बजट 2018-19: एक पोटली में सोना-चांदी, दूसरी में कबाड़
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के बाद आज लोकसभा में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और उनकी टीम द्वारा तैयार पहला आर्थिक सर्वे 2017-18 पेश किया...
संसद में आज से बजट 2018-19 का महत्वपूर्ण सत्र प्रारंभ हो गया। राष्ट्रपति के अभिभाषण के तुरंत बाद आज वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वित्त मंत्रालय की जो आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट संसद में पेश की है, उससे 01 फरवरी को आने वाले आम बजट के किंचित संकेत तो मिलते ही हैं, कुछ दिनो पूर्व जब प्रधानमंत्री दावोस में थे, अंतर्राष्ट्रीय राइट्स समूह 'ऑक्सफेम' की और से सार्वजनिक की गई दूसरी आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के निष्कर्ष चिंतित करते हैं। जेटली के सर्वे निष्कर्ष में निजी निवेश में तेजी की तैयारी का संकेत मिला है। सरकार को जीवीए ग्रोथ 6.1 फीसद और कृषि ग्रोथ 2.1 फीसद रहने का अनुमान है।
सर्वे रिपोर्ट में हमारे देश के आर्थिक हालात बनाम विकास की एक तस्वीर ये रही है, जिसे वित्त मंत्रालय की ओर से वित्त मंत्री ने आज संसद में पेश किया। एक दूसरी तस्वीर उस सर्वे रिपोर्ट में पिछले दिनो सामने आई है, जिसमें देश की आय में असामनता की चिंताजनक तस्वीर पेश की गई है।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के बाद आज लोकसभा में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और उनकी टीम द्वारा तैयार पहला आर्थिक सर्वे 2017-18 पेश किया। यह पहला मौका है, जब राष्ट्रपति के अभिभाषण के तुरंत बाद ये दस्तावेज संसद के पटल पर रखा गया। आर्थिक सर्वे देश के विभिन्न सेक्टर्स की तस्वीर पेश करता है। यह एक तरह से देश की अर्थव्यवस्था की संभावनाओं और चुनौतियों का एक विस्तृत ब्यौरा होता है। यह वित्त मंत्रालय की ओर से पेश की जाने वाली आधिकारिक रिपोर्ट होती है, जिसमें बताया जाता है कि व्यतीत वर्ष के दौरान विकास की प्रवृत्ति क्या और कैसी रही।
आर्थिक सर्वे बजट से ही सरकार को अपनी आर्थिक दिशा का पता चलता है। सर्वे में आर्थिक विकास दर का पूर्वानुमान होता है। आर्थिक सर्वे में संभावना जताई गई है कि वित्त वर्ष 2018 में 6.75 फीसदी और वित्त वर्ष 2019 में जीडीपी ग्रोथ 7 से 7.5 फीसदी हो सकती है। सरकार ने तेल की बढ़ती कीमतों पर चिंता के साथ ही रोजगार, शिक्षा एवं कृषि पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए निजी निवेश में तेजी की तैयारी का संकेत दिया है। सरकार को जीवीए ग्रोथ 6.1 फीसद और कृषि ग्रोथ 2.1 फीसद रहने का अनुमान है। इससे पहले बजट सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से हुई।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद में कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था- आर्थिक और सामाजिक स्तर पर लोकतंत्र लाए बगैर राजनीतिक लोकतंत्र को स्थिर नहीं किया जा सकता। कामकाजी महिलाओं को 12 हफ्ते की जगह 26 हफ्ते की मातृत्व अवकाश वेतन सहित दिया जाएगा। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना का दायरा 161 जिलों से बढ़ाकर 640 जिलों तक कर दिया गया है। वर्ष 2022 तक हर भारतवासी को घर देने की योजना है। तब तक सरकार किसानों की आय दोगुनी कराने को प्रतिबद्ध है।
सर्वे रिपोर्ट में हमारे देश के आर्थिक हालात बनाम विकास की एक तस्वीर ये रही है, जिसे वित्त मंत्रालय की ओर से वित्त मंत्री ने आज संसद में पेश किया। एक दूसरी तस्वीर उस सर्वे रिपोर्ट में पिछले दिनो सामने आई है, जिसमें देश की आय में असामनता की चिंताजनक तस्वीर पेश की गई है। उस सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2017 में कुल संपत्ति के सृजन का 73 प्रतिशत हिस्सा केवल एक प्रतिशत अमीर लोगों के हाथों में सिमट गया है। अंतर्राष्ट्रीय राइट्स समूह 'ऑक्सफेम' की ओर से यह सर्वेक्षण दावोस की शिखर बैठक से पूर्व जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि 67 करोड़ भारतीयों की संपत्ति में सिर्फ एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
वैश्विक स्तर पर यह तस्वीर और भी चिंताजनक है। पिछले साल दुनिया भर में अर्जित की गई संपत्ति का 82 प्रतिशत केवल एक प्रतिशत लोगों के पास है, जबकि दुनिया के 3.7 अरब लोगों की संपत्ति में कोई इजाफा नहीं हुआ है, जिसमें गरीब आबादी का आधा हिस्सा आता है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत की कुल संपत्ति का 58 प्रतिशत हिस्सा देश के एक प्रतिशत अमीर लोगों के पास है, जो कि वैश्विक आंकड़े से भी अधिक है। वैश्विक स्तर पर एक प्रतिशत अमीरों के पास कुल संपत्ति का 50 प्रतिशत हिस्सा है। वर्ष 2017 में भारत के एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति बढ़कर 20.9 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। मौजूदा अर्थव्यवस्था अमीरों को और अधिक धन एकत्र करने में सक्षम बना रही है, दूसरी तरफ लाखों, करोड़ों लोग जिंदगी जीने के लिए मशक्कत कर रहे हैं।
इस सर्वे रिपोर्ट में कुल देशों के लगभग सत्तर हजार लोगों से मिली जानकारियों को आधार बनाया गया। भारत के संबंध में इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल 17 नए अरबपति बने हैं। इसके साथ अरबपतियों की संख्या 101 हो गई है। 2017 में भारतीय अमीरों की संपत्ति 4.89 लाख करोड़ बढ़कर 20.7 लाख करोड़ हो गई है। यह 4.89 लाख करोड़ कई राज्यों के शिक्षा और स्वास्थ्य बजट का 85 प्रतिशत है। यह अत्यंत चिंताजनक है कि देश की अर्थव्यवस्था में हुई वृद्धि का फायदा मात्र कुछ लोगों के हाथों के सिमटता जा रहा है।
अरबपतियों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी फलती-फूलती अर्थव्यवस्था की नहीं बल्कि एक विफल अर्थव्यवस्था की निशानी है। जो मेहनत कर रहे हैं, देश के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं, मकान और इमारतें बना रहे हैं, कारखानों में काम कर रहे हैं, वे अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए, दवा-इलाज, दो वक्त की रोटी तक के लिए मशक्कत करते-करते मरे जा रहे हैं, दूसरी तरफ अरबपतियों की लिस्ट लंबी होती जा रही है। समाज के भीतर यह बढ़ती खाई लोकतंत्र को खोखला कर रही है।
अंतर्राष्ट्रीय राइट्स समूह 'ऑक्सफेम' ने दावोस में पिछले दिनो यह जैसा आर्थिक निष्कर्ष पेश किया है, उसके साथ यह सच भी जुड़ा हुआ है कि इस हालात के लिए, सच पूछा जाए तो सिर्फ मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां जिम्मेदार नहीं हैं। देश पर सबसे ज्यादा कांग्रेस ने राज किया है। यदि गरीबों की आबादा कुल जनसंख्या के 45 फीसदी तक पहुंच चुकी है तो उसके हालात उसी कांग्रेस के राज में पैदा किए गए हैं। आज मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह कैसे अब दो वर्गों में बंटे समाज के भीतर चौड़ी होती जा रही खाईं को साधे।
सर्वे रिपोर्टों से पता चल रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अभी अच्छे दिनों का इंतजार ही करते रहना होगा। शेयर बाजार कृत्रिम ऊंचाइयों पर हैं। ऐसे में निवेशकों को भी अब साफ तौर पर ये अशुभ संकेत समझ लेने चाहिए। निवेशकों की आकांक्षाएं अवास्तविक होकर रह गई हैं। दरअसल, हमारी अर्थव्यवस्था में उतनी तेजी होती नहीं है, जितनी तेजी से स्टॉक बाजार छलांग लगाते रहते हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था उतनी तेजी से बढ़ती नहीं दिख रही है, जितनी तेजी से शेयर बाजार कूदते-फांदते रहते हैं। यह अलग बात है कि पूरी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के जो हाल हैं, उनमें भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर असरदार मानी जा सकती है।
भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी पैसा सिर्फ इसलिए नहीं आ रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गति बहुत तेज है। पैसा इसलिए आ रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के मुकाबले बाकी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं बहुत ही सुस्त हैं। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि किसान कर्जमाफी में राज्य सरकारें पैसा खर्च कर कर रही हैं तो दूसरे कामों के लिए राजकोष लड़खड़ाने लग रहा है। जिन राज्यों ने किसानों की कर्जमाफी की घोषणा की है, उसका असर जीडीपी में करीब पॉइंट 35 परसेंट कमी के तौर पर देखने में आया है।
विकास दर को लेकर नकारात्मक आशंकाओं के पीछे किसान कर्ज माफी है। खेती-किसानी की जो हालत है, उनके सुधार के लिए कर्जमाफी नहीं, बल्कि दीर्घकालीन कदम उठाने पड़ेंगे। सर्वेक्षणों के मुताबिक नोटबंदी के बाद करदाताओं की तादाद में बढ़ोत्तरी हुई है। इसे सकारात्मक परिणाम के रूप में लिया जाना चाहिए। महंगाई भी तय लक्ष्य से काफी कम पाई गई है। ये संकेत भी स्पष्ट है कि ब्याज दरों में कमी तो लगातार होती रहे लेकिन सिर्फ ब्याज दरों में कमी से अर्थव्यवस्था में तेजी आने की संभावना नहीं करनी चाहिए।
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