संसद के सेंट्रल हाल में गूंजा ‘जोहार’ बदलते भारत की कहानी कह रहा है; पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ली शपथ
July 25, 2022, Updated on : Mon Jul 25 2022 13:18:12 GMT+0000

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संसद का सेंट्रल हॉल कई ऐतिहासिक लम्हों का गवाह रहा है लेकिन आज 25 जुलाई को ‘जोहार’ के अभिनन्दन के साथ सेन्ट्रल हॉल का इतिहास कुछ और ख़ास हो गया. सेन्ट्रल हाल आज देश के पहले आदिवासी राष्ट्रपति शपथ ग्रहण करने का साक्षी बना. पहला आदिवासी राष्ट्रपति एक महिला है यह बात अपने में भारतीय लोकतंत्र के सामाजिक विस्तार की एक कहानी कहती है.
उड़ीसा के मयूरभंज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हरा कर देश की पहली आदिवासी, महिला राष्ट्रपति बनी हैं. मुर्मू ने निर्वाचक मंडल सहित सांसदों और विधायकों के 64 प्रतिशत से अधिक वैध वोट लेकर यह जीत दर्ज की है. मुर्मू को सिन्हा के 3 लाख 80 हजार 177 वोटों के मुकाबले 6 लाख 76 हजार 803 वोट मिले हैं. नतीजे के चार दिन बाद आज 25 जुलाई को मुर्मू ने राष्ट्रपति के बतौर शपथ ग्रह किया.
25 जुलाई को शपथ ले चुके हैं दस राष्ट्रपति
इस सन्दर्भ में 25 जुलाई का भी अपना एक इतिहास है. मुर्मू देश की 10वीं राष्ट्रपति होंगी जो 25 जुलाई को शपथ ले रही हैं. भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी के 25 जुलाई 1977 को शपथ लेने के बाद कई राष्ट्रपतियों ने इसी दिन अपन शपथ ग्रहण किया है. ज्ञानी जैल सिंह, आर. वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा, के.आर. नारायणन, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद ने भी इसी तारीख को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी.
पाँच तरह से ऐतिहासिक है द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना
मुर्मू का राष्ट्रपति बनना एक या दो नहीं पाँच तरह स ऐतिहासिक है.
- मुर्मू देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली पहली आदिवासी हैं.
- वह देश की दूसरी महिला और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं.
- वह आजादी के बाद पैदा होने वाली पहली और शीर्ष पद पर काबिज होने वाली सबसे युवा राष्ट्रपति बन गईं हैं.
- आज तक कोई भी राष्ट्रपति उड़ीसा से नहीं बना था.
- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भाजपा की पृष्ठभूमि से आने वाले पहले राष्ट्रपति थे, जबकि मुर्मू उसी पृष्ठभूमि से आने वाली पहली महिला राष्ट्रपति बन गईं हैं.
संसद के सेंट्रल हॉल में गूंजा जोहार
शपथ ग्रहण समारोह के शुरुआत में ही मुर्मू ने ‘जोहार’ शब्द से कई संदेश दे दिए. मुर्मू ने जोहार शब्द से उस तबके को जोड़ा जिनसे उनका ताल्लुक है. उन्होंने अपने संबोधन में कहा:
"मेरे लिए बहुत संतोष की बात है कि जो सदियों से वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझ में अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं. मेरे इस निर्वाचन में देश के गरीब का आशीर्वाद शामिल है, देश की करोड़ों महिलाओं और बेटियों के सपनों और सामर्थ्य की झलक है."
लोकतंत्र की महानता बताते हुए उन्होंने अपने संबोधन में कहा- “मैं प्रेसिडेंट बनी, यह लोकतंत्र की महानता है. भारत में गरीब सपने देख सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है. युवाओं और महिलाओं को मैं खास विश्वास दिलाती हूं. अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प मजबूत रहा.”
देश जब आज़ादी के 75 साल पूरे करने जा रहा है, उस घड़ी में आदिवासी समाज से आने वाली एक महिला का देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होना उस परम्परा से जुड़ता है जो है 1855 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले संथालों तक जाती है.
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