इस 'मिट्टी कैफे' में काम कर दिव्यांग पा रहे हैं रोजगार, 3 राज्यों में हो रहा कैफे का संचालन
इस बेहद खास कैफे की शुरुआत अलिमा आलम ने की थी और आज ये कैफे कई दिव्यांगजनों के लिए रोजगार का अहम जरिया बन चुका है।
"कैफे में दिव्यांगजन तो काम करते ही हैं, इसी के साथ गरीब तबके के लोगों को भी यहाँ रोजगार उपलब्ध कराने में प्राथमिकता दी जाती है। शर्त यह रहती है कि यहाँ काम करने वाले लोगों के परिवार की मासिक आमदनी 5 हज़ार रुपये महीने से कम हो। मूलतः कैफे का उद्देश्य ज़रूरतमंद लोगों को उनके परिश्रम के बल पर आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाना है।"
देश में दिव्यांगजनों के लिए जीविका अर्जित करने के साथ ही अन्य मौके भी उतनी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाते हैं और इसके चलते उन्हे आगे बढ़ने में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, हालांकि इससे ठीक उलट मुख्यता बेंगलुरु स्थित मिट्टी कैफे ने न सिर्फ बड़े स्तर पर दिव्यांगजनों को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही उन्हे जिंदगी जीने की नई परिभाषा दी है, बल्कि उनके भीतर आत्मविश्वास भी भरने का काम किया है।
इस बेहद खास कैफे की शुरुआत अलिमा आलम ने की थी और आज ये कैफे कई दिव्यांगजनों के लिए रोजगार का अहम जरिया बन चुका है। मिट्टी कैफे का संचालन मुख्य तौर पर कई कॉलेज और स्कूल परिसर में किया जा रहा है। कैफे में अधिकांश तौर पर दिव्यांग ही काम करते हैं।
बना रहे हैं आर्थिक रूप से सम्पन्न
कैफे में दिव्यांगजन तो काम करते ही हैं, इसी के साथ गरीब तबके के लोगों को भी यहाँ रोजगार उपलब्ध कराने में प्राथमिकता दी जाती है। शर्त यह रहती है कि यहाँ काम करने वाले लोगों के परिवार की मासिक आमदनी 5 हज़ार रुपये महीने से कम हो। मूलतः कैफे का उद्देश्य ऐसे लोगों को उनके परिश्रम के बल पर आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाना है।
इसके लिए पहले इन सभी लोगों को कैफे में ही एक मुफ्त ट्रेनिंग दी जाती है, जिसके बाद ये लोग कैफे में अपनी सेवाएँ देना शुरू करते हैं। कैफे में ब्रेल लिपि में छपे खाने के मेन्यू भी उपलब्ध रहते हैं। खाने की बात करें तो यहाँ ताजे खाने के साथ ही ग्लूटन फ्री खाने के विकल्प भी ग्राहकों को उपलब्ध कराये जाते हैं।
फोर्ब्स ‘30 अंडर 30’ में नाम
कैफे की स्थापना को लेकर अलिना आलम का कहना है कि हर स्टार्टअप की शुरुआत में मुश्किलें तो आती हैं लेकिन जीत का रास्ता भी यहीं से निकलता है। अलिना के अनुसार उन्होने यह शुरुआत अकेले ही की थी। गौरतलब है कि ये कैफे बीते 3 सालों में 50 लाख से अधिक लोगों को खाना सर्व कर चुके हैं।
संख्या की बात करें तो वर्तमान में मिट्टी कैफे का संचालन 3 अलग-अलग राज्यों में 9 जगह किया जा रहा है, लेकिन अपने एक साक्षात्कार में अलिना का कहना है कि वह आने वाले सालों में कैफे की 60 से अधिक शाखाएँ खोलना चाहती हैं, इसी के साथ ही वह इसे फ्रैंचाइज़ मॉडल पर भी रन करना चाहती हैं।
फिलहाल कैफे की अधिकतर शाखाएँ कर्नाटक राज्य में ही हैं। अलिना को उनके इस काम के लिए प्रतिष्ठित फोर्ब्स पत्रिका की ‘30 अंडर 30’ लिस्ट में शामिल किया जा चुका है, इसी के साथ अलिना को कई अन्य सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है।
लॉकडाउन में की मदद
बीते साल जब कोरोना वायरस संक्रमण के विस्तार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया गया तो इसके बाद मिट्टी कैफे ने एक मुहिम की शुरुआत की जिसके साथ कैफे ने बड़े स्तर पर गरीबों और जरूरतमंदों तक खाना भी पहुंचाया। कैफे द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन के दौरान ही इन लोगों ने करीब 10 लाख से अधिक लोगों तक खाना पहुंचाया है।
मालूम हो कि मिट्टी कैफे की पहली शाखा की शुरुआत हुब्ली के बीवीबी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नालजी कैंपस में की गई थी।
Edited by Ranjana Tripathi