13 साल की उम्र में धमाके में गंवाए अपने दोनों हाथ, आज दिव्यांगों के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं डॉ. मालविका अय्यर
साल 2020 के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी #SheInspiresUs पहल के तहत अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स 7 बहुत खास महिलाओं को सौंपे। इन महिलाओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में काम कर अलग मुकाम हासिल किया है। इन महिलाओं में बम धमाकों में अपने दोनों हाथ गंवा चुकीं डॉ. मालविका अय्यर भी शामिल रहीं। 30 साल की मालविका अपने आप में जज्बे और हौसले की जीती जागती मिसाल हैं।
तमिलनाडु में पैदा हुईं मालविका बीकानेर में पली बढ़ीं। साल 2002 में राजस्थान के बीकानेर में हुए बम ब्लास्ट ने मालविका की जिंदगी को एकदम से झकझोर कर रख दिया। एक झटके में वह आम इंसान से दिव्यांग बन गईं। 26 मई को अनजाने में हुए बम ब्लास्ट में मालविका ने अपने दोनों हाथ गंवा दिए।
दरअसल बीकानेर में उनके घर के पास ही सरकारी गोला-बारूद का डिपो था। वहां पर आग लगी हुई थी। इसके कारण कई विस्फोटक पदार्थ आसपास में बिखरे हुए थे। उस वक्त मालविका 9वीं कक्षा की छात्रा थीं। वह बाहर गईं और अनजाने में एक ग्रेनेड उठा लाईं। जैसे ही उन्हें कुछ समझ आता, तब तक ग्रेनेड फट गया और वह बुरी तरह घायल हो गईं।
इस अटैक में दोनों हाथों के अलावा मालविका के दोनों पैर भी बुरी तरह से जख्मी हो गए। उस वक्त वह महज 13 साल की थीं। 13 साल की उम्र में अपने दोनों हाथ खोने पर हर कोई हिम्मत हार जाए लेकिन मालविका उन लोगों में से नहीं थीं। ब्लास्ट के जख्मों से उबरने के लिए वह 18 महीनों यानी डेढ़ साल तक अस्पताल में रहीं।
कई ऑपरेशन और सर्जरियों से गुजरीं लेकिन हार नहीं मानी। उन्होंने प्रोथेस्टिक हाथों के जरिए दोबारा से जिंदगी शुरू की। मालविका ने चेन्नई में प्राइवेट स्टूडेंट के तौर पर 10वीं की परीक्षा दी और पेपर लिखने के लिए उन्होंने एक दूसरे शख्स का सहारा लिया। जब रिजल्ट आया तो मालविका ने राज्य में अच्छी रैंक हासिल की।
यहां से लोगों का ध्यान उनकी ओर गया। बाद में वह दिल्ली आ गईं और यहां पर सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इकनॉमिक्स (ऑनर्स) में ग्रेजुएशन की और बाद में सोशल वर्क में मास्टर्स किया। उन्होंने पीएचडी की पढ़ाई भी की है। उन्हें देश के पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति भवन आमंत्रित किया।
उन्होंने एक मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर अपना नया करियर शुरू किया। वह संयुक्त राष्ट्र सहित कई देशों में अपने अनुभव साझा कर चुकी हैं। वह अपने वर्कशॉप्स और अपनी प्रेरक बातों के जरिए दिव्यांगों के प्रति लोगों के नजरिए को बदलने में लगी हुई हैं। वह चाहती हैं कि सामाजिक तौर पर दिव्यांगों को आम लोगों की तरह अपनाया जाए और उनकी उपस्थिति आम लोगों की तरह ही सुगम हो।
उन्हें साल 2017 के नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी साल 18 फरवरी को वह 30 साल की हुई हैं। अपने बर्थडे पर उन्होंने ट्विटर पर एक खास पोस्ट किया। लगातार कई ट्वीट्स कर उन्होंने अपनी कहानी लोगों से साझा की...
साल 2020 में वह पीएम मोदी की #SheInspiresUs पहल का अहम हिस्सा हैं। पीएम मोदी के अकाउंट से विडियो पोस्ट करते हुए वह लिखती हैं,
'स्वीकार्यता ही वह सबसे बड़ा पुरस्कार है जो हम खुदको दे सकते हैं। हम अपने जीवन को नियंत्रित नहीं कर सकते लेकिन हम जीवन की ओर अपने नजरिए को जरूर नियंत्रित कर सकते हैं। आखिर में सिर्फ यही मायने रखता है कि हम अपनी चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं।' पोस्ट किए गए विडियो में वह कहती हैं कि समाज महिलाओं का सम्मान करे। शिक्षा से मुझे आत्मविश्वास मिला। मैंने प्राइवेट सेंटर में पढ़ाई कर परीक्षा दी और सिर्फ 3 महीने की तैयारी में ही 97% मार्क्स हासिल किए। मैंने कभी खुद पर दया नहीं की।'
वह आगे कहती हैं,
'मेरा हर कदम चुनौतियों से भरा था। मुझे मेरे स्कूल, वर्क प्लेस और समाज ने अपनाया है। मैं ऐसे भारत का सपना देखती हूं जिसमें मतभेदों के बावजूद हम एक-दूसरे को अपना सकें। हमें दिव्यांगों के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। हमें दिव्यांगों को कमजोर लोगों के बजाय रोल मॉडल के तौर पर देखना होगा।'
मालविका सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं। वह उन महिलाओं के लिए एक मार्ग प्रशस्त करती हैं जो छोटी-छोटी परेशानियां आने पर ही हिम्मत हार जाती हैं। मालविका नारी शक्ति की एक जीती जागती मिसाल हैं। वह उदाहरण हैं कि किस तरह अपनी परेशानियों को पछाड़कर आप अपने जीवन में निरंतर आगे बढ़ सकते हैं।