कोलकाता: सेक्स वर्कर्स के लिए सजा खास दुर्गा पूजा पंडाल, अविवाहित महिलाएं जाएंगी सिंदूर खेला में
बंगाल में दुर्गा पूजा की भव्यता देखने लायक होती है। यहां जगह-जगह पर दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और उत्सव की तरह इस त्योहार का आनंद लिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान जो दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है उसकी मिट्टी सेक्स वर्कर वाले इलाके सोनागाछी से लाई जाती है।
वैसे तो सोनागाछी काफी बदनाम इलाका है, लेकिन इस बार यहां के सेक्सकर्मियों के लिए खासतौर पर कोलकाता में एक दुर्गापूजा पंडाल सजाया गया है।
हमारा देश भारत तमाम विविधताओं से भरा हुआ है। यही वजह है कि यहां उत्सव और त्योहारों की कमी नहीं रहती। कई त्योहार तो ऐसे हैं जो अलग-अलग क्षेत्र और राज्य में अलग-अलग नाम और तरीके से मनाए जाते हैं। नवरात्रि एक ऐसा ही पर्व है जब पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, को उत्तर भारत में दशहरा। बंगाल में दुर्गा पूजा की भव्यता देखने लायक होती है। यहां जगह-जगह पर दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और उत्सव की तरह इस त्योहार का आनंद लिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान जो दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है उसकी मिट्टी सेक्स वर्कर वाले इलाके सोनागाछी से लाई जाती है।
मान्यता के अनुसार एक वेश्यालय के आंगन से लाई गई मिट्टी को दुर्गा पूजा के लिए शुभ माना जाता है। वैसे तो सोनागाछी काफी बदनाम इलाका है, लेकिन इस बार यहां के सेक्सकर्मियों के लिए खासतौर पर कोलकाता में एक दुर्गापूजा पंडाल सजाया गया है। हमारे समाज में सेक्सवर्करों को न तो सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और न ही उन्हें किसी प्रकार के कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। इस तरह वे समाज की मुख्यधारा से कोसों दूर रहती हैं।
इस स्थिति को बदलने और सेक्स वर्करों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के वास्ते उत्तरी कोलकाता में यकवृंद दुर्गापूजा पंडाल सजाया गया है। इस पंडाल में सेक्सवर्कर के जीवन और संघर्ष की दास्तां को उभारा गया है। उत्तर कोलकाता में अहिरिटोला युवकवृंद दुर्गा पूजा पंडाल तक जाने वाली सड़कों पर इस थीम को लेकर पेंटिंग भी बनाई गई हैं। इस पंडाल में सेक्स वर्कर्स के जीवन और उनके संघर्ष को दर्शाने की कोशिश की गई है।
अहिरिटोला युवकवृंद के प्रेसिडेंट उत्तम साहा ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया, 'हमारे रूढ़िवादी समाज ने हमेशा से ही सेक्स वर्करों को उपेक्षा की नजर से देखा है। हम यह महसूस करने में असफल रहे हैं कि वे भी किसी की मां और बहन हैं। उनके पास भी एक परिवार है। लोगों की प्रताड़ना और घृणा की जगह उन्हें भी सम्मान और प्यार से जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए।' इस प्रॉजेक्ट की देखरेख करने वाले देबार्जुन कर ने कहा, 'दुर्गापूजा का उत्सव समाज के हर तबके के लोगों को साथ में लाने का उत्सव है जिसमें सेक्स वर्कर भी शामिल हैं। इस पेंटिंग के जरिए हम सेक्सवर्करों को यह दिखाना चाहते हैं कि वे भी समाज का हिस्सा हैं और उन्हें भी बाकी लोगों की तरह सामान्य तरीके से जीने का हक है।'
कोलकाता का सोनागाछी इलाका एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट इलाका माना जाता है जहां लगभग 10,000 सेक्स वर्कर काम करती हैं। अहिरिटोला से सोनागाछी की दूरी बमुश्किल एक किलोमीटर है। पंडाल परिसर में इन सेक्स वर्करों के जीवन को उकेरा गया है। इसमें हाथ से बने पोस्टर, दीवारों पर पेंटिंग और ग्रैफिटी भी शामिल है। इस प्रॉजेक्ट का अनावरण दरबार महिला समन्वय कमिटी (DMSC) ने किया। यह एक एनजीओ है जो सेक्स वर्करों के हित में काम करने के लिए जाना जाता है।
DMSC की सचिव काजोल बोस ने कहा, 'हम अब हाशिए पर नहीं रहेंगे। कुछ साल पहले तक हमें पूजा उत्सव तक भी नहीं जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अब हम न केवल पूजा की मेबानी करते हैं बल्कि लोग भी हमें पंडाल के लिए आमंत्रित करते हैं। इतना ही नहीं हमें पंडाल में होने वाले कॉम्पिटिशन में जज बनाते हैं और हमें कई गतिविधियों में भाग लेने को कहा जाता है। बीते कुछ सालों से हमें सिंदूर खेला में भी हिस्सा मिलने लगा है। हम बस इतना कहना चाहते हैं कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और वैसा परिणाम हासिल कर रहे हैं जिसके लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे।'
दुर्गापूजा पंडाल के इस प्रॉजेक्ट पर काम करने वाले कलाकार मानस राय ने कहा, 'एक महिला सेक्स के धंधे में तभी आती है जब उसे तस्करी कर के लाया जाता है या फिर उसके सामने परिवार चलाने की मजबूरी होती है। ये सेक्स वर्कर मां भी होती हैं जिनके कंधे पर बच्चे और परिवार को पालने की जिम्मेदारी होती है। हम देवी के रूप में दुर्गा मां की पूजा करते हैं तो फिर महिलाओं के साथ ही हम भेदभाव नहीं कर सकते।'
इस अनोखे दुर्गा पूजा पंडाल में सेक्स वर्करों को ट्रिब्यूट देने के साथ ही अविवाहित महिलाओं को भी सिंदूर खेला रस्म में शामिल होने की अनुमति दी गई है। आपको बता दें कि सिंदूर खेला एक ऐसा आयोजन होता है जिसमें सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही शामिल होने की अनुमति थी। ये शुरुआत भले ही छोटी है, लेकिन ये इस बात की तस्दीक करती है कि वक्त बदल रहा है और उस बदलते वक्त के साथ हमें भी बदलना होगा। सभी को साथ लेकर चलना होगा।
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