पढ़ाई को आसान और मजेदार बनाता है “परवरिश, द म्यूजियम स्कूल”

पढ़ाई को आसान और मजेदार बनाता है “परवरिश, द म्यूजियम स्कूल”

Monday December 28, 2015,

6 min Read

10 सालों से चल रहा है “परवरिश, द म्यूजियम स्कूल”...

म्यूजियम के जरिये दिया जाता है किताबी ज्ञान...

स्लम और गरीब बच्चों को मुफ्त में कराई जाती है पढ़ाई...


म्यूजियम वो जगह होती है जहां किसी देश की कला संस्कृति और इतिहास को गहराई से जाना जा सकता है, उसे देखा और समझा जा सकता है, लेकिन कभी किसी ने सोचा की म्यूजियम का इस्तेमाल पढ़ाई के लिए भी हो सकता है। भोपाल में रहने वाली शिबानी घोष ने अपने शहर के विभिन्न म्यूजियम को ना सिर्फ पढ़ाई से जोड़ा बल्कि इनकी मदद से वो हजारों बच्चों का भविष्य संवार चुकी हैं। आज शिबानी घोष “परवरिश, द म्यूजियम स्कूल” के जरिये गरीब और स्लम इलाकों में रहने वालों बच्चों को बेहतर तालीम देने का काम कर रही है। यही वजह है कि कभी इस स्कूल में पढ़ चुके बच्चे आज इंजीनियरिंग और दूसरे क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं।

image


शिबानी घोष जब बीएड की पढ़ाई कर रही थीं तो उस वक्त उन्होंने देखा कि जो शिक्षा प्रणाली और कौशल वो सीख रही हैं वो काफी अच्छा है लेकिन इसका इस्तेमाल ज्यादातर स्कूलों में नहीं होता। तब इन्होने सोचा की बीएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद अगर वह किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेंगी तो वो ये ज्ञान दूसरे बच्चों तक नहीं पहुंचा पाएंगी और वो उसी विधि में बंधकर रह जाएंगी जिस तरीके से बच्चों को अब तक पढ़ाया जाता है। इसलिए उन्होंने सोचा कि वो ऐसे बच्चों को साक्षर करने का काम करेंगी जो गुणवत्ता वाली शिक्षा से दूर हैं। स्कूल शुरू करने से पहले शिबानी देश के अलग अलग जगह गई। उन्होंने पांडुचेरी के अरविंद आश्रम और दूसरे स्कूलों के एजुकेशन पैटर्न को समझा। तब इनको लगा कि क्यों ना भोपाल में मौजूद म्यूजियम को शिक्षा का साधन बनायें।

image


अपना स्कूल शुरू करने से पहले शिबानी ने भोपाल की अलग अलग बस्तियों में सर्वे किया। यहां पर इन्होने देखा कि इन बस्तियों में रहने वाले कई बच्चे स्कूल नहीं जाते। इसकी जगह वो दूसरों के घरों में नौकरी करते थे या मजदूरी करते थे, क्योंकि ऐसा कर वो अपने परिवार का आर्थिक बोझ थोड़ा कम करने का काम करते थे। सर्वे के दौरान इन्होने कई बच्चों से बात की और उनसे कहा कि वो उनको बस्ती से बाहर किसी अच्छी जगह पढ़ाई कराएंगी ताकि भविष्य में वो कुछ बन सकें। इसके लिए कुछ बच्चे तैयार तो हो गए लेकिन इन बच्चों को एक चिंता भी थी कि कहीं उनका रोजगार ना बंद हो जाये। इसके लिए शिबानी ने उनको आश्वासन दिया कि ऐसा नहीं होगा और जो बच्चे काम करना चाहते हैं वो साथ में पढ़ाई भी कर सकेंगे। इसका काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा और शुरूआत में ही चालीस बच्चे इनके साथ पढ़ने को तैयार हो गये। इसके लिए इन्होने बच्चों को पढ़ाने के लिए शाम 3 बजे से 5 बजे तक का वक्त तय किया। साथ ही भोपाल के 5 म्यूजियम के साथ गठजोड़ किया। इन म्यूजियम में रिजनल साइंस सेंटर, मानव संग्राहलय, स्टेट म्यूजियम, नेशनल हिस्ट्री म्यूजियम और आदिवासी म्यूजियम शामिल थे।

image


इस तरह सितंबर, 2005 से “परवरिश, द म्यूजियम स्कूल” की शुरूआत हुई। योरस्टोरी को शिबानी बताती हैं कि 

“शुरूआत में हमने एक बस किराये पर ली, जो अलग अलग बस्तियों में जाकर बच्चों को इकट्ठा करती और उनको म्यूजियम लाने ले जाने का काम करती। इस दौरान बच्चों को म्यूजियम में घूमने के लिए छोड़ दिया जाता था। जिसके बाद बच्चों के मन में जो प्रश्न उठते थे उनको वहीं पर दूर किया जाता था।” शिबानी का कहना है कि “हम चाहते थे कि सवाल बच्चों की तरफ से आये कि ऐसा क्यों होता है? कैसे होता है? इस दौरान हमने पढ़ाई की कोई बात नहीं की और सिर्फ उनके सवालों के जवाब दिये।” 

धीरे धीरे बच्चे जब ज्यादा रूचि लेने लगे तो म्यूजियम दिखाने के साथ साथ इनको पढ़ाने का काम शुरू किया और वे इन बच्चों का दाखिला नियमित स्कूलों में करने लगे। क्योंकि तब तक इन बच्चों के माता पिता को भी समझ आ गया था कि उनके बच्चे पढ़ाई में दिलचस्पी ले रहे हैं। जिसके बाद म्यूजियम के जरिये शिबानी और उनकी टीम म्यूजियम के जरिये इनको पढ़ाने का काम करने लगी।

image


शिबानी ने अपने पास आने वाले बच्चों को नेशनल ओपन स्कूल से 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं दिलाई। जिसके बाद आज इनके यहां पढ़ाई कर चुके कई बच्चे ना सिर्फ कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं बल्कि कई इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं जिन्होने अपना कारोबार शुरू कर दिया है। शिबानी का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य पढ़ाई के साथ उनका समग्र विकास करना भी है। इसलिए इनके पास आने वाले बच्चों को ये विभिन्न तरह की वोकेशनल ट्रेनिंग देने का काम करने लगे। ताकि इनका पढ़ाया बच्चा ना सिर्फ पढ़ाई में अव्वल रहे बल्कि उसके कौशल में भी निखार आये। यही वजह है कि पिछले दस सालों के दौरान 12सौ बच्चे इनकी देखरेख में शिक्षा हासिल कर अपनी जिंदगी संवार रहे हैं।

image


फिलहाल करीब डेढ़ सौ बच्चे इनके यहां पढ़ाई कर रहे हैं। ये स्कूल सातों दिन लगता है। खास बात ये है कि शिक्षा का कामकाज वही लोग संभालते हैं जिस तबके से ये बच्चे आते हैं। शिबानी के मुताबिक स्लम में रहने वाली 10 लड़कियां जो अब पढ़ लिख गई हैं वो इन बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उठाती हैं। जबकि म्यूजियम क्लास इनके वोलंटियर संभालते हैं। बच्चों को किताबी ज्ञान बेहतर तरीके से समझाने के लिए ये लोग म्यूजियम में बच्चों को उन्ही गैलरी में ले जाते हैं जिस विषय को वो पढ़ रहे होते हैं। ये लोग कापी किताब से हटकर प्रैक्टिकल के जरिये उन चीजों को समझाते हैं। इस कारण बच्चे किसी भी चीज को जल्द और आसानी से समझने लगते हैं। उदाहरण के लिए नर्मदा नदी की क्या कहानी है या आदिवासियों का इतिहास कितना पुराना है या फिर चुंबकीय ताकत के कारण हर चीज पृथ्वी पर गिरती है लेकिन धुआं आसमान में क्यों उड़ता है? इस तरह के सभी प्रश्नों के उत्तर म्यूजियम में पढ़ाई के दौरान बच्चों को दिये जाते हैं।

image


आज ‘परवरिश, द म्यूजियम स्कूल’ में पढ़ने वाले कई बच्चे टीवी के कार्यक्रमों में अपने अभिनय का जौहर भी दिखा चुके हैं, डांस प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं। स्कूल में बच्चों को उनकी रूची के हिसाब से गतिविधियां कराई जाती हैं। इसी तरह कभी इसी स्कूल में पढ़ने वाले अरूण मात्रे नाम का एक छात्र आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। इनकी मां दूसरों के घरों में कामकाज करती है जबकि उसके पिता एक कंपनी में चपरासी हैं। शिबानी घोष का कहना है कि 

“हमारी योजना इस काम को दूसरे शहरों में भी फैलाने की है इसलिए हमें तलाश है ऐसी संस्थाओं की जो अपने अपने शहरों में बच्चों को पढ़ाई को म्जूजियम के साथ जोड़ें।”