पति के एक्सिडेंट के बाद सीखी ड्राइविंग, अब कैब चला कर संभाल रहीं परिवार
कितनी दुखद स्थिति है कि आज भी हमारे देश के कई हिस्सों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिलता। उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए कई तरह के संघर्ष करने पड़ते हैं। यही वजह है कि कई क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति नगण्य है। महिलाओं को तभी काम करने का मौका मिलता है जब ऐसा करना बिलकुल जरूरी हो जाता है। वे अपनी इच्छा के मुताबिक किसी काम को नहीं चुन सकतीं। कुछ ऐसी ही हालत कभी जयपुर की रहने वाली 41 वर्षीय गुलेश चौहान की थी, जो अब कैब चलाने का काम कर रही हैं।
एक राजपूत परिवार में पली बढ़ीं गुलेश बीते लगभग चार साल से हर दिन सुबह 6.30 बजे से शाम 6.30 बजे तक जयपुर में अग्रणी कैब सर्विस प्रोवाइडर उबर ड्राइवर पार्टनर है। गुलेश ने सिर्प नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई की है। उनकी शादी 17 साल की उम्र में हरियाणा में हो गई। उनकी शादी के 6 माह पहले ही उनके पिता का देहांत हो गया था। घर में चार बेटे और एक बेटी की परवरिश करना काफी मुश्किल हो रहा था इसलिए उनकी मां ने गुलेश की शादी करना बेहतर समझा।
गुलेश से जब पूछा गया कि इतनी कम उम्र में शादी करने के बाद उन्हें क्या लगा था तो उन्होंने कहा, 'न तो मैं इसका विरोध कर सकने की हालत में थी और न ही मुझे कुछ समझ में आया। हालांकि मुझे याद है कि मैं आगे की पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन वो वक्त काफी मुश्किल था और इसलिए मुझे शादी करनी पड़ी। सौभाग्य से मेरे ससुराल वाले और मेरे पति अच्छे लोग थे।'
गुलेश की जिंदगी ठीक ठाक चल रही थी कि 2003 में उनके पति एक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए और इसके बाद परिवार का खर्च चलाने का सारा जिम्मा गुलेश पर आ गया। SheThePeople को दिए इंटरव्यू में वे कहती हैं, 'मेरी मां कैंसर पीड़ित हैं और उन्होंने नर्स के तौर पर जिंदगी भर काम किया है। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मुझे अपने बेटे को पालना है तो मुझे खुद से आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा। लेकिन मैंने कभी घर से बाहर कदम नहीं रखा था और हमेशा घूंघट में रहती थी। उन्होंने मुझसे दूसरी शादी के बारे में भी पूछा लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं सिर्फ अपने बच्चे की सही तरीके से देखभाल करना चाहती थी।'
वे आगे बताती हैं, "जब आजीविका कमाने की बात आई, तो मैंने कुछ काम करने शुरू किए, जैसे लोगों के घरों में खाना बनाना, सब्जियां बेचना, सड़क किनारे स्टाल पर पकोड़े बनाना। लेकिन इससे सही से घर नहीं चल पा रहा था।" गुलेश ने कुछ दिनों तक राजनेता अमर सिंह के पिता के घर पर भी खाना बनाने का काम किया।
2007 में गुलेश को पता चला कि दिल्ली सरकार एक योजना के तहत डीटीसी की बसों में महिला ड्राइवरों को रख रही है। वे बताती हैं, 'मेरे पति की इच्छा थी कि मैं ड्राइविंग सीखूं।' एक रिश्तेदार के पास ऑल्टो कार थी जिससे उन्होंने कार चलानी सीखी। इसके बाद भारी वाहन चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए जब वे आरटीओ ऑफिस गईं तो उनका मजाक उड़ाया गया। वे कहती हैं, 'जब उन्हें पता चला कि मैं भारी वाहन चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवााने आई हूं तो उन्होंने मेरा मजाक बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने मेरे इरादे पर सवाल उठाया और मुझे कई अन्य लोगों के सामने शर्मिंदा किया, लेकिन वे मुझे हतोत्साहित नहीं कर सके।'
गुलेश ने ड्राइविंग तो सीख ली थी लेकिन दिल्ली सरकार ने डीटीसी को प्राइवेट कर दिया। इसके बाद गुलेश का सपना टूट गया। अब वे फिर से दूसरे काम में लग गई थीं। वे टिफिन सर्विस चलाने लगीं। ये धंधा अच्छा चल निकला था, लेकिन इसी बीच गुलेश का एक्सिडेंट हो गया और वे बेड पर आ गईं। ठीक होने में उन्हें 6 महीने लग गए। इसके बाद उनके मन में अपने ड्राइविंग के शौक को फिर से पूरा करने का ख्याल आया। इसी बीच अनिल नाम के एक शख्स को महिला ड्राइवर की तलाश थी। उनसे गुलेश मिलीं और ड्राइविंग का सफर शुरू हो गया और आज वे एक सफल ड्राइवर के तौर पर काम कर रही हैं।
हालांकि ड्राइविंग का काम बिलकुल भी आसान नहीं था क्योंकि समाज ने गुलेश पर कीचड़ उछाले और उनकी नीयत पर भी संदेह किया गया। लेकिन उनकी मां हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं। अनिल ने ही उन्हें खुद की कार खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया। अनिल ने ही उन्हें कार खरीदने के लिए पैसे भी दिए। आज गुलेश के पास खुद की कार है और वे इसके लिए अनिल को शुक्रगुजार मानती हैं।
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