अमेरिका में मोटी सैलरी छोड़ गाँव के किराना दुकानदारों के जीवन को बेहतर बना रहे हैं अमृतांशु
अमृतांशु को अपनी मेहनत और लगन पर भरोसा था, इसलिए उन्होंने तमाम मुश्किलों को पार किया और मॉइक्रोसॉफ्ट एवं कैपजेमनी जैसी मशहूर कंपनियों के प्रोजेक्ट किये... पुणे से लेकर अमेरिका तक का सफर किया...पिता की मौत के बाद उन्हें अनुकंपा पर सरकारी मिल रही थी, लेकिन अपना अलग उद्यम खड़ा करने की सोच से उन्होंने नयी दिशा में क़दम रखे और पारंपारिक दुकानदारों को ई-कामर्स से जोड़ने के काम में जुट गये।
बड़े अवसरों को छोड़ अपने आप को दूसरों को अवसर देने में लगा देना आसान काम नहीं है, लेकिन कुछ लोग यह हिम्मत कर जाते हैं। बिहार की राजधानी पटना के अमृतांशु भारद्वाज ऐसे ही हैं। पटना के एस के पुरी इलाके में रहने वाले अमृतांशु भारद्वाज ने अमेरिका में अपनी नौकरी इसलिए छोड़ दी ताकि वो कर वापस आकर अपनी मातृभूमि और यहाँ के लोगों के लिए कुछ करने का अवसर मिले। अमृतांशु की इसी मेहनत का नतीजा है मोतीहारी ज़िले का केसारिया गांव। पहले अंधेरे में डूबा यह गांव आज रोशनी में सराबोर है। अमृतांशु हर साल अपने अमेरिकी सहयोगी के साथ मिलकर सोलर लाइट से लोगों के घरों को रोशन करते हैं। यहीं नहीं अपने यहांँ वे जरूरतमंदों को रोज़गार देकर उनकी आर्थिक सहायता भी करते हैं।
पटना के ज्ञान निकेतन से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले अमृतांशु बताते हैं कि वे बचपन में पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं थी। पुणे के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें किसी तरह कॉलसेंटर में नौकरी मिली, लेकिन उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं होने के कारण उनको हटा दिया गया। नौकरी से हटाए जाने की घटना ने अमृतांशु पर गहरा असर कर गया। अमृतांशु ने कड़ी मेहनत कर अपनी अंग्रेजी और अपनी नॉलेज को बढ़ाया। अपनी इसी काबिलियत के बल पर उन्हें अमेरिका में नौकरी मिली। चूंकि अमृतांशु को अपनी मेहनत और लगन पर भरोसा था, इसलिए उन्होंने तमाम मुश्किलों को पार किया और मॉइक्रोसॉफ्ट एवं कैपजेमनी जैसी मशहूर कंपनियों के प्रोजेक्ट पर काम किया। 2010 में अमृतांशु अमेरिका चले गए। इस तरह से उन्होंने पुणे से लेकर अमेरिका तक का सफर किया। अपने बेहतर काम की वजह से संस्थानों ने उन्हें कई बार सम्मानित भी किया। इसी दौरान अमृतांशु के साथ एक दुखद घटना घटी। उनके पिताजी का निधन हो गया। चूंकि उनके पिता जी सरकारी नौकरी में कार्यरत थे, इसलिए अनुकंपा पर अमृतांशु को उसी दफ्तर में नौकरी मिल सकती थी।
लोगों ने उन्हें नौकरी हासिल करने की सलाह भी दी, लेकिन अमृतांशु ने तय किया वे अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं लेंगे और अपनी कड़ी मेहनत के बलबूते अपना एक बड़ा मुकाम बनाएंगे। 33 वर्षीय अमृतांशु अमेरिका में एक बड़ी कंपनी के साथ मोटी सैलरी पर काम कर रहे थे। वहाँ उन्हें कई सुविधाएं मिली हुई थी, लेकिन आज वे सबकुछ छोड़कर पटना में उद्यमिता की ऐसी राह तलाशने में लगे हैं, जिसमें और लोगों को भी आत्मनिर्भर बनाया जाए।
यहाँ उन्हें इस प्रयास में काफी सफलता भी मिली है। बिहार सरकार की एक योजना के तहत शहर के प्रमुख इनोवेटिव उद्यमियों को बिहार इंस्ट्रीज एसोसिएशन में जगह दी जा रही है। इसके लिए अमृतांशु का भी चयन किया गया है। आज अमृतांशु ने करीब 9 लोगों को नौकरी दे रखी है। यही नहीं वे अपने कुछ साथियों के साथ कई ऐसे इनोवेटिव कार्य करने में लगे हैं जिससे राज्य को उनपर गर्व होगा।
पटना आने के बाद अमृतांशु ने फुटकर दुकानदारों की स्थिति बेहतर करने के लिए एक ऐसा मंच तैयार किया है, जहाँ से लोग ऑनलाइन शॉपिंग के माध्यम से अपने फेवरेट किराना दुकानदारों, कपड़ों एवं मिठाइयों के दुकानों आदि जगहों से सामान अपने घर मंगवा सकते हैं। असल में ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते चलन की वजह से कहीं न कहीं खुदरा दुकानदारों की बिक्री पर बुरा असर ज़रूर पड़ा है। कई सालों से किराने की दुकान चलाने वाले लोग, मेडिसिन शॉप के मालिक, कपड़ों के कई पुराने दुकानदार इस ऑनलाइन शॉपिंग की मार की वजह से अपना धंधा बदल रहे हैं या किसी तरह इस मंदी में अपना गुजारा करने को विवश हैं। ऐसे ही दुकानदारों की पीड़ा और दर्द को समझते हुए अमृतांशु भारद्वाज के मन में इनके लिए एक अलग मंच बनाने की बात सूझी, जहां लोगों के सामने ऑनलाइन शॉपिंग का विकल्प भी समाप्त न हो और ऐसे खुदरा दुकानदारों की बिक्री भी अच्छी रहे। अमृतांशु ने योरस्टोरी को बताया,
- आज लोग इंटरनेट फ्रेंडली हो रहे हैं। लोगों के पास समय का अभाव है। इसलिए भी लोग अब दुकानों पर जाने की बजाए ऑनलाइन सामान मंगवा लेते हैं। ऐसे में इन खुदरा दुकानदारों की बिक्री प्रभावित होती है। इसलिए मैंने गंगा फ्रेशडॉट कॉम नाम से एक बेवसाइट बनाई है, जहां पर लोग अपनी फेवरेट दुकानों के सामान पंसद कर अपने घर मंगवा सकते हैं।
आज अमृतांशु दिनभर अपने साथियों के साथ फिल्ड में मेहनत करने के साथ घर पर भी देर रात तक काम करते हैं। वे बताते हैं कि मैं अपने डिलेवरी ब्यॉय के साथ कई बार डिलवरी देने भी जाता हूं ताकि ग्राहकों की बातों को अच्छी तरह से समझ सकूं और उनके लिए और बेहतर कर सकूं।
अमृतांशु कहते हैं कि कई ग्राहकों को भी इस बात का अफसोस होता है कि वे अपने फेवरेट दुकानदारों को छोड़कर कहीं और से सामान ले रहे हैं, लेकिन अपनी व्यस्तता की वजह से उन्हें ऑनलाइन खरीदना पड़ता है। अब ऐसे में जब ग्राहकों को उनके फेवरेट दुकानदारों की चीज घर बैठे ही मिल जाएगी तो उनके लिए यह बेहतर होगा। वहीं दुकानदारों के भी ग्राहक बने रहेंगे। अमृतांशु बताते हैं, गंगाफ्रेश डॉट कॉम पर लॉगइन करने के बाद लोगों के लिए ग्रॉसरी, बेकरी, केक, बुके, कपड़े आदि सामानों की लिस्ट उपलब्ध हो जाएगी। वहां से वे अपनी मनपंसद चीज को ऑर्डर कर सकते हैं। हम वह सामान उनके फेवेरेट या शहर के जो बेहतर स्टोर्स होंगे वहां से से उपलब्ध कराएंगे। लोग हमें कॉल करके भी आडॅर दे सकते हैं और फेवरेट दुकानदार के बारे में बता सकते हैं। यह सब हम सिर्फ 15 रुपये के डिलेवरी चार्ज पर उपलब्ध करा देंगे। हम पटना में एक खास तरीके के वाहन ई-कार्ट से डिलवरी करते हैं। इसलिए हमारा खर्च कम होता है। ग्राहक चाहे जितना सामान मंगवाएं हम सिर्फ 15 रुपये ही चार्ज करते हैं।"
अमृतांशु की सोच और समझ का नतीजा है गंगाफ्रेश डॉट कॉम, लेकिन अमृतांशु को हमेशा लगता रहा कि शहरों के साथ-साथ गांवों के विकास के लिए भी ज़रूरी कदम उठाना चाहिए। इसी लिए उन्होंने एक गांव चुना। मोतीहारी का केसारिया गांव। अमृतांशु ने अंधेरे में डूबे इस गांव को रोशनी में लाने का फैसला किया। कोशिशों और अपनी बेहतर समझ की बदौलत उन्होंने गांव में सौर ऊर्जा के प्रति लोगों को जागरुक किया और नतीजा आज सबके सामने है। अपने अमेरिकी दोस्तों और सहयोगियों के साथ उन्होंने गांव में सौर ऊर्जा की बेहतर तकनीक को लागू किया और इसके बारे में लोगों को भी आत्मनिर्भर बनाया। आलम यह है कि गांव के लोग अपने घर के साथ-साथ आस पड़ोस को भी रौशन कर रहे हैं।
अमृतांशु ने एक साथ दो काम किए-एक तो ई-कॉमर्स की वजह से बंद हो रही दुकानों को फिर से जीवित किया, उसमें नई जान फूंकी और दूसरा-गांवों के विकास के लिए गांव वालों को जागरुक किया। तय है इस तरह की सोच देश के विकास में सहायक होंगी।