कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच नादिया
हिंसाग्रस्त कश्मीर घाटी में लड़कियों को फुटबाल सिखाती हैं नदिया
कश्मीर का नाम आते ही दिमाग में सबसे पहले आतंकवाद, पत्थरबाजी जैसी घटनाएं उभर कर सामने आती हैं, लेकिन उसी कश्मीर में एक भरोसा भी है अमन का, भाईचारे का। यकीन न हो तो मिलिए 20 साल की नादिया निघात से...
20 साल की नादिया निघात कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच हैं, जिनसे प्रशिक्षण हासिल कर चुके कई युवाओं का चयन राष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल टीम के लिये भी हो चुका है।
नादिया के फुटबॉल खेलने की शुरूआत अपने घर के आंगन और सड़क पर लड़कों के साथ फुटबॉल खेलते हुए हुई। एक दिन उन्होने अपने माता-पिता से फुटबॉल की कोचिंग लेने की जिद की, तो उनकी मां ना इसका काफी विरोध किया। इसकी वजह थी कश्मीर के हालात और नादिया का लड़की होकर फुटबॉल खेलना।
कश्मीर का नाम आते ही दिमाग में सबसे पहले आतंकवाद, पत्थरबाजी जैसी घटनाएं उभर कर सामने आती हैं, लेकिन उसी कश्मीर में एक भरोसा भी है अमन का, भाईचारे का। यकीन न हो तो मिलिए 20 साल की नादिया निघात से जो कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच हैं, जिनसे प्रशिक्षण हासिल कर चुके कई युवाओं का चयन राष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल टीम के लिये हो चुका है। जन्नत के आसमान पर चमकने वाली नादिया के लिये ये सफर इतना आसान भी नहीं था, शुरूआत में जहां घर पर उनकी मां ने इस खेल का विरोध किया, तो घर से बाहर लड़कों ने उनके सामने रुकावटें खड़ी करने की कोशिश की।
हिम्मत और जुनून की अनोखी मिसाल नादिया ने हार नहीं मानी और अपने शौक को पूरा करने के लिये उन्होने वो किया जो आमतौर पर इस उम्र की लड़कियां करने में झिझकती हैं। उन्होने लड़कों के साथ फुटबॉल खेलने के लिये अपने बालों को भी काटने से गुरेज नहीं किया। नादिया 11 साल की उम्र से प्रोफेशनल स्तर पर फुटबॉल खेल रही हैं। उनके फुटबॉल खेलने की शुरूआत अपने घर के आंगन और सड़क पर लड़कों के साथ फुटबॉल खेलते हुए हुई। एक दिन उन्होने अपने माता-पिता से फुटबॉल की कोचिंग लेने की जिद की, तो उनकी मां ना इसका काफी विरोध किया। इसकी वजह थी कश्मीर के हालात और नादिया का लड़की होकर फुटबॉल खेलना।
वक्त के साथ मां को बेटी की जिद के आगे झुकना पड़ा और नादिया के खेल में दिन-ब-दिन निखार आता था। नादिया ने भले ही घरवालों को मना लिया हो लेकिन घर के बाहर दूसरे लोग उनको कपड़ों और लड़कों के साथ फुटबॉल खेलने पर छींटाकशी करने लगे। लोगों ने नादिया से यहां तक कहा कि ये खेल लड़कियों के लिए नहीं है अगर कुछ करना ही है तो पढ़ाई करो। तो दूसरी ओर बुलंद हौसलों वाली नादिया ने कभी ऐसी बातों की परवाह नहीं की क्योंकि उनके माता-पिता को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था। फुटबॉल से नादिया को इतना लगाव था कि वो कर्फ्यू के दौरान भी प्रैक्टिस के लिए जाया करती थीं। जब कभी हालात ज्यादा ही खराब हो जाते, तो वो घर के आंगन और कमरे में फुटबॉल की प्रैक्टिस किया करती थीं।
नादिया का कहना है कि कश्मीर के हालात को देखते हुए वो नहीं चाहती थी कि जिन दिक्कतों का सामना उन्होने किया, उन्ही दिक्कतों का सामना कोई दूसरी लड़की करे।
एक बार फुटबॉल खेलने वाले कुछ साथी दोस्तों ने उनसे कहा कि वो उनके साथ फुटबॉल ना खेला करें क्योंकि दूसरे लड़के उनसे कहते हैं कि वो लड़की के साथ फुटबॉल खेलते हैं। जिसके बाद नादिया ने लड़कों जैसा दिखने के लिये अपने बाल कटवा लिये। इस तरह नादिया को 2010 और 2011 में जम्मू कश्मीर के लिए राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेलने का मौका मिला। आज नादिया श्रीनगर में फुटबॉल की तीन एकेडमी चला रहीं हैं। जहां पर वो लड़कों के अलावा लड़कियों को भी ट्रेनिंग देती हैं। नादिया का कहना है कि कश्मीर के हालात को देखते हुए वो नहीं चाहती थी कि जिन दिक्कतों का सामना उन्होंने किया, उन्ही दिक्कतों का सामना कोई दूसरी लड़की करे।
नादिया लड़कियों को श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में फुटबॉल की कोचिंग देती हैं, जबकि लड़कों को स्टे़डियम की दूसरी जगह पर। पिछले दो सालों से ट्रेनिंग दे रही नादिया के सिखाए अंडर 12 के दो लड़कों का चयन नेशनल लेवल पर फुटबॉल खेलने के लिए हुआ है। अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में नादिया का कहना है कि वो चाहती हैं कि कश्मीर में हालात सुधरें और यहां पर बच्चों को सिर्फ टैलेंट के सहारे आगे बढ़ने का मौका मिले। नदिया का मानना है कि लड़कियों को भी लड़कों के बराबर हक मिलना चाहिए।
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