दक्षिण अफ्रीका की आजादी के महानायक गांधीवादी मंडेला
महामानव नेल्सन मंडेला के जन्मदिन पर विशेष...
जिस प्रकार अन्य लोगों के योगदान के बावजूद भारत की आजादी की लड़ाई के आदर्श नायक गांधी जी हैं, उसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका की आजादी के महानायक और मसीहा हैं नेल्सन मंडेला। मंडेला ने साम्राज्यवाद और नस्लभेद का उसी धरती पर विरोध किया जिस पर गांधी ने स्वयं को खोज निकाला था।
बर्बरता और अत्याचार के स्याह घेरे को तोडऩे का कालजयी और पराक्रमी कार्य करने वाले नेल्सन रोलिहलाइला मंडेला को अंग्रेजी हुकूमत ने आजीवन कारावास का दंड दिया था किंतु वैश्विक दबाव में उन्हें 27 साल में रिहा करना पड़ा।
अंधेरा कितना भी घना हो उसका गुरूर उजाले की एक नन्ही सी किरण तोड़ देती है। दक्षिण अफ्रीका के मुकद्दर में सदियों से कायम गुलामी के तवील अंधेरों को जवाब देने के लिये उजाले की एक किरन ने बासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेंजो गांव में 18 जुलाई, 1918 को जन्म लिया। यह किरन जब आफताब बन गुलाम दक्षिण अफ्रीका के आसमान पर चमका तो खुद-ब-खुद गुलामी के बादल छंट गये।
जब सारी दुनिया के लोग आजादी की सांस ले रहे थे, तब भी बीसवीं सदी के अंतिम पड़ाव तक दक्षिण अफ्रीका इन काले अंधेरों में क्रंदन कर रहा था। समंदर के खूबसूरत किनारे और इल्म की रोशनी फैलाते पुस्तकालयों पर गोरों का कब्जा था। यहां तक कि अश्वेत अस्पताल, कालोनी, स्कूल, पार्क सब अलग थे। स्थानीय अश्वेतों की 85 फीसदी जनता दास और 15 फीसदी बाहरी लोग मालिक। अमावस्या की काली रात से भी काली थी दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों की जिंदगी। किंतु अंधेरा कितना भी घना हो उसका गुरूर उजाले की एक नन्ही सी किरण तोड़ देती है। दक्षिण अफ्रीका के मुकद्दर में सदियों से कायम गुलामी के तवील अंधेरों को जवाब देने के लिये उजाले की एक किरन ने बासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेंजो गांव में 18 जुलाई, 1918 को जन्म लिया। यह किरन जब आफताब बन गुलाम दक्षिण अफ्रीका के आसमान पर चमका तो खुद-ब-खुद गुलामी के बादल छंट गये। यह आफताब कोई और नहीं बल्कि राजतंत्र, उपनिवेशवाद और लोकतंत्र के संधिकाल वाली बीसवीं सदी में अपने देश का परचम थामने वाले और अश्वेतों के संघर्ष के वैशिवक हस्ताक्षर नेल्सन मंडेला थे, जिन्होने विश्व इतिहास की इबारत अपने हाथों से लिखी। जिस प्रकार अन्य लोगों के योगदान के बावजूद भारत की आजादी की लड़ाई के आदर्श नायक गांधी जी हैं, उसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका की आजादी के महानायक और मसीहा हैं नेल्सन मंडेला।
मंडेला ने साम्राज्यवाद और नस्लभेद का उसी धरती पर विरोध किया जिस पर गांधी ने स्वयं को खोज निकाला था। दक्षिण अफ्रीका में लोग कहते हैं कि तुमने हमें एक वकील भेजा था, लेकिन हमनें उसे महात्मा बनाकर वापस किया। 27 वर्ष तक लगातार बंदी रह कर नेल्सन मंडेला भी आग में तपे हुए कुंदन की तरह बाहर निकले। भारत में हमने अपने राष्ट्रपिता के विचारों को राष्ट्र-जीवन में कितना उतारा और उनकी कर्मनिष्ठा के साथ चाहे जो किया हो, लेकिन दक्षिण अफ्रीका से गांधी के भारत चले आने के बाद उसे नए गांधी के रूप में नेल्सन मंडेला मिल गए थे। गांधी के विचार, कर्म और जीवन दर्शन के नए संस्करण के रूप में सर्वाधिक विश्वसनीय व्यक्तित्व के बतौर नेल्सन मंडेला दुनिया में हमेशा याद किए जाते रहेंगे। नस्लभेदी अन्याय-अत्याचार के खिलाफ दक्षिण अफ्रीकी जनता की मानवीय गरिमा की प्रतिष्ठा के लिए सतत अहिंसात्मक आंदोलन को मंडेला ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। बर्बरता और अत्याचार के स्याह घेरे को तोड़ने का कालजयी और पराक्रमी कार्य करने वाले नेल्सन रोलिहलाइला मंडेला को अंग्रेजी हुकूमत ने आजीवन कारावास का दंड दिया था किंतु वैश्विक दबाव में उन्हें 27 साल में रिहा करना पड़ा। मंडेला के साथ उनका कैदी नंबर 466/64 भी अमर हो गया।
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के समान समझा जाता है। 'सत्य और अहिंसा' के लिए गांधी की हमेशा प्रशंसा करने वाले मंडेला ने 1993 में दक्षिण अफ्रीका में गांधी स्मारक का अनावरण करते हुए कहा था, 'गांधी हमारे इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं क्योंकि उन्होंने यहीं सबसे पहले सत्य के साथ प्रयोग किया, यहीं उन्होंने न्याय के लिए अपनी दृढ़ता जताई, यहीं उन्होंने एक दर्शन एवं संघर्ष के तरीके के रूप में सत्याग्रह का विकास किया।'
1964 से 1990 तक रंगभेद और अन्याय के खिलाफ लड़ाई की वजह से जेल में जीवन के 27 साल बिताने वाले टाटा यानी अफ्रीका के पिता नेल्सन मंडेला ने ऐसे समय में अहिंसा, असहयोग और सत्य का रास्ता अपनाया जब दुनिया हिरोशिमा और नागासाकी की हिंसा में डूबी हुई थी। दुनिया विश्व युद्ध के नतीजों से जूझ रही थी। शादी से बचने के लिए अपना घर छोड़ कर भागे नेल्सन मंडेला ने जोहानिसबर्ग में खदान का गार्ड बन कर काम शुरू किया और फिर यहीं से प्रेस की स्वतंत्रता के लिए और रंगभेद के खिलाफ उनकी लड़ाई शुरू हुई। खून का घूंट पीकर, ड्राइवर, दरबान और भृत्य के रूप में निर्वासित जीवन जीकर और जेल में क्रूर यातनाएं सहकर भी इस लड़ाके ने दक्षिण अफ्रीका को बीसवीं सदी के अंतिम मोड़ पर आजाद करवा ही दिया। मंडेला देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे।
मंडेला को 1993 में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका चमत्कारी व्यकित्व, हास्य विनोद क्षमता और अपने साथ हुए दुव्यर्वहार को लेकर कड़वाहट ना होना, उनकी अद्भुत जीवन गाथा से उनके असाधारण वैश्विक अपील का पता चलता है। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के समान समझा जाता है। 'सत्य और अहिंसा' के लिए गांधी की हमेशा प्रशंसा करने वाले मंडेला ने 1993 में दक्षिण अफ्रीका में गांधी स्मारक का अनावरण करते हुए कहा था, 'गांधी हमारे इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं क्योंकि उन्होंने यहीं सबसे पहले सत्य के साथ प्रयोग किया, यहीं उन्होंने न्याय के लिए अपनी दृढ़ता जताई, यहीं उन्होंने एक दर्शन एवं संघर्ष के तरीके के रूप में सत्याग्रह का विकास किया।'
20वीं सदी की साम्राज्यवादी बर्बरता और मौजूदा 21वीं सदी की हिंसक आक्रामकता के बीच अनेक झटके और चोट खाकर बार-बार पस्त होती मानवता के लिए अंधेरे में रोशनी के जो कुछ स्तंभ दुनिया में नजर आते हैं, उनमें महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, सीमांत गांधी और नेल्सन मंडेला को उनके अदम्य आत्मसंघर्ष के कारण हमेशा याद किया जाता रहेगा।
अंग्रेजी साम्राज्यवाद से दक्षिण अफ्रीकी जनता की मुक्ति के महानायक के रूप में अपने देशवासियों के मन में नेल्सन मंडेला हमेशा जीवित रहेंगे। उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जाता रहेगा। दरअसल पिछली यानी 20वीं सदी की साम्राज्यवादी बर्बरता और मौजूदा 21वीं सदी की हिंसक आक्रामकता के बीच अनेक झटके और चोट खाकर बार-बार पस्त होती मानवता के लिए अंधेरे में रोशनी के जो कुछ स्तंभ दुनिया में नजर आते हैं, उनमें महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, सीमांत गांधी और नेल्सन मंडेला को उनके अदम्य आत्मसंघर्ष के कारण हमेशा याद किया जाता रहेगा।
दरअसल, ये लोग मनुष्यता के विश्व नागरिक हैं। जैसे दक्षिण अफ्रीका हमारे राष्ट्रपिता गांधी को अपनी निधि मानता है, वैसे ही भारत ने भी नेल्सन मंडेला को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया है। दुनिया भर में इन दोनों विभूतियों से प्रेरणा लेने वाले करोड़ों लोग हैं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अगर महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित कर रखा है तो नेल्सन मंडेला का जन्मदिन 18 जुलाई भी अंतरराष्ट्रीय मंडेला दिवस के रूप में मनाया जाता है। गांधी और मंडेला मनुष्यता की आंखों की दो पुतलियां हैं, जिनसे दृष्टि पाकर हम दुनिया की खूबसूरत तस्वीर बना सकते हैं।