूर 'बॉम्बे फिनोटाइप' भी है। इस ब्लड ग्रुप को चिकित्सीय दुनिया में एचएच ब्लड के नाम से भी जाना जाता है। ये बेहद दुर्लभ प्रकार का ब्लड ग्रुप है जो आसानी से नहीं मिलता। ये ब्लड ग्रुप पहली बार मुंबई में खोजा गया था, और इसलिए इसका नाम बॉम्बे है।
ऐसा ही ब्लड ग्रुप है सबिता रईत का। ओडिशा के गंजम जिले के मंडासिंगी गांव के आदिवासी नारायण रईत की गर्भवती पत्नी सबिता रईत का ब्लड ग्रुप 'Bombay A +ve' है। सबिता 12 अक्टूबर को ब्रह्मपुर सरकारी अस्पताल के प्रसूति वार्ड में भर्ती हुईं थीं। अस्पताल के चिकित्सकों ने 13 अक्टूबर को उनका ऑपरेशन कर बच्ची का जन्म कराया। प्रसव के समय अधिक खून बह जाने से शरीर में खून की कमी हो गयी।
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार,
"डिलीवरी के बाद सबिता की तबियत काफी गंभीर हो गई। उनके डॉक्टरों ने बताया कि अत्यधिक खून की कमी और कम हीमोग्लोबिन के स्तर के कारण उनकी हालत बिगड़ी है। इसी बीच, नवजात शिशु को भी नजदीकी ICU में भर्ती कराया गया, जहाँ उसका वजन सामान्य से कम पाया गया। सबिता का इलाज करते समय डॉक्टर्स ने पाया कि उनका ब्लड ग्रुप काफी दुर्लभ है।"
डॉक्टर्स ने इस बारे में उनके पति को सूचित किया जिसके बाद उनके पति ने अस्पताल के ब्लड बैंक में ब्लड के लिए आवेदन किया। ब्रह्मपुर ब्लड बैंक की डॉक्टर रश्मिता पाणीग्राही को भी ये ब्लड ग्रुप कहीं नहीं मिला। जिसके बाद वह ब्लड की व्यवस्था कराने में जुट गयीं। उन्होंने राज्य के सभी ब्लड बैंक से संपर्क साधा। लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। हार न मानते हुए, डॉक्टर ने सोशल मीडिया को अपना जरिया बनाया और व्हाट्सएप ग्रुपों पर संदेश भेजकर यूजर्स से आग्रह किया कि वे सबिता की मदद करें।
किसी तरह भुवनेश्वर ब्लड बैंक से पता चला कि सुंदरगढ़ जिले के राउरकेला में दिलीप बारीक का ब्लड ग्रुप यही है। दरअसल दिलीप भुवनेश्वर स्थित रक्तदान समूह के एक सदस्य हैं। जब उन्हें पता चला तो वे बेरहमपुर पहुंचे। शनिवार को अस्पताल पहुंचकर उन्होंने अपना रक्त दान किया, जिसका इस्तेमाल तुरंत सबिता के इलाज के लिए किया गया। अस्पताल के अधिकारियों के मुताबिक, मां और बच्चे दोनों की सेहत अब स्थिर है।
अपने इस नेक काम के बारे में ओडिशा पोस्ट से बात करते हुए, उन्होंने कहा, "मैं रक्त दान करके किसी के जीवन को बचाकर वास्तव में खुश हूं।" बता दें कि दिलीप भारत में 2,50,000 व्यक्तियों में से एक हैं, जिनका ब्लड ग्रुप 'बॉम्बे फिनोटाइप' है।