ड्रग्स के लत में बर्बाद हो रही थी जिंदगी, फुटबॉल ने दिलाई नई पहचान
महाराष्ट्र के नागपुर इलाके में स्थित गोधनी गांव के रहने वाले 25 वर्षीय पंकज महाजन की पहचान आज एक फुटबॉल कोच के तौर पर होती है जो कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को फुटबॉल खेलना सिखाते हैं। लेकिन पंकज की कहानी किसी साधारण शख्स की कहानी नहीं है। पंकज ने जिन संघर्षों का सामना करते हुए यह सफलता हासिल की है वह वाकई काबिले तारीफ है।
एक शराबी पिता और विकलांग मां के साथ रहते हुए पंकज को बचपन से ही कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। काफी कम उम्र में ही पंकज तंबाकू का सेवन करने लगे थे और खर्रा की भी उन्हें लत लग गई थी। खर्रा एक प्रकार का ड्रग्स होता है जो कि तंबाकू से तैयार होता है।
पंकज अपने बीते दिनों को याद करते हुए कहते हैं, 'हमारी एक छोटी सी पान की दुकान थी जिसमें हम बीड़ी, तंबाकू बेचा करते थे। इससे हमें थोड़े पैसे मिल जाते थे। लेकिन इन सारे पैसों से मेरे पिताजी शराब पी जाते थे और हमारी आजीविका पर मुश्किल आ जाती थी। पैसों की कमी की वजह से मैं दसवीं के आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया। घर में पैसों की तंगी थी इसलिए मैंने पैसे कमाने के बारे में सोचा और मेरे कुछ जानकार लोगों ने मुझे पेंटर की नौकरी दिलवा दी। पेंटिंग के काम से मुझे रोज 30 से 40 रुपये मिल जाते थे।'
लेकिन धीरे-धीरे पंकज के घर के हालात और भी खराब होने लगे। घर में मारपीट और गाली गलौज से तंग आकर पंकज को ड्रग्स की लत लग गई और वे ड्रग्स का सेवन करने वाले लोगों की गैंग में शामिल हो गए। लेकिन ड्रग्स के दलदल से पंकज को फुटबॉल ने बाहर निकाला। 2010 में फुटबॉल कोच होमकांत सुरदासे ने पंकज से फुटबॉल खेलने का आग्रह किया और इस तरह से पंकज की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। अब वे ड्रग्स की लत से पूरी तरह बाहर आ गए हैं और स्लम सॉकर नाम के एक एनजीओ द्वारा संचालित टीम को फुटबॉल सिखाते हैं।
पंकज की मदद से स्लम में रहने वाले लगभग 12,500 बच्चों की जिंदगी में परिवर्तन आ गया है। पंकज बताते हैं कि स्लम सॉकर के सीईओ अभिजीत बरसे ने उनका खेल देखा था और उन्हें फुटबॉल में ही करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। अभिजीत ने पंकज को आर्थिक मदद की भी पेशकश की। तब से लेकर अब तक पंकज ने जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर के टूर्नामेंट्स में हिस्सा लिया। 2014 में उन्हें चिली में होमलेस वर्ल्डकप में हिस्सा लेने का मौका मिला और बाद में 2017 में उन्होंने फिर से भारत का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन इस बार वे खिलाड़ी नहीं बल्कि एक कोच की हैसियत से होमलेस फुटबॉल कप में हिस्सा लेने गए थे।
पंकज बताते हैं कि आज वे जो कुछ बन पाए हैं वह सब स्लम सॉकर की देन है। लोग उन्हें जानने लगे हैं और समाज भी उनसे प्रेरणा ले रहा है। वे बताते हैं कि इतना प्यार और सम्मान उन्हें किसी और काम में नहीं मिल सकता था। अब पंकज स्पोर्ट्स में ही रहना चाहते हैं। वे स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की पढ़ाई करना चाहते हैं।
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